Tuesday, December 17, 2019

वे चाहते थे...

वे चाहते थे कि सब एक रहे
बची चीजें बस बची रहे
किसानी बची रहे,
भले वे बचे न रहे
उनका चाहना उनके बचे रहने से बड़ा था
बिछावन पकड़ते ही उनका चाहना
न जाने कितने टुकड़ों में बंट गया
विश्वास में मानो दीमक लग गया
धीरे-धीरे दीमक सबको चाट जाता है
ठीक उसी तरह उनकी बची चीजों में भी
दीमक लग गया
वे सब देखते रह गए
देखते - देखते 
बची चीज और टुकड़ों में बंट गई
धीरे - धीरे उन्होंने चुप रहना सीख लिया
लेकिन उनकी चुप्पी भी भव्य थी
बरसों तक जो उनके साथ थे
सुख-दुख सब वेला में
अब उनसे दूर हो गए
लेकिन दूरियां भी उन्हें तोड़ नहीं सकी
मानो वे सब जानते थे
उनकी चुप्पी की भव्यता और बढ़ती गई
और एक दिन वे निकल पड़े 
अपनी ही चुप्पी की लंबी यात्रा पर..

2 comments:

Nitish Tiwary said...

सुंदर प्रस्तुति।

Anonymous said...

प्रशंसनीय