पंखुरी |
तुम्हारा रोना- उं उं..हउं....
फिर सो जाना
फिर दोनों हाथों से
मुझे छू लेना
तुम्हारे स्पर्श में
नरम गरमी का अहसास
हर बार होता है,
मानो
ऐसा पहली बार होता है
हर सुबह,
उठते ही देखना- टुकटुक,
टुकुर टुकुर
फिर धीरे से-मुस्कुरा देना
बेटी हो तुम मेरी
मैं पिता
होना पिता
होना बेटी
सबकुछ
तुम्हारे लिए
सब तुम्हारे लिए....
फिर एक दिन
तुमने खिलखिला कर हंस दिया
हम देखने लगे तुम्हें
तुम्हारी तरह
टकटकी लगाके
तुम्हारी अपनी आवाज की हंसी में
हम अपनी आवाज खोजने लगे
तुम्हारे लिए, बेटी
सब तुम्हारे लिए..
फिर आया वह दिन
जब तुमने पहली बार
पेट के बल
लेटना सीखा
दुनिया को
मानो लेटे लेटे
तुमने चख लिया ..
तुम्हीं ने हमें
दिया है अहसास
देखने का
दुनिया को
तुम्हारी पहली
खिल-खिल हंसी की
आवाज में ..
हमने भी दुनिया को
चख लिया,
शहद-शहद
तुम्हारे लिए..
(कानपुर, 6 फरवरी 2012, सुबह -पांच बजे)
9 comments:
इस वात्सल्यपूर्ण रचना के लिए ढेरों बधाई स्वीकारें...
नीरज
बहुत मीठी.... बेटी होती ही ऐसी है ...स्नेह से भर देती है मन और ये जीवन..
Bhavnao me doobi ek rachna.
bachapan sang jina ek sukhad smriti.
bachapan sang jina ek sukhad smriti.
बच्चों के साथ एक जीवन और जी लेते हैं हम.
इस सुन्दर रचना के लिए बहुत-बहुत, बधाई !
शब्दों में वात्सल्य उतर आया है ...
दरअसल बच्चे हिते ही ऐसे हैं ... बहुत सुन्दर रचना ...
बहुत ही मीठी और प्यारी रचना है आपकी ,भावुक करती हुई सुन्दर प्रस्तुति ...
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