Tuesday, July 24, 2018

गाम का एकांत

बारिश के इंतज़ार में घंटों बैठना और फिर खेत तक टहलना, इन दिनों आदत सी बन गई है। शहर से दूर गाँव के अहाते में ख़ुद को समय दे रहा हूं।
गाछ-वृक्ष का जीवन देख रहा हूं, तालाब में छोटी मछलियों का जीवन समझ रहा हूं। तमाम व्यस्तताओं के बीच ख़ुद को कुछ दिन अकेला छोड़ देना, कभी कभी रास आने लगता है।
नीम का पौधा अब किशोर हो चला है। दो साल में उसकी लम्बाई और हरियाली, दोनों ही आकर्षित करने लगी है। इन्हें देखकर लगता है कि समय कितनी तेज़ी से गुज़र रहा है। लोगबाग से दूर गाछ-वृक्ष के बीच जीवन का गणित आसान लगने लगता है।
कुछ काम जब अचानक छूट जाता है और दुनिया का अर्थशास्त्र जब ज़बरन आप पर धौंस ज़माने लगता है, उस वक़्त आत्मालाप की ज़रूरत महसूस होती है।
अहाते के आगे कदंब के पेड़ बारिश में भींगकर और भी सुंदर दिखने लगे हैं। पंक्तिबद्ध इन कदंब के पेड़ को देखकर लगता है जीवन में ‘एकांत’ कुछ भी नहीं होता है, जीवन ‘सामूहिकता’ का पाठ पढ़ाती है।
पेड़-पौधों से घिरे अपने गाम-घर में जीवन स्थिर लगता है। पिछले कुछ दिनों से एक साथ कई मोर्चे पर अलग अलग काम करते हुए जब मन के तार उलझने लगे थे तब लगा कि जीवन को गाछ-वृक्ष की नज़र से देखा जाए। बाबूजी ने जो खेती-बाड़ी दी, उस पर काकाजी ने हरियाली की दुनिया हम लोगों के लिए रच दी, अब जब सब पौधे वृक्ष हो चले हैं तो उसकी हरियाली हमें बहुत कुछ सीखा रही है।
खेत घूमकर लौट आया हूं, साँझ होने चला है, पाँव कीचड़ में रंगा है। अपने ही क़दम से माटी की ख़ुश्बू आ रही है। पाँव को पानी से साफ़कर बरामदे में दाख़िल होता हूं, फिर एक़बार आगे देखना लगता हूं। हल्की हवा चलती है, नीम का किशोरवय पौधा थिरक रहा है। यही जीवन है, बस आगे देखते रहना है।
#ChankaResidency 

No comments: