Wednesday, March 01, 2017

आलू को लेकर बात क्यों नहीं?


देश विरोध के मूड में है। राजधानी से लेकर ज़िला तक में 'रंग बिरंग' का विरोध हो रहा। आभासी दुनिया से लेकर कॉलेज कैंपस तक। हर रंग का विरोध। भक्त का विरोध , भक्त विरोधियों का विरोध। गाली-गलौच, धक्का-मुक्की सब।

इस विरोध-प्रतिरोध काल में ख़्याल आ रहा है क्यों न गोबर का गोईठा बनाया जाए। दरअसल जब विरोध का बड़ा मैदान सज ही रहा तो क्यों न गोईठा का धुआँ छोड़ा जाए। धुआँ से याद आया, आप बाज़ार में आलू दस रुपए किलो ख़रीदते हैं और किसान दो- तीन रुपए बेचता है। लेकिन इस मुद्दे पर तो विरोध का स्वर सुनाई ही नहीं देता है!

दरअसल जब इतना धक्का-मुक्की, ट्वीट-फ़ेसबुक स्टेटस हो रहा है तब किसान को लेकर भी हो-हल्ला हो, ऐसा मन करता है। लेकिन तभी गाँव के रामवचन बाबू और उस्मान चाचा आते हैं और कहते हैं -" भक्त हो या अ-भक्त, वाम हों या दक्षिण इन्हें खेत-पथाड़ से गंध लगता है। किसान का आंदोलन, विरोध - प्रदर्शन, आलू-धान का कम मूल्य जैसे विषय पर टीवी-अख़बार में थोड़े बहस होगा ! "

इन दोनों की बात सुनते हुए लगा कि सचमुच किसानी का समाज अपनी लड़ाई लड़ने के लिए ख़ुद ही तैयार नहीं है। हम ख़ुद के लिए सड़क पर उतरने के लिए तैयार नहीं है। तर्क गढ़ते हैं बस। आलू की क़ीमत कम मिलती है तो भी हम शांत हैं, अपने भाग्य का रोना रोते हैं और अगली फ़सल में जुट जाते हैं, जबकि वक़्त लड़ने का है। अब किसान को संगठित होना होगा। इस विरोध-प्रतिरोध काल में रियल से लेकर वर्चुअल वर्ल्ड तक किसान की समस्याओं को उठाना होगा। बेमतलब के विरोध  के स्वर  के बीच हमें ऊँची आवाज़ में अपनी बात रखनी होगी।

सोचिए जब गधा को लेकर बात हो सकती है तब क्यों नहीं आलू की बात हो?  गाली-गलौच, धक्का-मुक्की के इस काल में ज़रा फ़सल की वाजिब क़ीमत और उपज के बारे में सोचिएगा। आपके डाइनिंग टेबल को जो सजाता-सँवारता है, ज़रा उसके साथ भी सड़क पर उतारिए न! और हाँ, आप सब जब किसान के हक़ के लिए लड़ेंगे न तो भी आप टीवी पर दिखाई देंगे, पैनल में , प्राइम टाइम में, सब में। आशा है तब भी आप बहस करिएगा। लेकिन इन सब बातों के बीच प्लीज़ , किसानों को चैरीटी शो की तरह मत देखिए। हमें भी अब विरोध करने दीजिए।

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