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काहे कै ताना काहे कै भरनी,
कौन तार से बीनी चदरिया ॥ १॥
आठ कँवल दल चरखा डोलै,
पाँच तत्त्व गुन तीनी चदरिया ॥ ३॥
साँ को सियत मास दस लागे,
ठोंक ठोंक कै बीनी चदरिया ॥ ४॥
सो चादर सुर नर मुनि ओढी,
ओढि कै मैली कीनी चदरिया ॥ ५॥
दास कबीर जतन करि ओढी,
ज्यों कीं त्यों धर दीनी चदरिया ॥ ६॥
2 comments:
bahaut hee pyaree post ban padee hai jha jee.
कबिर जी की रचना प्रेषित करने के लिए आभार।
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