किसानी करते हुए खेत के अलावा उन गाँव तक पहुँचने की इच्छा हमेशा रही है जहाँ बहुत कुछ अलग हो रहा है। इसी अलग देखने की ख़्वाहिश लिए हाल ही में बिहार के पूर्वी चम्पारण के कुछ ग्रामीण इलाक़ों में जाना हुआ। पूर्वी चम्पारण के पकड़ीदयाल अनुमंडल का एक गाँव है चैता। यह गाँव मेरे लिए अलग कई वजह से है, जिसमें एक लीची का बग़ान भी है। दूर-दूर तक लीची के सुंदर पेड़, गेहूँ के नवातुर पौधों को खेत में समेटे किसान और सबसे बड़ी बात साक्षर और जागरूक किसानों की बड़ी टोली।
जब भी देश के किसी हिस्से में किसानी कर रहे लोग आर्थिक रूप से सबल दिखते हैं तो मन बाग़-बाग़ हो जाता है। यह सब क़रीब से देखना और महसूस करना मेरे लिए हमेशा से सुकून देने वाला रहा है। इसकी एक वजह यह भी है कि हमने ख़ुद खटारा खेती और महान किसान की बात को हमेशा से ठुकराया है।
पूर्णिया से लगभग चार सौ किलोमीटर की दूरी तय कर हम चैता नाम के एक ख़ुशहाल गाँव पहुँचे थे। गाँव में दाख़िल होते ही जिस चीज पर नज़र टिकी वह थी 'मोटर साइकिल चलाती एक लड़की'। गाँव-घर में साइकिल चलाती लड़की दिख जाती है लेकिन बाइक चलाती आत्मविश्वासी लड़की पहली बार देखने को मिला। वह लड़की बेझिझक मोटर साइकिल चला रही थी। सचमुच गाँव बदल रहा है।
वैसे चैता नाम के इस गाँव से मेरा जुड़ाव शाश्वत गौतम की वजह से हुआ। शाश्वत गौतम मेरी पीढ़ी के ऐसे युवा हैं जो किसानी की नई परिभाषा गढ़ने जा रहे हैं। अमेरिका के जार्ज वाशिंगटन विश्वविद्यालय से पढ़ाई कर चुके शाश्वत के भीतर गाँव है। एक ऐसा गाँव जो किसानों के लिए बहुत कुछ करने के लिए उतारू है, जिसके भीतर किसान के अनेक रूप हैं, जो किसानी को मुनाफ़े का पेशा समझता है। शाश्वत मेरे मनमीत इस लिए भी हैं क्योंकि वे कृषि आधारित उद्योग की बात करते हैं, वे लीची की मार्केटिंग, ब्रांडिंग की बात करते हैं। वे लीची या किसी अन्य फल को व्यापारी के हाथों बेचने की बात नहीं करते हैं बल्कि उसका उद्योग स्थापित करने वकालत करते हैं ।
अमेरिका में पढ़ाई और फिर वहीं नौकरी करते हुए भी उनके भीतर किसान जिस तेवर में ज़िंदा है, उससे हम जैसे बनते किसानों को सीख लेनी चाहिए। वे अब देश लौटकर किसानी की नई दुनिया गढ़ने की तैयारी में लग गए हैं।
विदेश की चकाचौंध वाली ज़िंदगी के बीच चम्पारण के चैता गाँव के अपने गेहूँ के खेत में जब शाश्वत घुमा रहे थे और मुझसे किसानी की बात कर रहे थे तो लगा मानो किसी ऐसे 'किसान नेता' से गुफ़्तगू कर रहा हूं, जिसकी जड़ें गाँव के खेत-खलिहान में नीचे तक जमी हुई है। बिहार को सचमुच ऐसे ही किसान की ज़रूरत है, जिसके पास ज्ञान का भंडार हो, जो बड़ी संख्या में किसानों को साथ लेकर चल सकता हो और सबसे बड़ी बात खटारा बन चुकी किसानी की दुनिया में जो कृषि आधारित उद्योग की बात करता हो।
चैता में लीची के किसान और बग़ान बड़ी संख्या में हैं। यहाँ सब्ज़ी की भी अच्छी खेती दिखी। किसान समाज यहाँ मुझे तेवर में दिखा। यह तेवर जातीय गुणा-गणित के जाल से काफ़ी ऊपर दिखा। हर जाति के लोग उत्साह में खेती की दुनिया में रमे दिखे। खेती उपजाऊ, टिकाऊ और सबसे बड़ी बात बिकाऊ हो सके इसके लिए शाश्वत गौतम के पास ढेर सारी योजनाएँ हैं, जिसमें कई पर वे काम भी कर रहे हैं। सच कहूँ तो इस गाँव में दो दिन गुज़ारने के बाद जिस शख़्स की मुझे सबसे अधिक याद आ रही थी, वे हैं बुलंदशहर के भारत भूषण त्यागी जी। त्यागी जी भी खेती को मुनाफ़े का सौदा बनाने में जुटे हैं, उनकी उम्र अधिक है लेकिन मन उनका भी युवा किसान का ही है। यह सही बात है कि किसानी को मुनाफ़े का सौदा बनाना आसान नहीं है लेकिन आप इस बात को भी नहीं काट सकते हैं कि यदि कृषक समाज एकजुट होकर खेती करने लगे तो बड़े से बड़े उद्योगपति हम किसानों के चौपाल में बैठने लगेंगे।
इस रंग बदलती दुनिया में अब किसानों को अपना अन्दाज़ बदलना होगा। मुनाफ़े की बात करनी होगी, खेती और पैसे की बात करनी होगी। पारम्परिक खेती और वैज्ञानिक खेती के बीच कृषि आधारित उद्योग की बात ऊँचे स्वर में करनी होगी। इस मुल्क को अब पेशेवर किसान की ज़रूरत है, जो आँकडें की बात कर सके और उपज से लाभ हासिल कर भी दिखा दे। दुनिया के अलग अलग मुल्कों में कृषि। आधारित उधोगों को नक़दीक से देखने वाले शाश्वत गौतम से मेरे जैसे किसान को बड़ी उम्मीदें हैं। उम्मीदें इसलिए भी क्योंकि किसानी का पेशा अब करवटें लेने लगा है।
1 comment:
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन मौलाना अबुल कलाम आजाद जी की 59वीं पुण्यतिथि और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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