Wednesday, April 15, 2009

झीनी झीनी बीनी चदरिया ॥


काहे कै ताना काहे कै भरनी,

कौन तार से बीनी चदरिया ॥ १॥


आठ कँवल दल चरखा डोलै,

पाँच तत्त्व गुन तीनी चदरिया ॥ ३॥


साँ को सियत मास दस लागे,

ठोंक ठोंक कै बीनी चदरिया ॥ ४॥


सो चादर सुर नर मुनि ओढी,

ओढि कै मैली कीनी चदरिया ॥ ५॥


दास कबीर जतन करि ओढी,

ज्यों कीं त्यों धर दीनी चदरिया ॥ ६॥

2 comments:

अजय कुमार झा said...

bahaut hee pyaree post ban padee hai jha jee.

परमजीत सिहँ बाली said...

कबिर जी की रचना प्रेषित करने के लिए आभार।