Friday, December 05, 2025

ममता के बंगाल में क्या है भाजपा का प्लान!

नया साल पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव लेकर आ रहा है। पश्चिम बंगाल में विधानसभा की कुल सीटें 294 है। यहां बहुमत का आंकड़ा 148 है। राज्य में इस समय तृणमूल कांग्रेस की सरकार है, जबकि भारतीय जनता पार्टी मुख्य विपक्षी दल है।
पश्चिम बंगाल में 2026 के मार्च-अप्रैल में विधानसभा चुनाव होना है। भारतीय जनता पार्टी अभी से अपनी रणनीति बनाने में जुट गई है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पश्चिम बंगाल के भाजपा सांसदों से संसद भवन में मुलाकात की थी। इस मुलाकात में मोदी ने पश्चिम बंगाल के भाजपा सांसदों से राज्य में कड़ी मेहनत करने को कहा था।

दरअसल बिहार के बाद भाजपा का अब लक्ष्य बंगाल है, जहां पार्टी आज तक सरकार नहीं बना पाई है।
 
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में कई राज्यों में कमल खिल चुका है लेकिन पश्चिम बंगाल में अबतक कमल नहीं खिला है। वैसे बीजेपी बंगाल में कमल खिलाने की कोशिश में लंबे समय से लगी है। बंगाल फतह करने का बीजेपी का सपना अभी तक अधूरा है।

पश्चिम बंगाल में फतह हासिल करना भाजपा की दिली तमन्ना है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने शानदार प्रदर्शन किया था। लेकिन, उसके बाद के दो चुनावों 2022 के विधानसभा और फिर 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी अपने उस प्रदर्शन को नहीं दोहरा पाई।

तमाम कोशिश के बाद भी वह एक सीमा से आगे नहीं बढ़ पा रही है। कहा जा रहा है कि भाजपा पश्चिम बंगाल में अपनी चुनावी रणनीति बदल रही है। वह अब चुनाव को पूरी तरह से हिंदू राष्ट्रवाद के मसले पर केंद्रित नहीं करना चाहती है क्योंकि राज्य में करीब 30 फीसदी मुस्लिम आबादी है। इसके साथ पश्चिम बंगाल एक ऐसा राज्य है जहां बिहार-यूपी की तरह जाति बहुत अहम मुद्दा नहीं है।

वैसे यह सच है कि बिहार चुनाव में जीत के बाद भारतीय जनता पार्टी का आत्मविश्वास मज़बूत हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बंगाल के बीजेपी सांसदों के साथ बैठक में टीएमसी की नाकामियों पर फोकस करने की सलाह दी थी। ऐसे में बंगाल में बीजेपी के सांसदों और विधायकों ने कमर कस ली है और पार्टी के कार्यकर्ताओं ने भी चुनाव अभियान के लिए तैयारियों को बढ़ा दिया है।

बंगाल में चुनाव जीतने के लिए बीजेपी के 'बंगाल मिशन' के तहत पार्टी पूरे महीने राज्य में 13,000 रैलियाँ करेगी, जो 5 दिसंबर से 5 जनवरी तक चलेंगी। ये रैलियाँ ग्रामीण और शहरी इलाकों में आयोजित होंगी। बीजेपी ममता और पार्टी के सदस्यों पर व्यक्तिगत हमले करने के बजाय भ्रष्टाचार, कानून-व्यवस्था और वंशवाद जैसे मुद्दों पर टीएमसी को निशाना बनाएगी।

इसके अलावा बीजेपी स्थानीय मुद्दों जैसे बेरोजगारी, प्रवासी मजदूरों की समस्या और बांग्लादेश के घुसपैठियों के मुद्दे पर भी टीएमसी को घेरेगी। इसके लिए पार्टी ने राज्य के सभी बूथों पर संगठनात्मक सक्रियता बढ़ाने का फैसला लिया है।

बंगाल चुनाव में बीजेपी को जीत दिलाने के लिए पीएम मोदी भी राज्य में रैलियाँ कर सकते हैं। सूत्रों के अनुसार चुनाव अभियान के तहत पीएम मोदी राज्य में 7 चुनावी रैलियाँ कर सकते हैं।

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों की सरगर्मी के बीच भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपनी तैयारियां तेज कर दी हैं। इसी क्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 20 दिसंबर को बंगाल का दौरा करेंगे। वह नादिया जिले में जनसभा को संबोधित करेंगे। सूत्रों के मुताबिक, इस दौरान पीएम मोदी बंगाल भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के साथ बैठक भी करेंगे। उसमें संगठन की तैयारियों, चुनावी रणनीति, प्रमुख मुद्दों और अभियान की दिशा पर मंथन होगा। पार्टी राज्यभर में व्यापक जनसंपर्क की तैयारी कर रही और जनवरी में 4 से 6 परिवर्तन यात्राएं शुरू करने की योजना है।

इन यात्राओं का मकसद जिलों में जनता से जुड़ना, संगठन को मजबूत करना और तृणमूल सरकार से जुड़े मुद्दों को उजागर करना है। प्रधानमंत्री के भी इनमें से एक बड़ी परिवर्तन यात्रा को संबोधित करने की संभावना है, जिससे चुनावी माहौल और गरमाएगा।

वहीं, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी जनवरी से बंगाल का दौरा शुरू कर सकते हैं। वह बूथ स्तर पर जमीनी हालात का जायजा लेंगे, संगठन को मजबूत करने पर ध्यान और पार्टी की रणनीति को धार देंगे। भाजपा आगामी चुनावों में बिगड़ती कानून-व्यवस्था, भ्रष्टाचार, महिला सुरक्षा, घुसपैठ और स्थानीय शासन संबंधी मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करेगी।

इन सबके बीच मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपनी सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं को तेजी से आगे बढ़ा रही है। क्योंकि हाल ही में कई राज्यों में हुए चुनावों में प्रदेश सरकार की योजनाओं के बदौलत ही पार्टियां सत्ता में बरकरार रही है। राज्य सरकार श्रमश्री योजना, स्वास्थ्य साथी योजना, ग्रामीण आवास सुरक्षा योजना (बांग्लार बारी), महिलाओं और छात्रों के लिए योजनाएं, खाद्य साथी योजना जैसी लोक कल्याणकारी योजनाओं को तेजी से घर – घर तक पहुंचाने में जुट गई है।

अगले साल बंगाल में होने वाला विधानसभा चुनाव टीएमसी और बीजेपी दोनों के लिए महत्वपूर्ण है। सवाल है कि ममता बनर्जी चौथी बार मुख्यमंत्री बन पाएंगी या बीजेपी राज्य में अपनी सरकार बनाने में सफल हो पाएगी। बंगाल के चुनाव को लेकर राज्य की राजनीति जोर पकड़ती जा रही है। अब देखना इस बार बंगाल का सियासी ऊंट किस करवट बैठता है।

#WestBengal

Monday, December 01, 2025

क्या सीमांचल का चेहरा बनेंगी लेशी सिंह!





