Wednesday, August 23, 2017

बाढ़ से बचाव के लिए नदी से मिलना होगा- 2

अररिया -फ़ारबिसगंज-पूर्णिया-कटिहार, इन सभी इलाक़ों में इस बार बाढ़ ने तबाही मचाई है। लेकिन जब भी हम बाढ़ की बात करते हैं तो बस कोसी-महानंदा-गंगा में सिमट जाते हैं, जबकि हम इन नदियों की सहायक नदी-धार  की बात नहीं करते, जिसने इस बार सीधे तरीक़े से लोगों को प्रभावित किया है। 

12 अगस्त की रात जब पूर्णिया-किशनगंज सीमा को बाढ़ ने अपनी चपेट में लिया था उस वक़्त भी हम अपनी पुरानी नदी-धार  से अनजान थे और आज भी अनजान ही बने हैं। महानंदा बेसिन की नदियों के नाम भी हमें याद रखना चाहिए। हम केवल परमान की बात करते हैं जबकि उसके संग कनकई, बलासन, डोंग, बकरा, नागर, रतवा, नूना, रीगा, लोहंदरा, मलुआ, दास और सुघानों भी महानंदा की सहायक नदियाँ हैं। इन सभी नदियों की प्रकृति कटाव वाली है। 

अब आप सोचिए कि इन्हीं नदियों के पेट में यानि राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 31 के साथ कितने नए इलाक़े बस गए। 1910 में आईसीएस ऑफ़िसर ओ मैली लिखते हैं कि 'महानंदा बेसिन की नदियां शिफ़्टिंग नेचर की है, मतलब एकतरफ़ काटकर दूसरी तरफ़ मिट्टी जमाकर बसा देना। ' इस अंग्रेज़ अधिकारी ने पुराने पूर्णिया जिला को कोसी समूह और परमान-कनकई -महानंदा समूह बाँटकर अध्ययन किया था। इस  बार बाढ़ ने किशनगंज शहर तक तबाही मचाई है इसलिए ज़रूरत है कि शहर के मध्य से गुज़रने वाली नदी को समझा जाए। 

वहीं जब हम अररिया -पूर्णिया सीमा की बात करते हैं तो मैं आपतक रानीगंज के रास्ते पूर्णिया सीमा में नदियों के प्रवेश की जानकारी पहुँचाना चाहूँगा। रानीगंज से आगे कारी कोसी के पेट में एक गाँव है -इंदरपुर, जो इंद्रपुर का अप्रभंश है। यहीं से हमने नदी का रास्ता मोड़ने का काम किया। जबकि पूर्णिया गजेटियर के अनुसार महाराज इंद्रनारायण राय ने कारी कोसी के तट पर गाँव बसाया था। यहाँ अब स्टेट हाईवे है। अब हमें इस सड़क के किनारे बड़हरा, काला बलुआ, लालपुर बस्ती मिलती है जबकि 1891 ये सभी इलाक़े नदी के तट थे। मतलब 126 साल में हमने नदी का रास्ता बदल दिया, अपने बसावट के लिए। ऐसे में नदी कुपित तो होगी। 

वहीं इसी मार्ग में एक ऐसा भी इलाक़ा है, जिसके साथ छेड़छाड़ नहीं हुई तो वहाँ आज भी कारी कोसी शांति से बहती है, वह है सिंघिया जंगल का इलाक़ा।  इस इलाक़े को आप 'पाकिस्तान टोला' की वजह से जानते ही होंगे।

हम अभी आपको कारी कोसी और सौरा के मिलन की जानकारी देंगे क्योंकि हमें यह जानना चाहिए कि इस बार के बाढ़ में छोटी नदियों ने किस प्रकार एक बड़ा नेट्वर्क तैयार किया है, अपने मूल रास्ते में। चम्पानगर के पूरब कारी कोसी बनभाग पहुँचती है। यहाँ यह नदी पहले पूर्णियाँ -सहरसा रेल मार्ग को पहले पार करती है फिर सड़क मार्ग पारकर दक्षिण की ओर निकल जाती है जो आगे चलकर सौरा में मिल जाती है।  

इन दिनों जब बाढ़ और उसके बाद की स्थिति पर हम सब लगातार चर्चा कर रहे हैं, उस वक़्त हमें इन बातों को भी लोगों तक पहुँचाना होगा। बुकानन, ओ मैली जैसे अंग्रेज़ विद्वानों ने इस इलाक़े के बारे में बहुत कुछ लिखा है। बुकानन ने An Account of the District of Purnea (1809-10) और ओ मैली ने District Gazetteer of Purnea लिखा था। अब इसे लोगों तक सरल भाषा में पहुँचाने का वक़्त है ताकि हम जान सकें कि जहाँ हम पिछले 50-100 साल से बसे हुए हैं, वहाँ कौन सी नदी बहती थी ? एकदिन जब उसी रास्ते नदी फिर से बहना आरम्भ कर देगी उस वक़्त क्या होगा, जैसा इस बार हमने देखा।

#BiharFlood

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