सोशल मीडिया के इस दौर में जब सबकुछ डिजिटल होता जा रहा है, ऐसे समय में जब उत्पाद से लेकर व्यक्ति तक सोशल मीडिया के विभिन्न प्लैटफ़ॉर्म पर हर पल अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहा है, ऐसे वक्त में सतरंगी आभासी दुनिया में गाँव अपनी उपस्थिति किस अंदाज में दर्ज कर रहा है, इस पर भी बात होनी चाहिए। वैसे यह कटु सत्य है कि जिस तेज़ी से अन्य चीज़ें सोशल मीडिया में मज़बूती से खड़ी है, गाँव उन सबकी तुलना में बहुत कमज़ोर है।
सोशल मीडिया एक उपयोगी औजार के रुप में सामने आ रहा है। इसके जरिए भी पर्यटन स्थल विकसित किए जा सकते हैं। इसका एक उदाहरण चनका नाम का एक गांव है। बिहार के पूर्णिया जिले के श्रीनगर प्रखंड में यह गांव आता है। पिछले पाँच साल से फेसबुक, ट्विटर और सोशल मीडिया कर अलग अलग प्लेटफार्म पर इस गांव की तस्वीरों के साथ किसानों की बातें भी खूब हो रही हैं और लोग इन पोस्टों को पसंद भी कर रहे हैं। यह गांव सोशल मीडिया पर अपना स्थान बना चुका है और इस गांव में अमेरिका, आस्ट्रेलिया के अलावा देश के अलग-अलग हिस्सों से ऐसे लोग आ चुके हैं, जिनकी रुचि ग्राम्य जीवन में है।
दरअसल जब आप सोशल मीडिया खंगालेंगे तो पाएंगे कि इस स्पेस में गाँव अभी भी ललित निबंध है। यहां ग्रामीण जीवन से जुड़ी कविता-कहानियों का बोलबाला है लेकिन इसके इतर सोशल मीडिया में गाँव किस अन्दाज़ में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहा है, इसे समझने की ज़रूरत है।
सोशल मीडिया के जरिये गांव तक हम लोग पहुंचा सकते हैं, फ़िल्म महोत्सव कर सकते हैं, बच्चों के लिए पाठशाला खोल सकते हैं और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि बिना किसी राजनीतिक रंग में रंगे गाँव की आवाज सत्ता के गलियारे तक पहुंचा सकते हैं।
सोशल मीडिया के जरिये गाँव में आप क्या कर सकते हैं, उसका एक उदाहरण केंद्र सरकार की एक योजना है ‘श्यामा प्रसाद मुखर्जी रूर्बन मिशन’ से सम्बंधित है। केंद्र की ‘श्यामा प्रसाद मुखर्जी रूर्बन मिशन’ के तहत चनका को चुना गया है। सोचता हूँ तो याद आता है पिछले पाँच साल में मैंने सोशल मीडिया के किस मंच पर चनका की बात नहीं की? किस-किस से क्या नहीं माँगा चनका के लिए? चनका रेसीडेंसी के लिए यह ख़ास पल है। हम उन लोगों के भी आभारी हैं जो कठिन परिस्थितियों में भी चनका पहुँचे। इस योजना के तहत यदि सब कुछ होता है तो चनका सचमुच में चमक जाएगा। ग्रामीण स्तर पर सही अर्थों में विकास कार्य होने से बहुत कुछ बदलाव देखने को मिलेगा। यह सबकुछ सोशल मीडिया के कारण हुआ। गाँव की बात हर ऐसी जगह पहुंच गई, जहां से गाँव को उम्मीद थी।
दरअसल खेती बाड़ी करते हुए सोशल मीडिया में सक्रिय रहने की वजह से है गांव की बात सहज तरीक़े से रखने की कोशिश हम अनवरत करते हैं। मेरा मानना है कि जब सब कुछ वायरल होकर सुर्ख़ियाँ में आता है तो हम गाँव की बातें वायरल क्यों नहीं करें। गाँव में विकास की किरणें पहुँचने में भले ही देर हो, लेकिन तब तक इस सोशल मीडिया के सहारे गाँव को लोकप्रिय तो बनाया ही जा सकता है। इसके लिए ज़रूरी है कि गाँव से जुड़ा शख़्स गाँव की बातें पारंपरिक चौपाल के अलावा डिजिटल चौपाल में भी करें।
आभासी या ज़मीनी स्तर पर गाँव की जब भी बातें करता हूँ तो आंकड़े और रेफ़रेंस से दूर रहकर अपनी बात अनुभव के आधार पर रखता हूँ। बिहार के चनका नाम के जिस गाँव में पिछले पाँच साल से खेती-बाड़ी, क़लम-स्याही कर रहा हूँ, उस गाँव में अपने अनुभव के आधार पर कह सकता हूँ कि गाँव की बातें यदि लगातार आप सोशल मीडिया में कॉन्टेंट या तस्वीरों के ज़रिए लगातार करते हैं तो उसका लाभ गाँव को ज़रूर मिलेगा।
गांव के विकास को लेकर जो शिकायत हमारी जनप्रतिनिधियों से होती है, उसका काट सोशल मीडिया का प्लेटफॉर्म हो सकता है, हर कुछ के लिए नेतागिरी ही जवाब नहीं है। हम लगातार लिखकर दवाब बना सकते हैं, जिसे अकादमिक भाषा में ‘प्रेशर ग्रुप’ कहते हैं, वह फ़ेसबुक-ट्विटर कर सकता है। हमने तो चनका गाँव के लिए यह प्रेशर ग्रुप बनाने की कोशिश की तो आंशिक सफलता तो मिलती दिखी।