बिहार में फिर से नीतीश सरकार बन चुकी है। विधानसभा चुनाव में इस बार छठी बार रिकार्ड मतों से पूर्णिया के धमदाहा सीट से जीतने वाली लेशी सिंह अपने करीब तीन दशकों के सियासी सफर में सातवीं बार बिहार में मंत्री बनीं हैं। वे न केवल पूर्णिया बल्कि पूरे सीमांचल में जदयू की सबसे कद्दावर चेहरा हैं।

इस बार वे पूरे बिहार में सर्वाधिक मत प्राप्त करने वाले विधायकों में दूसरे स्थान पर रहीं हैं. लेशी सिंह पहली और एकमात्र ऐसी नेत्री हैं जिन्होंने लगातार छठी बार धमदाहा में जीत हासिल की। इससे पहले लक्ष्मी नारायण सुधांशु लगातार चार बार जीते थे। इससे पहले लेशी सिंह सबसे पहले 2000 में समता पार्टी की टिकट से चुनाव लड़ीं और जीत कर आयीं। फिर उन्होंने जदयू प्रत्याशी के रुप में क्रमवार रुप से 2005, 2010, 2015 एवं 2020 में कुल पांच चुनाव जीत कर बिहार में अपनी अलग पहचान बनायी। समता पार्टी के कार्यकाल से ही श्रीमती सिंह की निष्ठा पार्टी के प्रति बरकरार रही है।
अपने राजनीतिक सफर में वे सदैव मुख्यमंत्री के विश्वास पात्रों में एक रही हैं। सहयोगी दलों के नेताओं के साथ आम अवाम से भी उनका संबंध हमेशा बेहतर रहा है। धमदाहा के साथ-साथ पूरे जिले के विकास के प्रति उनका प्रयास उनकी लोकप्रियता का आधार रहा है। यही कारण है कि धमदाहा की जनता ने विपक्ष के तमाम समीकरणों को ध्वस्त कर लेशी सिंह को ताज पहनाया है।

सीमांचल से दो मंत्री बनाए गए हैं। जदयू कोटा से लेशी सिंह और भाजपा कोटा से किशनगंज के दिलीप जायसवाल को मंत्री बनाया गया है। बिहार सरकार में मंत्री पद की हसरत संजोने वाले सीमांचल के अन्य विधायकों को अभी इंतजार करना होगा।  

बिहार की राजनीति में सीमांचल की उपस्थिति को और मजबूत करने के लिए लेशी सिंह और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल को प्रमुखता से सामने लाया गया है। खासकर, लेशी सिंह पर एनडीए की खास नजर बनी हुई है। राजनीति के जानकारों का मानना है कि लेशी सिंह को सीमांचल का चेहरा बनाने की कवायद शुरू हो चुकी है। दरअसल सीमांचल के 24 विधानसभा सीटों की बागडौर संभालने वाले किसी एक नेता पर एनडीए की नजर बनी हुई है। कभी इस इलाके में तसलीमुद्दीन की तूती बोलती थी।

धमदाहा विधानसभा क्षेत्र से छठी जीत दर्ज करने वाली जदयू की वरिष्ठ नेत्री लेशी सिंह ने गुरुवार को सातवीं बार मंत्री पद की शपथ ली है। सन 1995 में घर की दहलीज लांघ राजनीति में प्रवेश करने वाली मंत्री लेशी सिंह धमदाहा से पहली बार सन 2000 में समता पार्टी से विधायक चुनी गई थी।

धमदाहा विधानसभा क्षेत्र से मिली इस पहली जीत के बाद उनका राजनीतिक सफर लगातार नयी मुकाम की ओर अग्रसर रहा। फरवरी 2005 के चुनाव में वे जनता दल यू से विजयी रही, लेकिन अक्टूबर 2005 के चुनाव में वे पराजित हो गई।

पार्टी ने संगठन के प्रति असीम निष्ठा के चलते उनका कद इससे कतई छोटा नहीं होने दिया गया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा वर्ष 2007 में उन्हें महिला आयोग की अध्यक्ष मनोनीत किया गया। आयोग के अध्यक्ष के रुप में उनका कार्यकाल काफी सफल रहा और उन्हें पूरे सूबे में अपनी अलग पहचान बनायी।

इससे पूर्व पार्टी की महिला प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष के रुप में भी उन्होंने बेहतर कार्य किया। इसी तरह प्रदेश महासचिव व राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य के रुप में भी उनकी भूमिका सराहनीय रही।

लेशी सिंह भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय की सीनेट सदस्य के रूप में भी अपनी भूमिका का बखूबी निवर्हन किया। वर्ष 2010 के चुनाव में उन्होंने धमदाहा से पुन: जीत दर्ज की और वर्ष 2014 में पहली बार राज्य मंत्रिमंडल में उन्हें स्थान मिला।

उसके बाद वर्ष 2015, वर्ष 2020 व अब 2025 की जीत के साथ वे धमदाहा विधानसभा क्षेत्र से जीत का छक्का लगा चुकी है। इस दौरान अलग-अलग राजनीतिक परिस्थितियों के बीच तीन बार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व एक बार जीतन राम मांझी की अगुवाई वाली सरकार में मंत्री बनी ।

सीमांचल में पार्टी का सबसे सशक्त चेहरा बन चुकी लेशी सिंह ने इंटर तक की शिक्षा ग्रहण की है। वर्ष 2025 के चुनाव में मिली जीत के बाद फिर से उन्हें मंत्री बनाया गया है।

गौरतलब है कि वर्ष 2000 में पहली बार विधायक बनने के चंद माह बाद ही उनके पति की हत्या हो गई थी, लेकिन वे इस आघात से भी विचलित नहीं हुई। विधानसभा क्षेत्र के ही सरसी गांव की रहने वाली लेशी सिंह अब पार्टी के स्तर पर भी एक मजबूत चेहरा बन चुकी है और क्षेत्र के अलावा राज्य में उनकी अलग छवि मानी जाती है। महिला राजनीतिज्ञ के रुप में उनकी कुशलता का लोहा सभी मानते हैं।


