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Sunday, September 27, 2015

एक किसान की चुनावी डायरी-3

सड़क के मामले में बिहार अब पिछड़ा नहीं है। खासकर फोर-लेन सड़कों ने तो बिहार का भाग्य ही बदल कर रख दिया है। हम पूर्णिया से तीन घंटे में दरभंगा पहुंच जाते हैं। किसानी करने का जब ख्याल आया था तब यही सोचते थे कि शहर से गाम तक की सड़कें क्या उसी तरह की होगी जैसा हम दिल्ली-लखनऊ में देखते आये हैं? मन में लालू यादव की छवि थी। फिर जब 2012 में कानपुर से एक दिन अचानक इनोवा टेक्सी से सीधे पूर्णिया पहुंच गए तो लगा कि हाँ बिहार तो बदला है। चकाचक सड़क...

खैर, चलिये अब 2015 के विधानसभा चुनाव की बात करते हैं। लालू यादव के जंगल राज छवि की बात दो महीने पहले तक गाम-घर में हम खूब सुनते थे लेकिन इन दिनों सब उनके बेटे के चुनाव लड़ने की बात  करने लगे हैं।
दरअसल हम सभी की पॉलिटिकल यादाश्त बड़ी छोटी है-शार्ट टर्म मेमोरी :) लालू यादव क्या थे, जगन्नाथ मिश्र क्या थे ..इस पर कोई सोचता नहीं है। सियासी हरकतें हमेशा से हमें एक खास समय के लिए बांधती है और फिर हम आजाद हो जाते हैं। कबीर की एक वाणी है- त्रिगुण फांस। चुनाव के वक्त यह शब्द मुझे खूब खींचता है।

पूर्णिया में एक बुक स्टाल पर शाम में बातचीत हो रही थी। एक ने कहा कि लालू यादव का इस बार सबकुछ दांव पर है। बेटे को चुनाव में खड़ाकर वे कुछ इशारा कर रहे हैं । इस बातचीत को आगे बढ़ाते हुए एक छात्र ने कहा कि लालू का सारा ध्यान बेटे को जीताने पर ही लगा रहेगा : ) मतलब लालू अपने बेटे के विधानसभा क्षेत्र में जी-जान लगा देंगे। लेकिन ऐसा ही होगा, इसकी क्या गारंटी है।

वैसे बुक स्टाल पर कालेज के छात्रों की बाचतचीत मुझे मजेदार लग रही थी। पूर्णिया विधानसभा क्षेत्र के बारे में बुजुर्ग रामवचन चौधरी ने बताया कि राजकिशोर केशरी ने कभी विजय खेमका को साइड कर विधायकी हासिल की थी , आज समय का पहिया सीधा हुआ है। उन्होंने कहा कि महागठबंधन ने कांग्रेस को यह सीट हारने के लिए दी है। रामवचन चाचा की बातें सही है या गत यह तो वक्त ही बाताएगा।

उधर, दिल्ली में अपने पत्रकार साथी सब बता रहे हैं कि चुनाव में जदयू महागठबंधन से कांटे की टक्कर का सामना कर रही भाजपा अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर 500 से ज्यादा रैली करेगी।  अकेले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 20 से 22 बड़ी सभाओं को संबोधित करेंगे। मोदी की सभाओं को लेकर लोगबाग बातचीत कर रहे हैं। एक बात तो लोकसभा चुनाव के बाद सब समझने लगे हैं कि चुनावी सभा को हाइटैक किया जाने लगा है। बडे-बड़े कैमरे हवा में घुमते रहते हैं, इस पर लोग बात करते हैं। शायद उसे जिमी कैमरा कहते हैं।

वहीं दूसरी ओर नीतीश कुमार ने लोगों से कह रहे हैं कि विशेष पैकेज में कुछ नहीं है। बिहार का अपना विकास मॉ़डल है और बिहार में समावेशी विकास हुआ है। बिहार का विकास बिहारी ही करेगा कोई बाहरी नहीं।

इन सबके बयानों के बीच में भावी विधायकों के वाहनों पर भी आपके किसान की नजर है। उनके कपड़ों पर, स्टाइल पर,  नए नए गाड़ी पर...आदि आदि। अभी तो कहानी शुरु ही हुई है।

विधायकी का चुनाव लड़ रहे एक ने बताया कि उन्होंने इस बार बाहर से मीडिया मैनेजर लाया है। मीडिया मैनेजर शब्द हमको बड़ा मायावी लगता है। चुनाव लड़ रहे उस व्यक्ति की बात मानें तो फेसबुक पोस्ट लिखने के लिए अच्छी खासी रकम अदा की जाती है।

उनकी बातों को सुनकर मुझे खुद पर तरस आया कि एक हम हैं, जो यहां मुफ्त में बकैती कर रहे हैं । बैकती से याद आया किसानी को मु्द्दा कोई बनाता कहां है सब तो बस विकास -विकास की रट लगा रहे हैं। हम भी आलू के लिए खेत तैयार करने में जुटे हैं । बाद बांकि जो है सो तो हइए है।
#BiharElections2015