गाँव में ‘चनका रेसीडेंसी’ बनाने का स्वप्न हमने सोशल मीडिया के ज़रिए ही देखा। चनका रेसीडेंसी में साहित्य, कला, संगीत, विज्ञान और समाज के अलग-अलग क्षेत्रों से जुड़े ऐसे लोग शामिल होते हैं, जिनकी रुचि ग्रामीण परिवेश में है।
सोशल मीडिया पर गाँव घर की बातें करते हुए ऐसे ही लोगों ने ख़्याल दिया कि एक स्पेस गाँव में शहर का भी बनना चाहिए, जहाँ आकर गाम को जिया जा सके। फिर एक दिन चनका रेसीडेंसी बनाने का विचार आता है और इस विचार को अमली जामा पहना दिया जाता है। साल में तक़रीबन चार महीने देश के अलग-अलग हिस्से से लोग चनका आते हैं, कुछ नहीं बस गाँव को जीने। ऐसे लोग जिनका संबंध गाँव से ही होता है लेकिन उनकी वह डोर अपने गाँव से अब टूट चुकी है। कुछ देश के बाहर से भी लोग आ जाते हैं। गाँव की कहानी, गाँव का खाना, गाँव का गीत-संगीत चाहिए, तो किसी को चाहिए बस एकांत। किसी को रेणु के अंचल को महसूस करना होता है तो किसी को यहाँ का लोकगीत खींचता है। ऐसे लोगों के आने से से एक उम्मीद तो जग ही जाती है कि गाँव में अभी बहुत-कुछ अलग किया जा सकता है।
खेती–किसानी करते हुए अक्सर यह ख़्याल आता था कि जो मैं कर रहा हूँ उसकी बातें उन लोगों तक भी पहुँचें जो खेती तो नहीं कर रहे हैं लेकिन उनके भीतर भी गाँव घर बनाए हुए है।
मैं किसानी को नौकरी की तरह लेता हूँ, ऐसे में खेत-खलिहान मेरे लिए ऑफ़िस की तरह है। ऐसा इसलिए क्योंकि दिल्ली-कानपुर में नौकरी करते हुए मैंने महसूस किया कि नौकरी हमें अनुशासित बनाता है। मसलन वक़्त की पाबंदी। साल में तीन फ़सलों को खेत से खलिहान तक पहुँचाते हुए जो कुछ भी अनुभव होता है, उसे सोशल मीडिया पर डालता हूँ। सोशल मीडिया के विभिन्न प्लैटफ़ॉर्म, जैसे ब्लॉग, फ़ेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम पर फ़सलों की कहानी डालता रहा हूँ। धान के लिए बीज तैयार करने से लेकर धनरोपनी और धनकटनी तक, जो कुछ भी देखता या भोगता हूँ उसे ईमानदारी से सोशल मीडिया पर डालता हूँ। इसके कई फ़ायदे मिले। सबसे अधिक ख़ुशी इस बात से मिली कि एक गाँव सोशल मीडिया पर उभर कर सामने आ गया। आभासी दुनिया में मक्का के नवजात पौधे की तस्वीरों को देखकर दोस्त-यार ख़ुश हो जाते हैं। यह ख़ुशी ठीक वैसी ही जैसे नौकरी करते हुए जब कोई रिपोर्ट फ़ाइल करता था तो अपने सहकर्मी की हौसला अफ़ज़ाई से मिलती थी।
यह सब कुछ शब्द रुप में सोशल मीडिया पर डालते वक़्त कभी कभी लगता है कि एक खेती हम आभासी दुनिया में भी करते हैं। सोशल मीडिया के कारण कई तरह की जानकारियाँ और योजनाएँ भी मन में उभरने लगती हैं, मसलन धनरोपनी महोत्सव का ख़्याल। हम पिछले तीन साल से खेत के छोटे-से टुकड़े में धनरोपनी महोत्सव मनाते हैं। इसमें आस-पड़ोस के ऐसे लोग शामिल होते हैं, जिनका सीधे तौर पर खेती से कोई जुड़ाव नहीं है। इसी तरह गाँव में सोशल मीडिया मीट करने का भी ख़्याल आया तो हम वह भी कर बैठे। यह सबकुछ सोशल मीडिया के यार-दोस्तों की वजह से संभव हो पाता है। यहां लोग समर्थन करते हैं और आप योजनाओं को अमली जामा पहना देते हैं।
सोशल मीडिया में खेती किसानी की बातें लगातार करते हुए हम अख़बार, पत्रिका, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और वेब मीडिया के भी करीब पहुंच जाते हैं। ऐसे में आप यह कह सकते हैं कि सोशल मीडिया आपके लिए कारोबारी मीडिया में भी स्पेस बना देता है। दरअसल गाँव की बातों को लोग पढ़ना चाहते हैं, ऐसा सोशल मीडिया पर लोग-बाग की पहुँच से पता चलता है।
सोशल मीडिया पर गाम घर की बातें करते हुए हम इस बात का हमेशा ख्याल रखते हैं कि गाँव की बातें ललित निबंध न बन जाये। ग्रामीण जीवन में जो खराब है, उस पर भी सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्म पर बात होनी चाहिये। सच कहिये तो यह सब करते हुए मन के भीतर ढेर सवाल भी उठते आए हैं। उन सभी सवालों का हल गाँव ही निकलेगा, हमें गाँव को जीना होगा, वहां के लोगबाग की बातों को वर्चुअल दुनिया में जगह देनी होगी, गांव के लोगों को समझाना होगा कि सोशल मीडिया एक ऐसी बागवानी है जिसका उपयोग हम समाज और अपनी बेहतरी के लिए कर सकते हैं।
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