पछिया हवा का ज़ोर आज ख़ूब दिख रहा है। तेज़ हवा के संग धूल जब देह से टकराता है न तो गुदगुदी का अहसास होता है।
बसंत की झलक आज दिखने लगी है। मानों झिनी झिनी चदरिया से कोई हमें देख रहा हो। गाम में आज गाछ -वृक्ष की पत्तियाँ उड़ान भर रही है। सरसों के खेत से एक अलग तरह की महक आ रही है।
सरसों के पीले फूल की पंखुड़ी इन हवाओं में और भी सुंदर दिख रही है। लीची की बाड़ी में इस बार मधुमक्खियों ने अपना घर बनाया है। पछिया हवा की वजह से मधुमक्खियाँ भी झुंड में इधर उधर उड़ रही है।
उधर, पछिया हवा के कारण बाँस बाड़ी मुझे सबसे शानदार दिख रहा है- एकदम रॉकस्टार! दरअसल इन हवा के झोंकों में बाँस मुझे रॉकस्टार की तरह लग रहा है। बाँस की फूंगी और बाँस का बीच का हिस्सा जिस तरह डोल रहा है , उसे देखकर लगता है कि बॉलीवुड का कोई नायक मदमस्त होकर नाच रहा है।
इन हवाओं के संग रंगबिरंगी तितलियाँ भी आई है। मक्का के खेत में इन तितलियों ने डेरा जमाया है। मक्का के गुलाबी फूलों से इन तितलियों को मानो इश्क़ हो गया है :)
पीले रंग की तितली जब मक्का के नए फल के लिए गुलाबी बालों में उलझती है तो लगता है कि प्रकृति में कितना कुछ नयापन है! इन्हीं गुलाबी बालों में मक्का का भुट्टा छुपा है।
पछिया हवा के इन झोंकों से खेत पथार भी देह की माफ़िक़ इठलाने लगा है। फ़सलों के बीच से गुज़रते हुए आज यही सब अनुभव कर रहा हूं। पटवन का काम हो चुका है इसलिए मोबाइल पर देहाती दुनिया टाइप करता रहता हूं।
गाम घर का जीवन मौसम की मार के गणित में यदि फँसता है तो यक़ीन मानिए इन्हीं मौसम की वजह से अन्न देने वाली माटी सोना भी बनती है। वहीं गाछ-वृक्ष-फूल-तितली-जानवर आदि इन्हीं मौसमों में अपनी ख़ुशबू से हमें रूबरू भी कराते हैं...यही वजह है कि किसानी करते हुए अब हम भी कहने लगे हैं - पतझड़-सावन - बसंत- बहार ....
बसंत की झलक आज दिखने लगी है। मानों झिनी झिनी चदरिया से कोई हमें देख रहा हो। गाम में आज गाछ -वृक्ष की पत्तियाँ उड़ान भर रही है। सरसों के खेत से एक अलग तरह की महक आ रही है।
सरसों के पीले फूल की पंखुड़ी इन हवाओं में और भी सुंदर दिख रही है। लीची की बाड़ी में इस बार मधुमक्खियों ने अपना घर बनाया है। पछिया हवा की वजह से मधुमक्खियाँ भी झुंड में इधर उधर उड़ रही है।
उधर, पछिया हवा के कारण बाँस बाड़ी मुझे सबसे शानदार दिख रहा है- एकदम रॉकस्टार! दरअसल इन हवा के झोंकों में बाँस मुझे रॉकस्टार की तरह लग रहा है। बाँस की फूंगी और बाँस का बीच का हिस्सा जिस तरह डोल रहा है , उसे देखकर लगता है कि बॉलीवुड का कोई नायक मदमस्त होकर नाच रहा है।
इन हवाओं के संग रंगबिरंगी तितलियाँ भी आई है। मक्का के खेत में इन तितलियों ने डेरा जमाया है। मक्का के गुलाबी फूलों से इन तितलियों को मानो इश्क़ हो गया है :)
पीले रंग की तितली जब मक्का के नए फल के लिए गुलाबी बालों में उलझती है तो लगता है कि प्रकृति में कितना कुछ नयापन है! इन्हीं गुलाबी बालों में मक्का का भुट्टा छुपा है।
पछिया हवा के इन झोंकों से खेत पथार भी देह की माफ़िक़ इठलाने लगा है। फ़सलों के बीच से गुज़रते हुए आज यही सब अनुभव कर रहा हूं। पटवन का काम हो चुका है इसलिए मोबाइल पर देहाती दुनिया टाइप करता रहता हूं।
गाम घर का जीवन मौसम की मार के गणित में यदि फँसता है तो यक़ीन मानिए इन्हीं मौसम की वजह से अन्न देने वाली माटी सोना भी बनती है। वहीं गाछ-वृक्ष-फूल-तितली-जानवर आदि इन्हीं मौसमों में अपनी ख़ुशबू से हमें रूबरू भी कराते हैं...यही वजह है कि किसानी करते हुए अब हम भी कहने लगे हैं - पतझड़-सावन - बसंत- बहार ....
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