Wednesday, January 27, 2016

खेत खलिहान और बंगाल

कई बार हम अकेले पड़ जाते हैं लेकिन हमारी यात्रा जारी रहती है । यात्राएं अक्सर हमें एक मोड़ पर छोड़ देती है जहाँ से हमें यह तय करना होता है कि अब कहाँ ? इन दिनों यात्राओं का संयोग बना है, ऐसे में ढेर सारे नए लोग मिल रहे हैं जिनसे काफी कुछ नया सीख रहा हूं। 

हर बार बिहार से बंगाल की सीमा में दाख़िल होते ही चाय के बग़ानों से सामना होता है। बाग़डोगरा, सिलीगुड़ी जाते वक़्त खेतों के नए रंग मुझे भाने लगे हैं । चाय के बग़ान के बीच कभी लकड़ी के पेड़ दिखते थे अब तेजपत्ता के पेड़ नज़र आ रहे हैं। इस्लामपुर से आगे निकलते ही इस तरह का नज़ारा दिख जाता है और में ठहर जाता हूं। खेती में नए प्रयोग मुझे भाते हैं। 

वहीं अनानास और अरिकंचन की खेती तो मुझे और भाने लगी है। एक ही खेत में कितना कुछ दिख जाता है, एक तरफ़ कँटीला अनानास तो दूसरी तरफ़ हरी पत्तियों वाला अरिकंचन। आप सोचिए खेत के बारे में। क़ुहासे की लिफ़ाफ में लिपटी उस सुबह जब इन खेतों के बीच से निकल रहा था तो लगा मानो किसी पेंटर की पेंटिंग को छू रहा हूं।

इन सबके बीच बंगाल चुनाव के मूड में आ चुका है। ममता बनर्जी के पोस्टर से बंगाल का यह इलाका पटा पड़ा है। चुनाव की महिमा निराली होती है, इस महिमा की माया अपरमपार है :) लेकिन तभी बंगाल की मिठाई दुकान दिख जाती है। रसगुल्ला, संदेस, छैना पायस, खजूर के रस में डूबा रसगुल्ला :) 

ख़ैर , खेत खलिहान की कथा के बीच राजनीति की बात करते हुए लूटियंस की दिल्ली की याद आ जाती है। सड़क वहाँ महान महान लोगों के नाम से मार्ग बना हुआ है । अकबर रोड से आगे निकलते हुए जब दूतावासों की तरफ़ हम जाते हैं तो दिल्ली कितनी हरी दिखती है। हरापन दिल्ली में भी है लेकिन फ़िलहाल हम बंगाल की हरियाली में खो चुके हैं। चाय बग़ान और अरिकंचन की हरियाली ही अभी मन में है बाद बांकि जो है सो तो हइए है।

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