लेशी सिंह सीमांचल इलाक़े के पूर्णिया ज़िले की धमदाहा सीट से साल 2000 के बाद से लगातार चुनाव जीत रही हैं।

लेशी सिंह बिहार की पूर्ववर्ती सरकार में मार्च 2024 तक खाद्य मंत्री भी रही हैं। उनके पति बूटान सिंह पूर्णिया में राजनीति से जुड़े थे और साल 2000 में अदालत परिसर में उनकी हत्या कर दी गई थी।

बूटान सिंह पूर्णिया में समता पार्टी के जिलाध्यक्ष थे। आगे चलकर समता पार्टी ही 2003 में जनता दल यूनाइटेड बनी।

लेशी सिंह अपने पति की हत्या से पहले ही राजनीति में क़दम रख चुकी थीं लेकिन साल 2000 में उन्होंने धमदाहा सीट से उम्मीदवारी के साथ चुनावी राजनीति में क़दम रखा। इसके बाद से उन्होंने कोई चुनाव नहीं हारा है। लेशी सिंह बिहार के महिला आयोग की अध्यक्ष भी रही हैं।

वर्तमान सरकार में मंत्रीपद की शपथ लेने से पहले भी वो पिछली बिहार सरकार में खाद्य और उपभोक्ता संरक्षण विभाग की मंत्री रह चुकी हैं।

इन सबके बीच सीमांचल में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) अपने दमखम पर पांच सीट लेकर इलाके में अपनी उपस्थिति बरकरार रख हुई है। औवेसी खुद किशनगंज- पूर्णिया में दो दिन का कैंप करने जा रहे हैं।

गौरतलब है कि पिछले विधानसभा चुनाव में मिली बढ़त को मज़बूत करते हुए एआईएमआईएम ने बिहार की जिन 25 सीटों पर इस बार चुनाव लड़ा, उनमें से पांच अपने नाम की है।

इनमें जोकीहाट, बहादुरगंज, कोचाधामन, अमौर और बायसी सीटें शामिल हैं। ये सभी पांच सीटें मुस्लिम बहुल सीमांचल इलाक़े में आती हैं।

ऐसे में अब देखना है कि सीमांचल में किस नेता का चेहरा आने वाले वक्त में चमकने वाला है, जिसके हाथ में कोसी से लेकर सीमांचल तक की राजनीति पलेगी-बढ़ेगी।



एआईएमआईएम की ये जीत इसलिए अहम हो जाती है क्योंकि बिहार में एनडीए की लहर के बीच आरजेडी जैसी बड़ी पार्टी की सीटें 25 तक आकर सिमट गईं.

बिहार के नए ‘पॉवर हब’ बने सम्राट चौधरी !



बिहार विधानसभा चुनाव में प्रचंड जीत हासिल करने के बाद नई सरकार फुल एक्शन मोड में नजर आ रही है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पटना में अधिकारियों से बैठक कर रहे हैं तो डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी दिल्ली दौरे पर थे। गुरुवार को उनकी मुलाकात, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से हुई।

पहली बार गृह विभाग की जिम्मेदारी मिलने के बाद उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी पूरे जोर-शोर से प्रदेश की कानून व्यवस्था को सुधारने में लग गए हैं। गुरुवार, 27 नवंबर को दिल्ली में सम्राट चौधरी ने दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की। बिहार विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत के बाद दोनों नेताओं की पहली औपचारिक बैठक मानी जा रही है।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ सम्राट चौधरी की मुलाकात को लेकर फिलहाल कोई बयान नहीं आया है। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक इस औपचारिक बैठक में बिहार के कानून व्यवस्था की स्थिति, बुनियादी ढांचे के विकास, राज्य में निवेश को बढ़ावा देने और पुलिस के आधुनिकीकरण जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर विस्तार से चर्चा हुई है।


बिहार में नए राजनीतिक माहौल में उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी को गृह विभाग दिए जाने को सबसे बड़ी पार्टी के रूप में भाजपा के बढ़ते प्रभाव के प्रमाण के रूप में देखा जा रहा है।

गौर करने वाली बात यह है कि नीतीश कुमार ने पिछले दो दशक में, चाहे वो महागठबंधन के साथ सरकार हो या एनडीए के साथ, कभी भी गृह विभाग अपने अलावा किसी और को नहीं दिया। माना जा रहा है कि नीतीश ने भाजपा की लंबे समय से चली आ रही मांग को स्वीकार करते हुए सम्राट चौधरी को गृह विभाग आवंटित किया है। वैसे भी देश के गृहमंत्री अमित शाह तारापुर में चुनाव प्रचार के दौरान सम्राट चौधरी की कार्यशैली और मुद्दों की समझ की प्रशंसा की थी।

चुनाव प्रचार के दौरान अमित शाह ने मुंगेर में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए कहा था, 'आप सम्राट चौधरी को तारापुर से जिताइए और हम उन्हें बड़ा आदमी बना देंगे।'

अमित शाह के इस बयान के बाद इतना तो तय ही हो गया था कि सम्राट चौधरी को एनडीए की सरकार बनने पर कुछ बड़ा ही मिलेगा। वहीं अमित शाह के इस बयान को राजनीतिक हलकों में भाजपा नेतृत्व द्वारा सम्राट को भविष्य में पार्टी के चेहरे के रूप में पेश करने की मंजूरी के रूप में देखा गया।

गृह विभाग की बागडोर अब सम्राट के हाथों में आने से, प्रशासन और नौकरशाही पर उनका प्रभाव बढ़ने की उम्मीद है। कैबिनेट में नंबर दो की हैसियत से, सम्राट के पास कानून-व्यवस्था की पूरी कमान और जवाबदेही है,  और माना जा रहा है वह सीमांचल क्षेत्र में घुसपैठ जैसे मुद्दों को सीधे तौर पर संभालेंगे।

पिछले शुक्रवार को गुजरात में बीएसएफ के 61वें स्थापना दिवस समारोह में गृह मंत्री शाह ने कहा कि 'बिहार में भाजपा नीत एनडीए की जीत देश में घुसपैठियों के खिलाफ जनादेश है। एनडीए सरकार में नीतीश के मुख्यमंत्री बने रहने के बावजूद, अब भाजपा नेतृत्व की ओर बढ़ती दिख रही है।' ऐसे में माना जा रहा है कि अमित शाह की पूरी नजर अब सम्राट चौधरी पर है।

