गीत-संगीत की दुनिया से पहले दूर ही था लेकिन समाचार एजेंसी में नौकरी करते हुए जब गीत-संगीत से सम्बंधित ख़बरें सामने आने लगी तो इस दुनिया से थोड़ी बहुत आशिक़ी शुरू हुई। फिर एक दिन उस्ताद बिस्मिल्ला खान का एक साक्षात्कार देख रहा था, जिसमें खान साहेब आँखें मूँदकर गा रहे थे -
‘दीवाना बनाना है , तो दीवाना बना दे,
वरना कहीं तक़दीर तमाशा न बना दे।’
और इन पंक्तियों को गाने के बाद वे बेगम अख़्तर को याद करने लगते हैं। वे कहते हैं कि बेगम अख़्तर की आवाज़ में एक ‘शोख़ लचीलापन तो है ही, एक मोहक कर्कशता’ भी है।
फिर एक दिन एक किताब हाथ में आती है - ‘सुर की बारादरी’ जो उस्ताद साहेब की ज़िंदगी पर आधारित है। यह किताब दरअसल उस्ताद से यतीन्द्र मिश्र की हुई बातचीतों और मुलाकातों की किताबी शक्ल है जिसे आप संस्मरण और जीवनी लेखन के आसपास की विधा मान सकते हैं।
आज एक साथ उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ाँ और बेगम अख़्तर दोनों याद आ रहे हैं, जिसकी वजह एक किताब है- ‘ अख़्तरी सोज़ और साज़ का अफ़साना’
यतीन्द्र मिश्र Yatindra Mishra ने इस किताब में बेगम अख्तर से जुड़े कई प्रसंगों को समेटा है। इसके बाद किताब में बेगम अख्तर की दो सबसे करीबी शिष्या शांति हीरानंद और रीता गांगुली से उनकी बातचीत है, जो बेगम अख्तर की शख्सियत को और करीब से समझने का मौका देती है। इसके अलावा, अलग-अलग क्षेत्र के लोगों की बेगम अख्तर के संगीत के बारे में टिप्पणियां भी किताब का हिस्सा हैं।
यतीन्द्र मिश्र को पढ़ते हुए संगीत से क़रीबी बढ़ती है। उनसे कुल जमा एक ही बार मिला हूं। संगीत में बसने की ललक उनमें दिख जाती है। इस किताब में उन्होंने बेगम अख़्तर को बख़ूबी उकेरा है।
यतीन्द्र मिश्र इस किताब के सम्पादक हैं, जिसे उन्होंने चार खंडों में बाँटा है। इसे पढ़ते हुए महसूस हुआ कि यह क़िताब सिर्फ़ संगीत-प्रेमियों या बेगम अख़्तर के कद्रदानों के लिए ही उपयोगी नहीं है बल्कि इतिहास और समाज-विज्ञान में रुचि रखने वालों को भी ‘अख़्तरी’ पसन्द आयेगी।
मेरा मानना है कि एक विशेष दौर में हुए किसी विशिष्ट चरित्र को लेकर बुने गये सन्दर्भों के तहत लिखी गयी क़िताबें उस दौर का भी संस्मरण बताती हैं। वे उस इतिहास का दस्तावेज़ होती हैं। यही हाल ‘अख़्तरी’ का भी है। एक गायिका उसी तरह अपने समय को दर्ज़ करते हुए एक बड़े ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में विमर्शमूलक हो सकती है, जिस तरह अपने दौर में सामन्त, नवाब, एक सैनिक या योद्धा, समाज सुधारक, राजनीतिक लोग, आध्यात्मिक सन्त और अभिनेता-अभिनेत्री आदि होते हैं।
इस किताब के ज़रिए बेगम अख़्तर को क़रीब से जानने की चाहत पूरी हुई। वैसे यह दावा नहीं कर सकता लेकिन बहुत कुछ तो ज़रूर जान पाया उस गायिका के बारे में, जिनकी आवाज़ ही उनकी पहचान थी।
वो गायिकी का पाठ थीं। उनकी ज़िंदगी की कहानी में मन रम जाता है। यतीन्द्र मिश्र ने अलग अलग लोगों की टिप्पणियों को इस किताब में शामिल किया है। उन टिप्पणियों में हम अपने पसंदीदा कलाकार के व्यक्तित्व में जीवन और मंच पर अलग अलग उनके मिज़ाज की हर छोटी बड़ी बात और घटना को महसूस करते हैं।
किताब में एक जगह सिगरेट और बेगम अख़्तर की गायिकी का ज़िक्र कुछ इस तरह है-
‘हर वक़्त एक सिगरेट का पैकेट उनके साथ होता। एक प्रशंसक ने पूछ लिया कि इससे आपके गले पर फ़र्क़ नहीं पड़ता? उन्होंने कहा- “ मैं गले से गाती कहाँ हूं ?’
{ किताब- अख़्तरी सोज़ और साज़ का अफ़साना
सम्पादक- यतीन्द्र मिश्र
प्रकाशक- वाणी प्रकाशन
मूल्य-₹ 395 }
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