हर साल सीमांचल के कुछ इलाके बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित होते हैं। मसलन पूर्णिया का अमौर और बायसी से जुड़ा इलाका। हर साल यहां बाढ़ आती है, राहत शिविर में लोगों को जाना पड़ता है। इस इलाके में बाढ़ की विनाशलीला के कारण को समझने के लिए हमें परमान नदी के रास्ते को समझना होगा।
बुकानन ने परमान नदी को पंगरोयान कहा है। कहीं कहीं इस नदी को बालकुंवर भी कहा जाता है। परमान की कहानी नेपाल से शुरु होती है। हिमालय से निकलकर यह बूढ़ी नाम की नदी के रुप में भारत – नेपाल सीमा पर स्थित जोगबनी से पश्चिम मीरगंज गांव में प्रवेश करती है। इस बार बाढ़ ने इस इलाके को बुरी तरह से तबाह किया है।
जैसे ही यह नदी मीरगंज में प्रवेश करती है, इसे परमान नाम से पुकारा जाने लगता है। परमान यही से ढ़ेर सारी धार-और सहायक नदियों को अपने में समेटना आरंभ करती है। रजई-सोता जैसी सहायक नदियां इसके संग हो जाती है। अररिया शहर आज जहां है, पहले यहीं से यह गुजरती थी। बाद में यह शहर से सटे पूरब-दक्षिण का रास्ता बनाकर बहने लगी। इस बार अररिया के आसपास बाढ़ से कुछ हुआ, इसके पीछे नदी का पुराना रास्ता ही कारण रहा है।
इस बार बाढ़ प्रभावित इलाके सुरजापुर, बेलवा, मझैली, चैनपुर जैसे गांव परमान की गोद में बसे हैं। इसी रास्ते से निकलकर परमान अररिया-पूर्णिया सीमा स्थित शादीपुर गांव पहुंचती है और यहीं से अमौर और बायसी इलाका परमान को बड़े फैलाव का रास्ता दिखा देती है। यहीं आकर परमान नदी भारी मात्रा में जल लेकर बकरा नदी में मिल जाती है।
पहले यह सभी नदी का रास्ता था या फिर खेत, इसलिए बाढ़ से केवल फसल का नुकसान होता था लेकिन अब जब बस्ती, गांव और बाजार बस गया है तब हम नदी पर सवाल उठाने लगे हैं। इसलिए हमें अब नदी को समझना होगा।
पूर्णिया गजेटियर में ओ मैली कहते हैं कि चांप-चौर का इलाका (जहां पानी जमा रहता है) होने की वजह से जुलाई से सितंबर तक इस इलाके में वन्य जीवों और पक्षियों को अड्डा होता था। ठंड के मौसम में साइबेरियन पक्षी यहां आती थी। पूर्णिया के बसावट को नदी के अनुसार हमें समझना होगा।
पूर्णिया जिला में पहले बड़ी संख्या में अंग्रेज किसान रहते थे, जिन्हें जेंटलमेन फार्मर कहा जाता था। ऐसे ही एक किसान थे जॉय विक्टर। सौरा नदी के पूर्वी तट पर उनका घर था, यानि आज के पूर्णिया का रामबाग इलाका। वे अपनी एक डायरी में लिखते हैं कि पूर्णिया के आसपास नदियों का जो नेटवर्क है, उसी के अनुसार इलाके में बसावट और खेती होती रहनी चाहिए।
इस तरह की बातों को पढ़ने के बाद ऐसा लगता है कि पुराने पूर्णिया जिला को नदियों के सहारे एक बार फिर समझने –बुझने की जरुरत है और इस जानकारी को हर व्यक्ति तक पहुंचाने की आवश्यकता है। ताकि जब कोई जमीन खरीदकर घर बनाने की सोचे तो एक बार यह जरुर पता कर ले कि 100-150 साल पहले यहां से कौन सी नदी बहती थी क्योंंकि एकदिन जब उसी रास्ते नदी फिर से बहना आरम्भ कर देगी उस वक़्त क्या होगा, जैसा इस बार हमने देखा।