गौरतलब है कि किसी भी सरकार में गृह विभाग सबसे शक्तिशाली विभाग माना जाता है। या कुछ यूं कहें कि किसी गठबंधन की सरकार में ये अपनी ताकत दिखाने और जताने का माध्यम भी होता है। नई सरकार के इस फैसले से अब बिहार की राजनीति में करीब दो दशक बाद सबसे बड़ा पावर-शिफ्ट देखने को मिल रहा है।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पहली बार गृह विभाग की कमान खुद से हटाकर उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी को सौंप दी है, यह सिर्फ मंत्रालय का बदलाव नहीं यह सत्ता का नया नक्शा तैयार करने वाला फैसला है।

गृह विभाग बिहार सरकार का सबसे अहम मंत्रालय माना जाता है - कानून-व्यवस्था,पुलिस प्रशासन, खुफिया तंत्र और राज्य की सुरक्षा से जुड़ा हर अहम आदेश।  अब तक ये सब फैसले सीधे मुख्यमंत्री निवास से निकलते थे। लेकिन पहली बार यह शक्ति मुख्यमंत्री आवास से निकलकर डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी के हाथों में पहुंच गई है। यही कारण है कि इसे सिर्फ डिपार्टमेंट शफल नहीं, बल्कि सत्ता संरचना में ऐतिहासिक बदलाव माना जा रहा है।

गृह विभाग मिलने का मतलब साफ है अब राज्य की सुरक्षा, पुलिस सिस्टम, ट्रांसफर-पोस्टिंग और इन्वेस्टिगेशन जैसे बड़े फैसले उपमुख्यमंत्री के दफ्तर से तय होंगे। राजनीतिक गलियारों में एक बात अब साफ-साफ कही जा रही है सत्ता का नया केंद्र अब सिर्फ मुख्यमंत्री आवास नहीं, बल्कि सम्राट चौधरी का ऑफिस भी होगा। यह फैसला दिखाता है कि भाजपा सरकार में अपना दबदबा तेज़ी से बढ़ा रही है। सम्राट चौधरी को पार्टी और सत्ता दोनों में टॉप लेवल रोल दिया जा रहा है। आने वाले महीनों में वे बिहार बीजेपी का सबसे बड़ा चेहरा बनकर उभर सकते हैं।

बिहार की राजनीति में सम्राट चौधरी का उदय अब नई कहानी लिखने जा रहा है। सम्राट की राजनीतिक शैली, पार्टी पर पकड़, और अब गृह की कमान यह सब मिलकर उनके कद को और भी बड़ा करने जा रहा है।

अब इतना तो तय है गृह विभाग मिलने के बाद सम्राट चौधरी सिर्फ उपमुख्यमंत्री नहीं रहे, वे अब सरकार का दूसरा सबसे बड़ा पावर सेंटर बन चुके हैं। यह सिर्फ जिम्मेदारी का विस्तार नहीं, यह बिहार की राजनीति में एक नए शक्ति केंद्र के उदय का एलान है।

गौरतलब है कि इस बार हुए बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एनडीए ने प्रचंड जीत दर्ज की है। वहीं महागठबंधन को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा है। एनडीए को इस चुनाव में कुल 202 सीट आए हैं, जिसमें से भाजपा को सबसे अधिक 89 सीट मिली है। वहीं जेडीयू को 85, लोजपा(रामविलास) को 19 और अन्य को 9 सीटें मिली है। इस बार बीजेपी बिहार में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में निकल के सामने आई है।

Friday, October 31, 2025

किशनगंज में पतंग, लालटेन, हाथ के बीच कहां गुम है तीर और कमल !



किशनगंज में एक मैदान है -रूईधासा मैदान। उसी के बगल से गुजर रहा था। चुनावी मौसम में इस मैदान का अलग ही महत्व होता है! खासकर रैलियों के वास्ते! इस जिले में चार विधानसभा सीट हैं, किशनगंज, कोचाधामन, बहादुरगंज और ठाकुरगंज।

यह इलाका राजनीति के शब्दावली में हाथ , लालटेन और पतंग से सजा हुआ है! ऐसे में आप पूछ ही सकते हैं कि तीर और कमल कहां है?
किशनगंज के अलग अलग विधानसभा क्षेत्रों में, जहां नेताओं की सभा होती है, उसके आस-पास चाऊमीन, चाट-समोसा और नारियल की बिक्री बढ़ी हुई है। मेला की तरह गाँव घर से लोग पहुंचे हैं। यह हाल प्रदेश के हर विधानसभा क्षेत्र का है! अखिर चुनाव तो एक पर्व ही है हम सबके लिए!

मुस्लिम बहुल इस इलाके में लोगबाग खुलकर चुनावी बतकही कर रहे हैं। आप कहीं निकल जाइए, बड़ी संख्या में लोग दिखेंगे, जो अपने प्रत्याशियों को लेकर बातचीत कर रहे हैं। कोचाधामन इलाके में असफाक भाई के हाथ में ढोल है और वे थाप ठोक रहे हैं।
यहां तस्लीम भाई मिलते हैं और कहते हैं कि ओवैसी फेक्टर यहां है, हम बाहरी को जगह देंगे क्योंकि वह हमारी बात कर रहा है!

ओवैसी को लेकर कुछ लोग गुस्से में भी दिखे। कोई उन्हें वोट कटवा कह रहा है तो कोई बाहरी। इन सबके बावजूद लोगबाग उनकी चर्चा कर रहे हैं ।

हैदराबाद से सीमांचल की कहानी शुरू में रोमांचक लग रही थी लेकिन अब कुछ कुछ अलग दिखने लगा है। शायद यही राजनीति है।

किशनगंज में एक ईरानी बस्ती है। पता नहीं अब किस रंग- रूप में है! 2012 में गया था वहां। उस वक्त बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए एक रपट तैयार की थी बस्ती की।
 
उधर, शहर और आसपास पुलिस प्रशासन चुस्त है! सुभाष पल्ली चौक पर नारायण दा मिले। उनका मानना है कि इस दफे चुनाव टाइट है लेकिन कम बेसी मोदी निकाल लेगा चुनाव!

लालू की बात यहां कोई नहीं कर रहा है। प्रशांत किशोर- ओवैसी की जरूर बात कर रहा है! कांग्रेस ने किशनगंज सीट पर अपने सिटिंग विधायक का टिकट काट कर कमरूल हुदा को हाथ थमाया है।
भाजपा ने स्वीटी सिंह को टिकट दिया है। वहीं जन सुराज ने ओवैसी के किसी बागी नेता को टिकट दिया है!

