Monday, March 28, 2016

पंचायत चुनाव की बतकही- 1

बिहार में स्थानीय निकाय के चुनाव होने वाले हैं। हर रोज़ गाम में एक नई कहानी सुनने को मिलती है।

लोकसभा- विधानसभा से अलग इस चुनाव का अंक गणित हर दिन ऐसे बदलता है मानो आलू के मौसम में हम मिर्च उपजा रहे हों।

जाति का मोहरा हर टोले में बिछाया जा रहा है। उम्मीदवारों के चेहरों पर इस बार नीतीश सरकार की शराबबंदी के कारण रौनक़ कम दिख रही है। एक ने बताया- "पाउच बंद हो गया न, इसका घाटा होगा। नोट बाँटना होगा ई बार ..."  

वहीं जाति को लेकर उम्मीदवार खुलकर गुटबाज़ी कर रहे हैं। फ़लाँ टोल में यादव कितना, ब्राह्मण कितना, राजपूत-भूमिहार कितना आदि-आदि। महादलित टोले में तो साँझ होते ही मोटरसाइकिल की आवाजाही बढ़ जाती है। उम्मीदवार यहाँ अपने वोटर को समझाने आते हैं।

जातिवाद का विष समाज को किस तरह बर्बाद कर रहा है यह पंचायती राज के चुनाव में हम देखते हैं। पूर्णिया ज़िले के कुछ पंचायतों के हाट- बाज़ार और टोलों को इन दिनों नज़दीक से देख रहा हूं।

इन्हें देखते हुए रेणु के "मैला आँचल " का पात्र कालीचरण याद आता है। उपन्यास में सोसलिस्ट पार्टी के ज़िला मंत्री कालीचरण से मेरीगंज गाम की जानकारी कुछ इस तरह लेते हैं-
" अच्छा  कामरेड, आपके गाँव में सबसे ज्यादा किस जाति के लोग हैं? ...यादव! ठीक है। भूमिहार? एक घर भी नहीं ? गुड!!!

समय के साथ साथ बहुत कुछ बदला लेकिन जाति का पेंच कसता ही जा रहा है। पंचायत चुनाव पर इस बार लम्बी बातचीत करने की इच्छा है। यहाँ एक इलाक़ा है "रानीपतरा"। गांधी जी यहाँ ठहरे थे। अपने हाल पर आँसू बहाता गांधी आश्रम भी है। रानीपतरा हटिया में एक बुज़ुर्ग मिले, मोती राम। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा- " पंचायत चुनाव में इस बार सबको चाहिए कि अपनी अपनी टोपी पर जाति लिखवा ले...."

1 comment:

अमित कुमार झा said...

बहुत ही अच्छा........ पंचायती राज का सच........