Thursday, June 21, 2007

"कामत की परिभाषा..? उत्पत्ति..?"- फणीश्वर नाथ रेणु


फणीश्वर नाथ रेणु का रचना संसार समुद्र की भांति है, अथाह..अनंत..। आंचलिकता को खुद में समेटने वाले रेणु कोसी के ग्राम अंचलों को खूब उकेरा है। इनके सभी पात्र जीवंत रहे... अपनी लेखनी के जरिए रेणु अपने जीवन काल में हीं मिथक बन गये.....।
आज पेश है जनवरी 1956, में "अवन्तिका " में छपी "विषयान्तर".. के कुछ अंश जो एक संस्मरण है..।

दरअसल "कामत" शब्द आज भी बिहार के पूर्णिया, अररिया, किशनगंज, सहरसा, मधेपुरा
जिलों में खूब प्रचलित है। आज भी बड़े कामत वाले किसानों की यहां तूती बजती है।
तो आनंद लें कामत शब्द के विभिन्न अर्थों का...................


आपको एक दूसरे शब्द की कहानी बताऊं। मेरे जिले में "कामत" का प्रचलन खूब है। कभी कामत शब्द की जाति, धर्म, नस्ल पर ध्यान नहीं दिया। लिखना पड़ा, लिख दिया। मोहनपुर कामत पर कोई कामती स्थिर हो कर नहीं रहे, फिर भी एक सौ मन धान हुआ। आपने नहीं समझा, घर से दूर, दूसरे गांव में जमीन खरीदकर खेती करने के लिए जो घर बनाया जाता है, इसे "कामत" कहते हैं। फार्म कह लीजिए..। कामत की एक खास विशेषता है कि वहां स्त्री के साथ आप नहीं रह सकते। घर का कोई समांग भी कमतिया हो, तो भी नहीं।.....फिर भी एक-एक किसान के पास दर्जनों कामत।
तो भिंमल मामा ने प्रश्न उपस्थित किया एक दिन- "कामत की परिभाषा..? उत्पत्ति..?"
मैंने कहा, संभवत: यह उर्दू शब्द है। हमारे इलाके में मुसलमान जमींदारों के कई कामत थे।
उँहू.. रौंग..गलत.. सही अर्थ मैं जानता हूं। एक महिने का समय देता हूं। पटना जाते हो, लिख भेजना पण्डितों से बूझकर। देखूं सही अर्थ बता सकता है या नहीं....।
पटने आकर भूल गया। एक कार्ड मिला भिंमल मामा का- "ह्वाट्स कामत......?".
उर्दू के एक मशहूर कथाकार से पूछा। बोले-" यह तो अरबी का शब्द है अकामत। इसका अर्थ है- रहने की जगह। इसी से कामत हुआ है।.." भिंमल मामा को कार्ड लिख दिया।
दूसरे दिन एक पाली जानने वाले मित्र ने कहा-" कामन्ती का अर्थ पाली में होता है- खेती की रखवाली करने वाला..। इसी से कामन्त हुआ।"
भिंमल मामा को दूसरा कार्ड लिख दिया। दो महिने बाद घर गया तो भिंमल मामा हंसते हुए मिले- "बोथ रौंग..। दोनो गलत। न अकामत, न कामन्त। सही शब्द है कामान्त। पुराकाल में, बड़े गृहस्थ के परिवार में किसी व्यक्ति को यदि किसी कारणवश स्त्री-वियोग सहना पड़ा, तो वह अपने काम का अन्त कर देता था। परिवारवाले गांव से बाहर उसके लिए कामान्त बनवा देते थे। वहीं रहकर वह खेती-बारी देखता था। ऐसे कामान्तियों द्वारा लगायी फसल.......।"

8 comments:

Anonymous said...

मैनें रेणुजी को नहीं पढ़ा था इस ‘कामत’ के संदर्भ में...आज पढ़ लिया। इस आंचलिक भाषा के विविध अर्थ-स्वरुप को उन छिपे पन्नों से ढूंढ़कर बाहर निकाला.....एक और आंचलिक शब्द से पूर्णतः अवगत हो गया....धन्यवाद !

Pratik Pandey said...

"कामत" के बारे में जानकर अच्छा लगा। प्रस्तुतीकरण के लिए धन्यवाद।

संजय बेंगाणी said...

सही है

अनुनाद सिंह said...

बहुत अच्छा लगा रेणु जी को पढ़कर। साधुवाद!

बन्धु, हिन्दी विकिस्रोत पर रेणु जी की अमर कृति "मैला आंचल" उपलब्ध कराया जाना चाहिये। वहाँ पर "मैला आंचल" नाम से एक लिंक शुरू हुई है किन्तु अभी पूरी तरह कोरा ही पड़ा हुआ है। यदि आप उसमें दस-बीस पन्ने भी जोड़ सकें तो बहुत अच्छा होगा। आगे का काम कोई और करेगा। दुनिया बहुत बड़ी है।

अभय तिवारी said...

बहुत सुन्दर.. रेणु की बातें आपका लेबल है.. मतलब और भी बातें करेंगे आप.. ये और भी अच्छी बात है..
और हाँ.. फ़िक्र को उड़ाइये ज़रूर उड़ाइये पर धुएँ में नहीं.. भुक्त भोगी हूँ..

Sajeev said...

रेंनू मेरे भी पसंदीदा है उनकी तीसरी क़सम बेहेद खास जगह रखती है मेरे दिल में .... कामत का वर्णन अच्छा लगा

Girindra Nath Jha/ गिरीन्द्र नाथ झा said...

धन्यवाद, आप सभी का.
दरअसल मैं रेणु के शब्दों को नेट पे मुहैया कराने में लगा हूं....
शायद जल्द हीं और भी कुछ दे सकूं.....

Anonymous said...

कामत सरनेम और जाति भी है। केवट जाति वाले ज़्यादातर यह लगाते हैं और ढेरों दिल्ली के झुग्गियों में बसे परिवार खुद को बस कामत कहते है!