किशनगंज- अररिया जिले में मुस्लिम कई पॉकेट में बंटे हैं, मसलन सुरजापुरी, शेरशाहबादी, कुल्हैया आदि। इन बातों को सुनकर लगा कि राजनीति किस तरह हमें तोड़ती जा रही है और हम आसानी से टूटते जा रहे हैं।

किशनगंज में पतंग, लालटेन, हाथ के बीच कहां गुम है तीर और कमल के सवाल का जब जबाव ढूंढने निकला तो पता चला चारों विधानसभा क्षेत्रों में मुस्लिम मतों के बिखराव से ही मोदी या कहिए एनडीए को संजीवनी मिल सकती है।

इस इलाके में 1995 के बाद भाजपा को निराशा ही मिली है। कांग्रेस, राजद व जदयू के अलावा एआईएमआईएम पहले चारों विधानसभा क्षेत्रों में जीत का स्वाद चख चुका है। इस बार के चुनाव में भी महागठबंधन, एआईएमआईएम, जन सुराज पार्टी और आम आदमी पार्टी (आप) ने भी मुस्लिम उम्मीदवार पर ही दांव खेला है।

यहां से राजद, एआईएमआईएम समेत अन्य दलों ने भी मुस्लिम समुदाय पर ही दांव खेला है। कोचाधामन सीट से भाजपा ने वीणा देवी पर भरोसा जताया है। बहादुरगंज विधानसभा क्षेत्र से भी नौ प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं। इनमें सात मुसलमान हैं। यहां कांग्रेस, एआईएमआईएम ही नहीं, बल्कि एनडीए की ओर से लोजपा-रामविलास के खाते में गई इस सीट से मुसलमान प्रत्याशी को मैदान में उतारा गया है। प्रशांत किशोर की पार्टी ने यहां भाजपा से बागी हुए वरुण कुमार सिंह को टिकट दिया है।

ठाकुरगंज विधानसभा क्षेत्र से 10 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। इनमें से छह मुस्लिम समुदाय से हैं। यहां राजद, एआईएमआईएम, जन सुराज समेत अन्य दलों के अलावा निर्दलीय भी मुस्लिम समुदाय से हैं। जदयू ने यहां से गोपाल कुमार अग्रवाल पर भरोसा जताया है। यहां के सभी विधानसभा क्षेत्रों को मुस्लिम बहुल माना जाता है।
इन जगहों पर मुसलमानों की जनसंख्या 60 से 69 प्रतिशत तक है। एनडीए ने यहां से तीन हिंदू व एक मुस्लिम उम्मीदवार पर दांव खेला है। महाठगबंधन व एआईएमआईएम ने चारों सीटों से मुस्लिम प्रत्याशी को उतारा है। जन सुराज ने भी तीन सीटों पर मुस्लिम समुदाय के लोगों को ही टिकट दिया है। इस कारण मुस्लिम मतों में बिखराव की आशंका बनी हुई है।

यदि किशनगंज लोकसभा क्षेत्र के सभी चार विधानसभा क्षेत्रों की बात करें तो कुल 35 प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं। उनमें 25 मुसलमान हैं। सभी के अपने गणित व जीत के दावे हैं।
किशनगंज सदर विधानसभा क्षेत्र में 10 प्रत्याशी हैं। उनमें से आठ मुसलमान हैं, जो कांग्रेस, एआईएमआईएम, जन सुराज समेत निर्दलीय भी हैं। भाजपा ने यहां से पांचवी बार स्वीटी सिंह को मैदान में उतारा है। इसी प्रकार कोचाधामन विधानसभा क्षेत्र से छह उम्मीदवारों में चार मुस्लिम समुदाय से हैं।

यदि ओवैसी की बात करें तो सीमांचल की 24 में से 14 सीटों पर उनकी पार्टी एआईएमआईएम ने उम्मीदवार उतारे हैं। पिछले चुनाव में एआईएमआईएम ने 19 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और 5 सीटों पर जीत का स्वाद चखा था। साल 2020 के विधानसभा चुनाव में एआईएमआईएम को बिहार में कुल 1.24 फीसदी वोट मिले थे, लेकिन सीमांचल के मुस्लिम वोटरों में उनकी पकड़ मजबूत रही। करीब 11 फीसदी मुसलमानों ने एआईएमआईएम को वोट दिया था। सीमांचल के चार जिले किशनगंज, अररिया, पूर्णिया और कटिहार बिहार के मुस्लिम बहुल इलाके हैं, जहां सियासी दलों की नजरें टिकी हुई हैं। ये सभी 24 विधानसभा सीट एक केक की तरह है, जिसे काटकर सरकार बनाने की जुगत में हर पार्टी है। केक कौन काटता है यह तो वक्त ही बताएगा।

Friday, October 24, 2025

पीके क्यों नहीं लड़ेंगे चुनाव ?



बिहार के चुनावी मौसम में टिकट की मारामारी के बीच पिछले दो साल से बिहार बदलने का नारा गढ़ने वाले जन सुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर को लेकर हर जगह चर्चा हो रही है लेकिन राजनीति के इस रणनीतिकार ने यह कह कर सबको चौंका दिया है कि वे चुनाव नहीं लड़ेंगे।

दरअसल प्रशांत किशोर ने पेशा भले बदल लिया हो, भले ही वो चुनाव रणनीतिकार से राजनीति के मैदान में कूद पड़े हों, लेकिन अब भी ज्यादा भरोसा उनको चुनाव लड़ाने में ही है, न कि खुद लड़ने में।

गौरतलब है कि पहले वो नीतीश कुमार के खिलाफ या राघोपुर से तेजस्वी यादव के खिलाफ मैदान में उतरने की बात कर रहे थे, लेकिन अब उन्होंने सार्वजनिक तौर पर कदम पीछे खींच लिया है।

राजनीति को करीब से देखने वाले यह कह रहे हैं कि प्रशांत किशोर के जन सुराज अभियान में आरंभ से ही अरविंद केजरीवाल की राजनीति दिख रही थी। अरविंद केजरीवाल भी करपश्न को अपना हथियार बनाकर राजनीति करने उतरे थे। वे भी पीके की तरह ही अपने राजनीतिक विरोधियों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते रहते थे।
 
एक चीज और गौर करने की बात है कि जन सुराज पार्टी के उम्मीदवार भी इलाके के लोगों के फीडबैक के बाद ही चुने जाने का दावा पीके करते आए हैं और ऐसा ही कुछ अरविंद केजरीवाल भी करते थे।