Wednesday, September 23, 2015

रेणु ने मांगे थे नाव पर वोट व पाव भर चावल

बिहार में इस वक्त चुनाव की बहार है। राजनितिक दलों में टिकट का बंटवारा लगभग हो चुका है। जिन्हें टिकट मिला वे खुश हैं और जिन्हें नही मिला वे  आगे की रणनीति में जुटे हैं। राजनीति तो यही है, आज से नहीं हजारों बरसों से।

खैर, बिहार में मौसम भी गरम था लेकिन पिछले कुछ दिनों से बारिश हो रही है । शायद टिकट बंटवारा का असर हो :)  मौसम बदलते ही आपके किसान को साहित्यिक-चुनावी बातचीत करने का मन करने लगा। आप सोचिएगा कहां राजनीति और कहां साहित्य। दरअसल हम इन दोनों विधाओं में सामान हस्तक्षेप रखने वाले कथाशिल्पी फणीश्वर नाथ रेणु की बात कर रहे हैं।

रेणु ने 1972 के बिहार विधानसभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा था। उनका चुनाव चिन्ह नाव था , हालांकि चुनावी वैतरणी में रेणु की चुनावी नाव डूब गयी थी लेकिन चुनाव के जरिए उन्होंने राजनीति को समझने-बूझने वालों को काफी कुछ दिया। मसलन चुनाव प्रचार का तरीका या फिर चुनावी नारे।
रेणु ने फारबिसगंज विधानसभा क्षेत्र को चुना था क्योंकि वह उनका ग्रामीण क्षेत्र भी था।

इस विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधत्व  अभी तक उनके पुत्र पद्मपराग वेणु कर रहे हैं। हालांकि इस बार भारतीय जनता पार्टी ने उनका टिकट काटकर मंचन केशरी को टिकट दिया है। रेणु के बेटे ने इस सम्बन्ध में फेसबुक पर सवाल भी उठाये हैं। उनके सवाल बहुत लोगों के लिए जायज भी हो सकते हैं। हालांकि राजनीति में जायज और नाजायज में कितना अंतर होता है ये हम सब जानते हैं।

अब चलिए हम 2015 से 1972 में लौटते हैं। उस वक्त फणीश्वर नाथ रेणु ने किसी पार्टी का टिकट स्वीकार नहीं किया था। 31 जनवरी 1972 को रेणु ने पटना में प्रेस कांफ्रेस में कहा कि वे निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में चुनाव लड़ेंगे। उन्होंने कहा था कि पार्टी बुरी नहीं होती है लेकिन पार्टी के भीतर पार्टी बुरी चीज है। उनका मानना था कि बुद्धिजीवी आदमी को पार्टीबाजी में नहीं पड़ना चाहिए। 
रेणु का चुनावी भाषण अद्भूत था।

उन्होंने खुद लिखा है-  " मैंने मतदाताओं से अपील की है कि वे मुझे पाव भर चावल और एक वोट दें। मैं अपने चुनावी भाषण में रामचरित मानस की चौपाइयां,दोहों का उद्धरण दूंगा। कबीर को उद्धरित करुंगां, अमीर खुसरो की भाषा में बोलूंगा, गालिब और मीर को गांव की बोली में प्रस्तुत करुंगा और लोगों को समझाउंगा। यों अभी कई जनसभाओं में मैंने दिनकर, शमशेर, अज्ञेय, पनंत और रघुवीर सहाय तक को उद्धृत किया है-
दूध, दूध  ओ वत्स, तुम्हारा दूध खोजने हम जाते हैं- दिनकर
यह दीप अकेला स्नेह भरा-अज्ञेय
बात बोलेगी, मैं नहीं- शमशेर
भारत माता ग्रामवासिनी-पन्त
न टूटे सत्ता का तिलिस्म, न टूटे- रघुवीर सहाय

72 के चुनाव के जरिए रेणु अपने उपन्यासों के पात्रों को भी सामने ला रहे थे। उन्होंने कहा था-  “मुझे उम्मीद है कि इस चुनाव अभियान के दौरान कहीं न कहीं मरे हुए बावनदास से भी मेरी मुलाकात हो जाएगी, अर्थात वह विचारधारा जो बावनदास पालता था, अभी भी सूखी नहीं है।”

चुनाव में धन-बल के जोर पर रेणु की बातों पर ध्यान देना जरुरी है। उन्होंने कहा था- “लाठी-पैसे और जाति के ताकत के बिना भी चुनाव जीते जा सकते हैं। मैं इन तीनों के बगैर चुनाव लड़कर देखना चाहता हूं। समाज और तंत्र में आई इन विकृतियों से लड़ना चाहिए।”

रेणु का चुनाव चिन्ह नाव था। अपने चुनाव चिन्ह के लिए उन्होंने नारा भी खुद गढ़ा..उनका नारा था- 
" कह दो गांव-गांव में, अब के इस चुनाव में/ वोट देंगे नाव में, नाव मे, नाव में।।
कह दो बस्ती-बस्ती में मोहर देंगे किस्ती में।।
मोहर दीजै नाव पर, चावल दीजै पाव भर....
कह दो बस्ती-बस्ती में मोहर देंगे किस्ती में।।
मोहर दीजै नाव पर, चावल दीजै पाव भर....
मोहर दीजै नाव पर, चावल दीजै पाव भर....

