Sunday, September 04, 2011

'हद अनहद' ऊर्फ ‘राम हमारा हमें जपे रे...हम पायो विश्राम’

यदि आप डॉक्यूमेंट्री फिल्मों से लगाव रखते हैं और कबीर को जानने की इच्छा रखते हैं तो 'हद अनहद' ' देखिए।  कबीर प्रोजेक्ट चलाने वाली शबनम विरमानी ने इसे तैयार किया है। इसमें अयोध्या भी है और कराची भी।

कराची के फरीउद्दीन अयाज कहते हैं
, कबीर मेरा है। मेंटल लेवल को क्लियर कर दो, फिर कबीर को पहले इंसान समझो तब जाकर बात बनेगी। कबीर ने भाषाओं का चोला नहीं पहना ..कबीर नाम है एक कांस्पेट का..एक थीम का... जो अलग अलग जगह पर अलग नामों से जाने जाते हैं.। कबीर के लिए आपको कबीर के पास ही जाना होगा तमाम बंधनों को तोड़ना होगा... उसके लिए कबीर खुद वीजा देंगे आपको.. कबीर सीमाओं से परे हैं..सरहद से ऊपर कबीर का मुल्क है....।

कविवर मोहन राणा साब ने मुझे इस फिल्म से परिचित करवाया। यह १०२ मिनट की फिल्म है, यदि इतना वक्त हो तो जरुर देखिए। कबीर की साखियों को लगातार पढ़ते हुए समाज को देखने का नजरिया बदल जाता है। हम कई चीजों को कई कोणों से देखने लगते हैं। कबीरा कुआं एक है..और पानी भरे अनेक..। "हद-हद टपे सो औलिया..और बेहद टपे सो पीर..हद अनहद दोनों टपे. सो वाको नाम फ़कीर..हद हद करते सब गए और बेहद गए न कोए अनहद के मैदान में रहा कबीरा सोय.... भला हुआ मोरी माला टूटी, मैं रामभजन से छूटी रे मोरे सर से टली बला..।"

यह वृतचित्र सचमुच में यह बताने में कामयाब रही कि माया महाठगनी हम जानी..। कबीर के साथ दो मुल्कों के मानस को भी यहां रखा गया है। जन-मानस। इसे देखने के बाद मन सरहद पार चला जाता है, पाकिस्तान के शहर कराची को देखने की ललक बढ़ जाती है। इसी फिल्म में मैंने कराची की बसों को देखा, कितना संवारा जाता है वहां बसों को। कराची स्टेशन और रेलगाड़ी और इन सबके साथ कबीर...रमता जोगी बहता पानी..। संपादन नहीं के बराबर किए जाने की वजह से देखने में और अच्छा लगता है और बातें और स्पष्ट हो जाती है।
दरअसल शबनम विरमानी कबीर को समझने की कोशिश में जुटी हैं। वह लंबे वक्त से कबीर प्रोजेक्ट के जरिए कबीर और जनमानस में घुल मिल रही हैं। वह कबीर महोत्सव का भी आयोजन करती हैं। “कबीर के राम की खोज करने के लिए शबनम विरमानी इस फिल्म के जरिए अयोध्या से मालवा, वाराणसी और सरहद पार तक की यात्रा करती हैं।

तो चलिए
, यदि आपके पास कुल जमा १०२ मिनट ४९ सेकेंड का वक्त है तो हद अनहद देखते हैं अपने-अपने कम्प्यूटर स्क्रीन पर। ये रहा यूआरएल-

http://www.cultureunplugged.com/play/2831/Had-Anhad--Journeys-With-Ram---Kabir--Bounded-Boundless-

6 comments:

P.N. Subramanian said...

हद अनहद से परिचित कराने का आभार. अपने कम्पूटर पर देखने का प्रयास भी किया परन्तु ब्रोड बेंड की गति से धैर्य टूट गया.

Rahul Singh said...

देखते हैं, हमें तो शेखर सेन जी का लाइव कबीर भाता है और हां, किसी ने कहा है, कबीर तुम कब अप्रासंगिक होगे.

Pooja Prasad said...

thanx गिरीन्द्र. देखती हूं.

ZEAL said...

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@--कबीर नाम है एक कांस्पेट का..एक थीम का...

So true ! In each of his couplets a wonderful lesson has been taught.

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Ishwaranand Singh said...

Kabir ko padhane jaanne ki dinon se ichha rahi hai . Girindraji us susupta ichha ko jagane ke liye dhanyavaad.Aapke us link ke jariye to nahin dekh paaya,par pata kiya hai, ye flipkart pe upalabdha hai.

V P SINGH said...
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