खेत उजड़ता दिख
रहा है। बारिश इस बार धरती की प्यास नहीं बुझा रही है। डीजल फूँक कर जो धनरोपनी कर
रहे हैं और जो खेत को परती छोड़कर बैठे हैं, दोनों ही निराश हैं।
हर दिन आसमान को
आशा भरी निगाह से निहारता हूँ लेकिन...। किसानी कर रहे हमलोग परेशान हैं। फ़सल की
आश जब नहीं दिख रही है, तब ऋण का बोझ
हमें परेशान कर देता है। नींद ग़ायब हो जाती है। खेती नहीं कर रहे लोग ऐसे वक़्त
में जब ‘क्या करना चाहिए और क्या
नहीं करना चाहिए’ का ज्ञान देते
हैं तो लगता है कि उन्हें कहूँ कि बस एक कट्ठा में खेती कर देख लें।
तस्वीर गूगल से साभार |
योजना का लाभ
उठाने के लिए हमें इतनी काग़ज़ी प्रक्रियाओं से जूझना पड़ता है कि हम हार जाते
हैं। डीज़ल अनुदान लेने के लिए जिस तरह की प्रक्रिया प्रखंड-अंचल मुख्यालय में
देखने को मिलती है तो लगता है इससे अच्छा किसी से पैसा उधार लेकर खेती कर ली जाए।
यही हक़ीक़त है।
किसान बाप के
बेटे-बेटी को, जिसकी आजीविका
खेती से चलती है उसे अपनी ही ज़मीन लिए
बाबू सब के दफ़्तरों का चक्कर लगाना पड़ता है।
बारिश के अभाव ने मन को भी सूखा कर दिया है। किसानी का पेशा ऐसे समय में सबसे अधिक परेशान करता है। बाबूजी डायरी लिखते थे, हर रोज़। उनका 1984 का सर्वोदय डायरी पलटते हुए धनरोपनी का यह गीत मिलता है - “बदरिया चलाबैत अछि बाण, सब मिलि झट-झट रोपहु धान ...” लेकिन 2018 में बादल बरसने को तैयार ही नहीं हैं। इन सबके बावजूद बाबूजी की डायरी विपरीत परिस्थिति में मुझे संबल देती है, उनके शब्द से लगता है कि हमारी नियति में लड़ना ही सत्य है।
बारिश के अभाव ने मन को भी सूखा कर दिया है। किसानी का पेशा ऐसे समय में सबसे अधिक परेशान करता है। बाबूजी डायरी लिखते थे, हर रोज़। उनका 1984 का सर्वोदय डायरी पलटते हुए धनरोपनी का यह गीत मिलता है - “बदरिया चलाबैत अछि बाण, सब मिलि झट-झट रोपहु धान ...” लेकिन 2018 में बादल बरसने को तैयार ही नहीं हैं। इन सबके बावजूद बाबूजी की डायरी विपरीत परिस्थिति में मुझे संबल देती है, उनके शब्द से लगता है कि हमारी नियति में लड़ना ही सत्य है।
उधर, मानसून सत्र को लेकर मुल्क मगन है और इधर हम
धनरोपनी और पानी का रोना रो रहे हैं। हमारी समस्या में ग्लैमर नहीं है, हमारी परेशानी में ख़बर का ज़ायक़ेदार तड़का
नहीं है, हमारी बात न्यूज़रूम की
टीआरपी नहीं है, हमारे सूखते खेत
सरकार बहादुर के लिए वोट का मसाला नहीं है, ऐसे में हम जहाँ थे, वहीं हैं। हम रोते हैं तो ही हुक्मरानों को अच्छा लगता है।
हमारा रोना सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के लिए डाइनिंग टेबल का रायता है।
वैसे बारिश आज
नहीं तो कल आएगी...फिर एक दिन हम बाढ़ में डूब जाएँगे तब अचानक हवाई दौरा शुरू हो
जाएगा...2019 की तैयारी शुरू
हो जाएगी।
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