राजनीति में किसानों की बात हो, मजदूरों की बात हो, ऐसा रेणु चाहते थे। राजनीति में किसानों की बात हवा-हवाई तरीके से किए जाने पर वे चिन्तित थे। वे कहते थे- ' धान का पेड़ होता है या पौधा -ये नहीं जानते , मगर ये समस्याएं उठाएंगे किसानों की ! समस्या उठाएंगे मजदूरों की ! "

गौरतलब है कि राजनीति में रेणु की सक्रियता काफी पहले से थी। साहित्य में आने से पहले वह समजावादी पार्टी और नेपाल कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता थे।

(
प्रभात खबर में प्रकाशित 23 सितंबर 2015)

Monday, September 21, 2015

एक किसान की चुनावी डायरी-1

बिहार चुनावी मूड में आ चुका है। हर दल लगभग सीटों का एलान कर ही चुकी है। रूठने-मनाने का दौर चालू है। और शायद चालू ही रहेगा। इस बीच चौक - चौराहों की बोली-बानी अब मुझे खींचने लगी है। सीमांचल में टिकट बंटवारे को लेकर राजग में जो हो-हल्ला हुआ है उसका लाइव नजारा बाजारों में देखने को मिलता है। कल दरभंगा-मधुबनी गया तो वहां की भी बोली -बानी ऐसी ही थी।

खेमे में बंटे लोग पॉलीटिकल- ज्ञान बांच रहे हैं। कोई कहता है कि अब सुशील मोदी की चलती ही नहीं है। यदि चलती तो पूर्णिया से दिवंगत राजकिशोर केशरी की पत्नी को फिर टिकट मिलता या फिर फारबिसगंज से फणीश्वर नाथ रेणु के बेटे पद्मपराग राय वेणु का टिकट नहीं कटता।

वही हाल धमदाहा विधानसभा क्षेत्र का लग रहा है। राजद छोड़कर भाजपा में आए दिलीप यादव का अंतिम समय में टिकट कट गया और गठबंधन के सहय़ोगी रालोसपा को यह सीट लड़ने के लिए मिल गई। नाटक यह देखिए, रविवार को धमदाहा में लोकजनशक्ति पार्टी के मालिक रामविलास पासवान रैली कर निकल लिए। लोगबाग तो दिलीप यादव को विधायक ट्रिट करने लगे थे :) दरअसल उनकी एसयूवी गाड़ी के काफिले को देखकर। फेसबुक पर किसी ने कहा कि अब उन्हें रालोसपा का प्रचार करना पड़ेगा। राजनीति की विडंबना यही है शायद।

दरअसल चुनावी चिकचिक में बहुत कुछ फिलहाल भाजपा के साथ नहीं दिख रहा है। यहां हर कोई अपना राग अलाप रहा है। विधानसभा चुनाव की बातें गली-मोहल्ले और हाट-बजार में बड़े चाव से की जा रही है। गोल गप्पे और चाट-समोेस की तरह।

कुछ लोग तो यह कह रहे हैं कि इस चुनाव में सबसे बड़ा फायदा लालू यादव को मिलने जा रहा है। उनकी छवि सुधर रही है। लोगबाग जंगलराज का मंत्र नहीं जप रहे हैं अब। उनके बेटे भी अब राजनीति में आ चुके हैं। वहीं कुछ लोग सुशील मोदी के बारे में कह रहे हैं कि एक लॉबी छोटे मोदी को पछाड़ने में लगी है। पार्टी के भीतर पार्टी बन गई है जो सुशील मोदी को चलने नहीं दे रही है। वैसे उनका फेसबुक पन्ना रंगीन बना हुआ है। एक नई तस्वीर अपलोड हुई है जिसमें वे लाल रंग के हेलीकाप्टर पर सवार हैं।

वहीं नीतीश कुमार अब गंभीर होकर  सबकुछ देखते नजर आ रहे हैं। उनके फेसबुक पेज पर विकास और कार्यक्रम आदि की बातें हो रही है।

वैसे अब जैसे जैसे चुनावी तारीख नजदीक आएगी, खेल और भी मजेदार हो जाएगा। इसी बहाने सुरक्षा व्यवस्था जरुर तंदरुस्त हो गई है। पुलिस सतर्क है। लोगबाग गाड़ी के कागजात आदि लेकर यात्रा कर रहे हैं :)

किसान का चुनावी गपशप यूं ही जारी रहेगा। इसी बीच फेसबुक पर किसी ने मेरे  एक पोस्ट पर कमेंट किया है कि "प्रचार कैसेट बनवाने के लिए संपर्क करें" :) मतलब रोजगार के द्वार भी खुल रहे हैं ।

बाद बांकि जो है सो तो हइए है। बारिश हुई है तो मौसम सुहाना तो जरुर हुआ है। धान के खेत हरियर लग रहे हैं।  वैसे लोगबाग यह भी पूछते हैं कि एक रैली में कितना करोड़ रुपया खर्च होता है !

#‎BiharElections2015‬