महामारी के दौरान हम सब
घरों में बंद थे। सच कहूं तो हम सब खुद से जूझ रहे थे। हर एक इंसान अपने जीवन में
पहली बार एक ऐसी महामारी के संक्रमण से जूझ रहा था, जिसके बारे में कुछ भी सटीक
कहना नामुमकिन था। कल कैसा होगा, यह सोचकर बस अंधेरा ही दिखता था।
हम सभी के बही-खाते में साल
2020 की कहानी कुछ इस तरह ही शुरू हुई थी और इसी अंदाज में खत्म भी हुई। 2020 में सबकुछ
बंद ही रहा। मैं भी खेती-बाड़ी, गाम-घर और अपने चनका रेसीडेंसी के कामकाज से दूर
शहर के घर में बंद हो चुका था। किताबें एकमात्र सहारा थी। इस बीमारी ने पॉजीटिव शब्द
की व्याख्या ही बदल दी लेकिन सच यही है कि उस दौर में हर किसी को अवसाद से दूर
रहने के लिए सकारात्मक खबरों की तलाश थी।
मार्च 2020 के आखिरी सप्ताह
में द बेटर इंडिया हिंदी की संपादक मानबी कटोच जी से बात होती है। द बेटर इंडिया से अपना पुराना रिश्ता
रहा है लेकिन कोरोना महामारी के दौरान खबरों का यह अड्डा मेरे लिए दवा की माफिक बन
गया।
सकारात्मक खबरों को पढ़ते
हुए आप न केवल खुद भीतर से मजबूत बनते हैं बल्कि अपने आसपास के लोगों को भी ऐसी
खबरों के बारे में बताते हैं।
हर दिन इस वेब स्पेस के लिए
खबरों को संपादित करते हुए मन भीतर से मजबूत होता चला गया। देश के अलग-अलग हिस्सों
से केवल और केवल ऐस ही खबरें आतीं थीं जिसे पढ़कर लगता था कि सवेरा दूर नहीं है। झारखंड
के कामदेव पान की कहानी कुछ ऐसी ही थी, जिसने कारोबार बंद होने पर निराश
होने की बजाय मैजिक बल्ब का आविष्कार कर दिया।
अप्रैल 2020 से लेकर दिसंबर
2020 तक ऐसी ही सैकड़ों खबरों से रोज मिलता रहा। मेरे लिए यह सारी खबरें दवा की
माफिक रही। एक कहानी हाल ही में कर्नाटक से आई थी। यह कहानी कर्नाटक के रायचूर जिले में रहने वाली कविता मिश्रा की थी, जिन्होंने कंप्यूटर में डिप्लोमा किया हुआ
है और साइकोलॉजी में मास्टर्स की है। लेकिन आज उनकी पहचान एक सफल किसान के तौर पर
है।
जब स्कूल बंद था, उस वक्त
बच्चों को लोग किस तरह पढ़ा रहे थे, इस संबंध में एक कहानी झारखंड से आई थी। झारखंड स्थित जरमुंडी ब्लॉक के राजकीय उत्क्रमित
मध्य विद्यालय, डुमरथर के प्रिंसिपल डॉ. सपन कुमार ने इसे सच
कर दिखाया है। उन्होंने जब देखा कि कोरोना संक्रमण की आशंका को दखते हुए बच्चे
विद्यालय नहीं आ पा रहे हैं और ऑनलाइन शिक्षा पाने के लिए उनके पास स्मार्ट फोन और
बेहतरीन मोबाइल नेटवर्क जैसे संसाधन नहीं हैं, तो उन्होंने
स्कूल को ही उनके घर तक ले जाने का फैसला कर लिया।
अभिभावकों की इजाजत से उनके घरों की दीवार पर थोड़ी-थोड़ी
दूरी के साथ ब्लैक बोर्ड बनवा दिए गए, ताकि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हो सके। इन्हीं
ब्लैक बोर्ड पर छात्र, शिक्षक के पढ़ाए पाठ लिखते हैं और सवालों के
जवाब भी लिखते हैं। डॉ. सपन कुमार खुद कम्युनिटी लाउड स्पीकर के ज़रिए बच्चों को
पढ़ाई करवा रहे थे।
सच कहूँ तो ऐसी खबरें पढ़कर लगता है कि हम कितना कुछ अपने
स्तर पर कर सकते हैं, वो भी विरपरित से विपरित समय में।