बुकानन ने परमान नदी को पंगरोयान कहा है। कहीं कहीं इस नदी को बालकुंवर भी कहा जाता है। परमान की कहानी नेपाल से शुरु होती है। हिमालय से निकलकर यह बूढ़ी नाम की नदी के रुप में भारत – नेपाल सीमा पर स्थित जोगबनी से पश्चिम मीरगंज गांव में प्रवेश करती है। इस बार बाढ़ ने इस इलाके को बुरी तरह से तबाह किया है।
जैसे ही यह नदी मीरगंज में प्रवेश करती है, इसे परमान नाम से पुकारा जाने लगता है। परमान यही से ढ़ेर सारी धार-और सहायक नदियों को अपने में समेटना आरंभ करती है। रजई-सोता जैसी सहायक नदियां इसके संग हो जाती है। अररिया शहर आज जहां है, पहले यहीं से यह गुजरती थी। बाद में यह शहर से सटे पूरब-दक्षिण का रास्ता बनाकर बहने लगी। इस बार अररिया के आसपास बाढ़ से कुछ हुआ, इसके पीछे नदी का पुराना रास्ता ही कारण रहा है।
इस बार बाढ़ प्रभावित इलाके सुरजापुर, बेलवा, मझैली, चैनपुर जैसे गांव परमान की गोद में बसे हैं। इसी रास्ते से निकलकर परमान अररिया-पूर्णिया सीमा स्थित शादीपुर गांव पहुंचती है और यहीं से अमौर और बायसी इलाका परमान को बड़े फैलाव का रास्ता दिखा देती है। यहीं आकर परमान नदी भारी मात्रा में जल लेकर बकरा नदी में मिल जाती है।
पहले यह सभी नदी का रास्ता था या फिर खेत, इसलिए बाढ़ से केवल फसल का नुकसान होता था लेकिन अब जब बस्ती, गांव और बाजार बस गया है तब हम नदी पर सवाल उठाने लगे हैं। इसलिए हमें अब नदी को समझना होगा।
पूर्णिया गजेटियर में ओ मैली कहते हैं कि चांप-चौर का इलाका (जहां पानी जमा रहता है) होने की वजह से जुलाई से सितंबर तक इस इलाके में वन्य जीवों और पक्षियों को अड्डा होता था। ठंड के मौसम में साइबेरियन पक्षी यहां आती थी। पूर्णिया के बसावट को नदी के अनुसार हमें समझना होगा।
पूर्णिया जिला में पहले बड़ी संख्या में अंग्रेज किसान रहते थे, जिन्हें जेंटलमेन फार्मर कहा जाता था। ऐसे ही एक किसान थे जॉय विक्टर। सौरा नदी के पूर्वी तट पर उनका घर था, यानि आज के पूर्णिया का रामबाग इलाका। वे अपनी एक डायरी में लिखते हैं कि पूर्णिया के आसपास नदियों का जो नेटवर्क है, उसी के अनुसार इलाके में बसावट और खेती होती रहनी चाहिए।
इस तरह की बातों को पढ़ने के बाद ऐसा लगता है कि पुराने पूर्णिया जिला को नदियों के सहारे एक बार फिर समझने –बुझने की जरुरत है और इस जानकारी को हर व्यक्ति तक पहुंचाने की आवश्यकता है। ताकि जब कोई जमीन खरीदकर घर बनाने की सोचे तो एक बार यह जरुर पता कर ले कि 100-150 साल पहले यहां से कौन सी नदी बहती थी क्योंंकि एकदिन जब उसी रास्ते नदी फिर से बहना आरम्भ कर देगी उस वक़्त क्या होगा, जैसा इस बार हमने देखा।
(जारी है...)
#BiharFlood
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