लेकिन, खुद चुनाव लड़ने के मामले में अरविंद केजरीवाल से प्रशांत किशोर के विचार अब अलग दिखने लगे हैं। हालांकि अपने प्रचार तंत्र के जरिए प्रशांत किशोर ने चुनाव लड़ने को लेकर खूब हवा बनाई, लेकिन अब पीछे हट गए हैं।

नीतीश कुमार से लेकर तेजस्वी यादव तक के खिलाफ चुनाव लड़ने का दावा करने वाले प्रशांत किशोर ने हथियार डाल दिया है, और इसके लिए जन सुराज पार्टी के फैसले को सार्वजिनक करने का शायद बहाना बनाया है।

चुनाव अभियान पर निकलने से पहले प्रशांत किशोर ने पिछले ही हफ्ते कहा था, “मैं राघोपुर जा रहा हूं... वहां के लोगों से मिलकर उनकी राय लूंगा।”

प्रशांत किशोर ने तो यहां तक दावा किया था कि अगर वो राघोपुर से चुनाव लड़े तो तेजस्वी यादव को दो सीटों से चुनाव लड़ना पड़ेगा। प्रशांत किशोर का कहना था, 'तेजस्वी यादव का वही हश्र होगा जो राहुल गांधी को अमेठी में हुआ था।'

गौरतलब है कि 2019 के आम चुनाव में राहुल गांधी भी उत्तर प्रदेश की अमेठी और केरल की वायनाड लोकसभा सीट से चुनाव लड़े थे। राहुल गांधी को अमेठी में भारतीय जनता पार्टी की स्मृति ईरानी ने हरा दिया था।

लेकिन जब जन सुराज पार्टी के उम्मीदवारों की सूची आई तो मालूम हुआ राघोपुर से चंचल सिंह को टिकट दे दिया गया है। प्रशांत किशोर के करगहर से भी चुनाव लड़े की संभावना जताई जा रही थी, जहां से भोजपुरी गायक रितेश पांडेय को जन सुराज पार्टी का टिकट मिला है।

प्रशांत किशोर का कहना है, “पार्टी ने फैसला किया है कि मुझे विधानसभा चुनाव नहीं लड़ना चाहिए... इसलिए पार्टी ने तेजस्वी यादव के खिलाफ राघोपुर से अन्य उम्मीदवार की घोषणा की है... ये पार्टी के व्यापक हित में लिया गया फैसला है... अगर मैं चुनाव लड़ता तो इससे मेरा ध्यान आवश्यक संगठनात्मक कार्यों से हट जाता।”

प्रशांत किशोर के इस बयान के बाद लोग यह भी कहने लगे हैं कि जन सुराज के संस्थापक को शायद चुनाव लड़ने से अधिक चुनाव लड़वाने में दिलचस्पी है।

राजनीति में यह कहा जाता रहा है कि चुनाव मैदान में लड़ने के लिए उतरना होता है, हार या जीत के लिए नहीं। लेकिन, प्रशांत किशोर ने ये जोखिम नहीं उठाने का फैसला किया है। इस घटनाक्रम को देखने के बाद यह भी कहा जा सकता है कि पीके खुद को वैसी गारंटी नहीं दे पा रहे होंगे, जो अब तक अपने क्लाइंट को देते रहे हैं।

तेजस्वी यादव जिस राघोपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, वो लालू यादव के परिवार का गढ़ रहा है। लालू यादव और राबड़ी देवी दोनों ही राघोपुर से विधायक रह चुके हैं। तेजस्वी यादव के लिए बिहार में बहुमत हासिल करना मुश्किल हो सकता है, लेकिन राघोपुर से किसी के लिए अचानक मैदान में उतर कर उन्हें हराना उतना आसान भी नहीं दिखता है।

लोगबाग यह कहते हैं कि प्रशांत किशोर भले ही बिहार में बदलाव की आवाज बन कर उभरे हों, लेकिन उनकी छवि आज जनमानस में रणनीतिकार की ही है जो केवल चुनावी बिसात बिछाता है।

जन सुराज अभियान के संस्थापक के तौर पर प्रशांत किशोर पिछले दो वर्षों से गांव-गांव पदयात्रा कर जनता के बीच संवाद कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह आंदोलन किसी व्यक्ति या पद के लिए नहीं, बल्कि बिहार के भविष्य के लिए है।

हाल ही में भाजपा सांसद रविशंकर प्रसाद ने प्रशांत किशोर के चुनाव न लड़ने पर सवाल उठाया था और कहा था कि “प्रशांत किशोर चुनाव क्यों नहीं लड़ रहे हैं? हम यह सवाल जरूर उठाएंगे। वह भी बिहार को बदलना चाहते हैं..शायद उनका भी मुख्यमंत्री बनने का सपना है, इसलिए उन्हें चुनाव लड़ना चाहिए. हिम्मत क्यों नहीं है? ”

गौरतलब है कि पहले प्रशांत किशोर के राघोपुर विधानसभा सीट से लड़ने की चर्चा थी। जिस तरह से वह राजद और बिहार सरकार पर हमला बोलते थे उससे माना जा रहा था कि वह राघोपुर सीट से चुनाव लड़ेंगे। ऐसे में उनका सीधा मुकाबला तेजस्वी यादव से होता। तेजस्वी यादव भी राघोपुर सीट से चुनाव लड़ रहे हैं।

इन सबके बीच पीके की पार्टी में लोगों के जुड़ने का सिलसिला जारी है। इस कड़ी में अररिया के पूर्व सांसद सरफराज आलम ने राष्ट्रीय जनता दल को अलविदा कहकर ‘जन सुराज’ अभियान का दामन थामा है।

सरफराज आलम का ‘जन सुराज’ में शामिल होना राजद के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है। उन्होंने गुरुवार को आरजेडी से अपना इस्तीफा दिया था और कुछ ही घंटों बाद प्रशांत किशोर के साथ खड़े दिखे। सरफराज आलम सीमांचल की राजनीति का एक बड़ा चेहरा हैं। वह जोकीहाट विधानसभा क्षेत्र से चार बार विधायक रह चुके हैं और अररिया से एक बार सांसद भी चुने गए थे। उनके इस कदम से माना जा रहा है कि सीमांचल इलाके में ‘जन सुराज’ को काफी मजबूती मिलेगी।



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Girindra Nath Jha
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Sunday, September 14, 2025

पीके की सभा और जेसीबी!