शहरों में बागवानी के शौकिन लोगों की बात करें तो उनकी
कहानी भी कम रोचक नहीं हैं। टेरैस गार्डनिंग से लेकर खाली पड़े जगहों पर फूल-पत्ती
या सब्जी उगाने वाले लोगों की ढेर सारी स्टोरी मेरे सामने आई।
ऐसी ही एक कहानी जो दिल को छू गई वह
कर्नाटक से आई थी। बेंगलुरू में रहने वाले सुरेश राव, स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया में बतौर सीनियर
अकाउंटेंट कार्यरत हैं और साथ ही, पूरे पैशन से गार्डनिंग
भी करते हैं। उन्होंने अपने खर्च से अनाथालय की छत को किचन गार्डन बना दिया, जहाँ
से अब बच्चों को हरी-हरी ताजी सब्जियां मिलती है। वह कहते हैं कि इस काम से उन्हें
अपने जीवन में सबसे अधिक संतुष्टि मिली।
द बेटर इंडिया के प्लेटफार्म पर जब आप खबरों को खंगालेंगे
तो पता चलेगा कि देश भर में कितनी सारी प्रेरक कहानियां आपका इंतजार कर रही हैं,
जिसे पढ़कर आपका भरोसा बढ़ेगा। कुछ ऐसी ही कहानी केरल के कासरगोड के रहने
वाले 67 वर्षीय कुंजंबु की है, जो पिछले 50 वर्षों
से अधिक समय के दौरान 1000 से अधिक सुरंगे बना चुके हैं। जिसके फलस्वरूप आज गाँव
के लोगों को पानी के लिए बोरवेल पर कोई निर्भरता नहीं है।
इनकी कहानी को पढ़ते हुए लगा कि मुश्किल से मुश्किल वक्त
में भी हमें हार नहीं माननी चाहिए। हम अपने लिए तो बहुत कुछ करते हैं लेकिन समाज
के लिए कुछ भी करने से पहले कितना सोच-विचार करने लगते हैं। ऐसे लोगों को कुंजंबु
की कहानी कहानी पढ़नी चाहिए। जुनून और इच्छाशक्ति, ऐसे दो तत्व हैं, जिससे इंसान किसी भी लक्ष्य को हासिल कर सकता
है। बिहार के माउंटेन मैन दशरथ माँझी , जिन्होंने केवल
एक हथौड़ा और छेनी से पहाड़ को काट कर, सड़क बना डाला
था। कुछ ऐसा ही काम कुंजंबु भी कर रहे हैं।
वेब साइट पर बात करने वाले समीक्षक अपनी निगाहों से अपने
अनुशासन से कंटेट को देखते हैं और फिर उस प्लेटफार्म की समीक्षा करते हैं। लेकिन
एक आम आदमी की भाषा में कहूं तो यह प्लेटफार्म बहुत तरीके से हमें बदल देती है, यह खुद मैं महसूस करता हूँ। इनकी खबरों से
गुजरते हुए लगता है दुनिया इतनी भी बुरी नहीं है, कितना कुछ अच्छा हो रहा है देश-दुनिया में
और चलते-चलते मेरी प्रिय कहानी को एक बार जरूर पढ़िए, जो मुंबई में 22 साल से एडवरटाइजिंग जगत में
काम करने वाले राहुल कुलकर्णी और मराठी नाटक, टी.वी और फिल्मों की जानी-मानी अभिनेत्री संपदा
कुलकर्णी की है, जिन्होंने मुंबई शहर की चकाचौंध और सुख-सुविधाओं को छोड़कर कोंकण
के एक छोटे से गाँव, फुणगुस में एक फार्म-स्टे
बनाया है, जिसका नाम है-‘Farm Of Happiness’
इस तरह की कहानियों को पढ़कर आपको लगेगा कि जीवन में
सकात्मक होना सबसे अधिक जरूरी है। यह एक ऐसा गुण है, जिसके बल पर आप मुश्किल से
मुश्किल रास्तों को पार कर सकते हैं। यह गुण आपके नजरिए को बदल देता है। द बेटर
इंडिया की खबरों में डुबकी लगाते वक्त कुछ ऐसा ही अहसास होता है। अकबर इलाहाबादी
के शब्दों में कहूं तो –
" कहीं नाउम्मीदी ने बिजली
गिराई
कोई बीज उम्मीद के बो रहा है..."