Monday, March 23, 2009

बखारी मतलब भंडारगृह

हमारे गांव में एक समय में हर घर के सामने हुआ करता था- बखारी। बखारी मतलब अनाज के लिए बना भंडारगृह , जहां धान और गेंहू रखे जाते हैं। बखारी शब्द का प्रयोग ग्रामीण इलाकों में कई मुहावरों में किया जाता है। मसलन- गे गोरी तोहर बखारी में कतै धान। (ओ , गोरी तेरे भंडार में है कितना धान)

बखारी बांस और फूस के सहारे बनाया जाता है। यह गोलाकार होता है और इसके ऊपर फूस (घास) का छप्पड़ लगा रहता है। इसके चारों तरफ मिट्टी का लेप लगाया जाता है। (जैसे झोपड़ी बानई जाती है) बखारी का आधार धरती से लगभग पांच फुट ऊपर रहता है, ताकि चूहे इसमें प्रवेश नहीं कर पाएं।

उत्तर बिहार के ग्रामीण इलाकों में अभी भी बखारी आसानी से देखे जा सकते हैं। हर किसान के घर के सामने बखारी बना होता है। जिस किसान के घर के सामने जितना बखारी, मानो वही है गांव का सबसे बड़ा किसान। कई के घर के सामने तो १० से अधिक बखारी भी होते हैं, हालांकि स्टोर परंपरा के आने के बाद वर्षो पुरानी बखारी परंपरा कमजोर हो गई है।

इन बखारियों से अन्न निकला भी अलग तरीके से जाता है। इसके ऊपर में जो छप्पड़ होता है, उसे बांस के सहारे उठाया जाता है और फिर सीढ़ी के सहारे लोग उसमें प्रवेश करते हैं और फिर अन्न निकालते हैं। एक बखारी में कितना अनाज है, इसका अंदाजा किसान को होता है। हर एक का अलग साइज होता है। इसे मन (४० किलोग्राम- एक मन) के हिसाब से बनाया जाता है।

तो जनाब, इस बार जब भी आप उत्तर बिहार, बंगाल य़ा असम के किसी ग्रामीण इलाकों में जाएं तो जरूर बखारी का दर्शन करें। शब्दों में इसे ठीक ढंग से पेश नहीं किया जा सकता है, इसे देखकर ही ठीक तरीके से समझा जा सकता है।

आगे बात करेंगे पटुआ और संठी का

4 comments:

विनीत कुमार said...

जीवन शैली के बदलाव के साथ ये भाषा,संस्कृति और उसकी अनुभूति कितनी तेजी से गायब होती चली जा रही है, ये तुम्हारी पोस्ट को पढ़कर अंदाजा लगा सकते हैं। तुम इस तरह लगातार लिखते रहो, एक दिन ये कृषि संस्कृति का संदर्भ कोश बन जाएगा। जीने नहीं तो कम से कम जानकारी के स्तर पर लोग इसे पढ़ेगे-समझेंगे तो जरुर।..

Girindra Nath Jha/ गिरीन्द्र नाथ झा said...

शुक्रिया विनीत भाई।
मैं आगे तो नहीं सोच रहा हूं लेकिन इतना तो सच है कि ऐसे शब्दों को लिखकर इस शहर में ऐसा जरूर महसूस करता हूं मेरे अंदर गांव जिंदा है और मैं इसके लिए कुछ भी कर सकता हूं क्योंकि इससे मुझे इंटनर्ल आनंद मिलता है।

Anonymous said...

भाई, यह क्यों भूल जाते हैं कि जब नई फ़सल आने को होती है और यह बखारी खाली होता है तो बच्चे नुक्का-चोरी खेलने में भी इसका इस्तेमाल करते हैं.

Rakesh Kumar Singh said...

अपने गांव में इसे बेढ़ी कहा जाता था. था इसलिए कि इधर कई सालों से किसी के दरवाज़े पर देखा नहीं बेढ़ी. दादी के कहने पर बेढ़ी में घुस कर टोकरी से अनाज निकालने का अनुभव याद आ गया मुझे तुम्‍हारी पोस्‍ट पढ़कर.

शुक्रिया भाई.