बिहार की राजनीति इन दिनों हर रोज चुनावी गुणा-भाग के गणित को सुलझाने में लगी है। हर दल के नेताओं का आना-जान लगा हुआ है। सत्ताधारी दल लोकलुभावन फैसले लेकर जनता का मन मोहने में लगी है, वहीं विपक्ष सरकार के खिलाफ लगातार मुखर बनी हुई है।

इन दिनों पूरा बिहार बैनर-पोस्टर से भरा पड़ा हुआ है। भावी प्रत्याशियों के छोटे-बड़े बैनर आपको हर जगह दिख जाएंगे। इन सब हो-हल्ले के बीच जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर आपको हर दिन बिहार के किसी न किसी इलाके में सभा करते दिख जाएंगे।  

उनकी सभा को नजदीक से देखने पर आपको कई ऐसी चीजों को समझने का मौका मिलता है, जिससे आप कह सकते हैं कि आने वाला वक्त कॉरपोरेट पॉलिटिक्स का होने जा रहा है, जहां इवेंट ही सबकुछ होगा।

हाल ही में प्रशांत किशोर की एक सभा में वक्त गुजारने का मौका मिला। फिल्ड रिपोर्टिंग के सिलसिले में पूर्णिया – मधेपुरा सीमा के आसापास के इलाकों को समझने में लगा था। पता चला कि पूर्णिया के रूपौली विधानसभा क्षेत्र में प्रशांत किशोर की सभा है। तो हम भी पहुंच गए उनकी सभा में और जानने की कोशिश में जुट गए कि क्या क्या हो रहा है सभा स्थल पर और उसके आसपास।

हाईवे से ग्रामीण इलाकों तक पीले रंग के तोरण द्वार दिखने को मिले। रुपौली में हाल ही में एक स्थानीय नेता-व्यवसायी ने पार्टी का दामन थामा था। सुनने में आया कि वही पार्टी के रूपौली विधानसभा सीट से उम्मीदवार होगा।

प्रशांत किशोर की सभा में मनोरंजन का भी खास ख्याल रखा जाता है। जबतक वे मंच तक रोड शो करते नहीं पहुंचते हैं, तबतक कोई न गायक लोगों को गीत सुनाता रहता है। यहां भी एक गायक आया हुआ था, काफी कम उम्र का लड़का था जो भोजपुरी में गाना सुना रहा था।

सभा स्थल में लोगों की भीड़ अच्छी खासी थी, इवेंट को सफल करने के लिए प्रशांत किशोर की टीम लगी हुई थी।

इनकी सभा को देखते हुए हम 2014 के मोदी की रैलियों के इंतजामात को याद करने लगे। कुछ-कुछ ऐसा ही तब प्रशांत किशोर भाजपा नेता नरेंद्र मोदी के लिए किया करते थे।

खैर, प्रशांत किशोर की हर जनसभा में सभा स्थल से पहले आपको पंक्तिबद्ध जेसीबी देखने को मिल जाएगी। 

आप सोच रहे होंगे कि आखिर जेसीबी क्यों? दरअसल जेसीबी से फूल बरसाए जाते हैं प्रशांत किशोर पर। प्रशांत की पॉलिटिकल छवि को जेसीबी से एक अलग मुकाम तक पहुंचाने की कोशिश शायद उनकी इवेंट टीम कर रही हो।

यह सबकुछ प्रशांत किशोर के इवेंट टीम से जुड़े लोग की देखरेख में होता है। उनके काफिले में मीडिया वैन की तरह एक गाड़ी चलती है , जो उनकी यात्रा को कवर करती है। हर कुछ को काफी नजदीक से फिल्माया जाता है। फूलों की बरसात और इसी बीच प्रशांत किशोर का गाड़ी के ऊपर आना, हाथ उठाकर अभिभावदन करना, यह सब स्क्रिप्टनुमा आपको नजर आएगा।

प्रशांत किशोर जो कुछ कर रहे हैं अपनी सभाओं में, वह नया नहीं है। दरअसल यह सब अलग अंदाज में वे पहले ही नेताओं के लिए कर चुके हैं। इस बार कुछ अलग तरीके से वे अपने लिए करवा रहे हैं।

यदि आप प्रशांत किशोर की पॉलिटिक्स और उनके इवेंट मैनेजमेंट को फॉलो कर रहे होंगे तो आपको कुछ ऐसे चेहरे भी दिखेंगे, जिन्हें प्रशांत किशोर के साथ हर जगह देखते होंगे। वह चाहे पटना का शेखपुरा हाउस हो या फिर पूर्णिया का रूपौली। दरअसल उनकी टीम लगातार कैंपेंन में लगी है और टीम लीडर हर मोर्चे पर आपको दिख जाएंगे, प्रशांत किशोर के संग।

प्रशांत किशोर के भाषणों पर आप ध्यान देंगे तो कंटेंट में किसी तरह का बदलाव आपको नजर नहीं आएगा। बेहद ही गुस्से से संग वे हर जगह खुद मोर्चा संभाल लेते हैं और मंच पर अन्य लोगों को ज्यादा स्पेस न देकर खुद बिहार की बदहाली पर बोलने लग जाते हैं। यह उनका कैंपेंन स्टाइल है, जहां एक चेहरा सब पर हावी होता है और लोग उस चेहरे को उम्मीद से देखने लग जाते हैं।
आप गौर करेंगे तो पाएंगे कि डिजिटल स्पेस पर प्रशांत किशोर सबसे अधिक मुखर दिखते हैं। रील से लेकर उनके लंबे -लंबे भाषणों से डिजिटल स्पेस ‘पीला’ हुआ पड़ा है। दरअसल पीले रंग को प्रशांत किशोर ने चुना है और इसी रंग को उन्होंने अपना राजनीतिक हथियार भी बनाया है।

प्रशांत किशोर की सभाओं में यूट्यूबर सबसे अधिक दिखते हैं। रूपौली में भी ऐसा ही दिखा। इससे पहले किशनगंज में भी यही लोग दिखे थे।

दरअसल प्रशांत किशोर की मीडिया मैनेजमेंट टीम मैन स्ट्रीम मीडिया से अधिक यूट्यबर और डिजिटल इंफ्लयूंसर को स्पेस देती है। हाल ही में पटना के शेखपुरा हाउस, जहां प्रशांत किशोर रहते हैं, वहां सोशल मीडिया इंफ्लयूंसर का जमावाड़ा लगवाया गया था और वर्कशॉप के जरिए उन्हें खूब ज्ञान दिया गया। कई लोगों को मीडिया किट् भी दिया गया था।

इन सब चीजों को ध्यान से देखते हुए जब आप प्रशांत किशोर की सभाओं में दाखिल होते हैं तो महसूस करते हैं कि बहुत कुछ शानदार तरीके से मैनेज किया जा चुका है। भीड़ आसानी से पहुंच रही है, भोजपुरी गीतों के जरिए भीड़ का मनोरंजन हो रहा है। भीड़ के एक हिस्से में मोबाइल और माइक लिए लोग रील बनाने में लगे हैं, मंच पर भी कुछ लोग लगातार वीडियो बना रहे हैं, लाइव वीडियो फेसबुक पर स्ट्रीम किया जा रहा है.... सबलोगों को प्रशांत किशोर सेल्फी दे रहे हैं, वह तस्वीर सोशल मीडिया को गुलजार कर रही है।

यह सब आपको प्रशांत किशोर की हर सभा में देखने को मिलेगी। भीड़ के बीच बने पंडाल में प्रशांत लोगों से सीधा संवाद स्थापित करते हैं, वे पहले दिन से ही आक्रमक छवि बनाए हुए हैं, गुस्से में ही संबोधन करते हैं। यह सब कुछ भीड़ को काफी पसंद आ रहा है, क्योंकि गुस्सा तो ग्राउंड में है ही।

वैसे इन सब बातों में जो चीज प्रशांत किशोर की सभा को आकर्षक बनाती है वह है पीले रंग का जेसीबी। जेसीबी से फूल फेंकते लोगों की कहानी दरअसल भीड़ को फिल्मी लगती है। प्रशांत किशोर जानते हैं कि भीड़ को कैसे मैनेज किया जाता है, सड़क से लेकर सभा स्थल तक।

हिंदी दिवस- रेणु के गांव से !

हिंदी की दुनिया जिनसे समृद्ध हुई है, उनमें एक नाम फणीश्वर नाथ रेणु का भी है। रेणु हिंदी समाज के उन लोगों में से थे, जिन्हें अपने गांव से इश्क था। वे पटना से अक्सर अपने गांव आ जाया करते थे।

हम जैसे लोग भी अक्सर रेणु के गांव घूम आते हैं। बिहार के अररिया जिला में एक गांव है औराही हिंगना, यही है रेणु का ठिकाना।  

गांव से चंद किलोमीटर की दूरी से असम के सिलचर से गुजरात के पोरबंदर को जोड़ने वाली ईस्ट-वेस्ट कॉरिडोर की फोरलेन रोड भी गुजरती है। रोजाना हजारों छोटी-बड़ी गाड़ियां दौड़ती है।

हमारी नजर टकराती है हाइवे से सटे सीमेंट के सादे सपाट द्वार पर ,जिसे रेणु द्वार कहा जाता है। वहां से थोड़ा आगे बढ़ता हूं तो सिमराहा बाजार आता है, रेणु के गांव का हाट-बाजार। यहां किसी महामहिम के कर कमलों से अनावृत रेणु की सुनहरी आदमकद प्रतिमा देखने को मिलती है। और फिर इसके आगे है - रेणु का गांव औराही हिंगना।

रेणु के गांव में रेणु साहित्यकार के तौर पर नहीं के बाराबर दिखते हैं। औराही हिंगना में रेणु के नाम पर द्वार, प्रतिमा और एक शोध संस्थान के भवन के अलावा और कुछ नहीं दिखेगा।

तो सवाल उठता है कि लेखक की स्मृति किस रुप में गांव में जीवित है, तो जवाब एक ही है, किसान !

रेणु अपनी माटी में लेखक से नहीं किसान परिवार से पहचाने जाते हैं। आप उनके गांव जिस भी रास्ते से प्रवेश करेंगे, आपको माइल स्टोन पर रेणु गेट का नाम दिख ही जाएगा। लेकिन उनके साहित्य को अंकित करने वाला कुछ भी आपको दरो-दिवार भी नजर नहीं आएगा।

हालांकि उनका घर उनके साहित्य को बखूबी जी रहा है। आप किसी भी ऐसे व्यक्ति से पूछ लें, जो रेणु के घर-आंगन गया हो, वह यही कहता मिलेगा कि रेणु के घर में कुछ है,  जो हर किसी के मन को छू जाता है।

शायद उनके परिवार का आत्मीय व्यवहार। शायद उनके अपने कमरे का साक्षात दर्शन। शायद रास्ते में लहलहाते हुए खेल, आंखों में गढ़ती हुई हरियाली, खेतों के बीच पेड़ों के गुलदस्ते।

आंचलिकता के जादूगर फणीश्वरनाथ रेणु का अपने गांव औराही हिंगना से बेहद लगाव था। तमाम व्यस्तताओं के बावजूद हर 6 महीने पर गांव जरूर आया करते थे।

फणीश्वरनाथ रेणु अपनी कुटिया में बैठकर शब्दों को पिरोते थे। आज भी रेणु का वो कुटिया और उनके सामानों को विरासत के रूप में परिवार वाले सहेजकर रखे हुए हैं, जो दुनिया के शोधकर्ताओं को आकर्षित करता है।

समय के हिसाब से रेणु के ग्रामीण अंचल में बहुत कुछ बदल गया है और बहुत कुछ बदलने के कगार पर है। इन सबके बीच नहीं बदला है तो रेणु की वो कुटिया। फूस और पुआल से बना आशियाने का छत तो बांस की टट्टी पर मिट्टी लपेटे दीवाल खड़ा है।

आंचलिकता वाली ग्रामीण परिवेश की चरित्र चित्रण आज भी विद्यमान है। समय के अनुरूप छत पर नये खर (पुआल) चढ़ाये जाते हैं तो दीवाल से धूसरित हो जाती मिट्टी के लेप को भी नये लेप से समेट लिया जाता है।

इस विरासत को बचाये रखने में स्वयं रेणु के पुत्र पद्म पराग राय वेणु,अपराजित राय अप्पू और दक्षिणेश्वर राय पप्पू के साथ उनकी बहुएं लगी रहती हैं।

रेणु के गांव औराही हिंगना में विकास की बयारें बही है। यातायात के रूप में रेलवे और सड़क मार्ग की भी सुविधाएं हैं। 'परती परिकथा' की बालूचर वाली भूमि पर पक्की सड़कें हो गयी है। गांव में शिक्षा के लिए प्राइमरी, मिडल से लेकर हाई स्कूल तक आ गये हैं। वहीं चंद दूरी पर ही सिमराहा में रेणुजी के नाम से ही इंजीनियरिंग कॉलेज खुल गया है।

तो समय निकालकर आप भी देख आईए, अपने हिंदी के लेखकों का गाम-घर और महसूस करिए अपनी हिंदी को।