Thursday, October 29, 2015

राहुल और ओवैसी के बहाने किशनगंज यात्रा

आज किशनगंज राहुल गांधी के बहाने आना हुआ। यहां एक मैदान है -रूईधासा मैदान। वहीं उनकी सभा है। रैली से पहले माहौल गीत-नाद का बना हुआ है। नीतीश कुमार की तारीफ़ से सजे गीत कान तक पहुंच रहे हैं। मैदान हाथ छाप से सजा है और आसपास महागठबंधन की साइकिल घूमती दिखी।

चाऊमीन, चाट-समोसा और नारियल की बिक्री बढ़ी है। मेला की तरह गाँव घर से लोग पहुंचे हैं। मुस्लिम बहुल इस इलाके में लोगबाग बड़ी संख्या में दिख रहे हैं। असफाक भाई के हाथ में ढोल है और वे थाप ठोक रहे हैं। वे ठाकुरगंज से पहुंचे हैं। उधर, लाउड स्पीकर से मेरा रंग दे बसंती चोला बज रहा है।

यहां तस्लीम भाई मिलते हैं और कहते हैं कि ओवैसी फेक्टर यहां नहीं है, हम बाहरी को जगह नहीं देंगे। ओवैसी को लेकर कुछ लोग गुस्से में दिखे। कोई उन्हें वोट कटवा कह रहा है तो कोई बाहरी। इन सबके बावजूद लोगबाग उनकी चर्चा कर रहे हैं । हैदराबाद से सीमांचल की कहानी शुरू में रोमांचक लग रही थी लेकिन अब हैप्पी एंडिंग संभव नहीं लग रहा है। शायद यही राजनीति है।

इसी रूईधासा मैदान में दो -तीन महीने पहले ओवैसी की बड़ी रैली हुई थी और आज उन्हीं के खिलाफ यहां बोल रहे हैं। राजनीति का व्याकरण भी अजीब होता है।

खैर, हम रैली -राहुल के बहाने किशनगंज को भी देखने निकले और पहुँच गए ईरानी बस्ती। 2012 में गया था वहां। उस वक्त बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए एक रपट तैयार की थी बस्ती की। तीन साल बाद भी हालात नहीं बदली वहां की। पता नहीं गलती किसकी है। शिकायतों की झड़ी लगा दी लोगों ने बस्ती में। चुनाव के वक्त भी उनकी कोई बात नहीं कर रहा है।

उधर शहर और आसपास पुलिस प्रशासन चुस्त है यहां, आखिर राहुल जो आ रहे हैं। मोहन दास दा बस स्टेण्ड पर मिले। उनका मानना है कि मोदी की लहर इस बार नहीं है, चुनाव इस दफे टाइट है। यह शब्द मुझे कई जगह बिहार में सुनने को मिला।

लालू की बात यहां कोई नहीं कर रहा है। अख्तर इमाम कहते हैं कि वे तो चाहेंगे नितीश अपने बल पर सरकार बनाये और साथ में कांग्रेस रहे। उन्होंने कहा कि किशनगंज का चेहरा हर कोई खराब करना चाहता है लेकिन अब ऐसा नहीं होने वाला है।

पूर्णिया से आते वक्त रास्ते में पता चला कि किस तरह मुस्लिम को भी यहां कई पॉकेट में बाँट दिया गया है, मसलन सुरजापुरी, शेरशाहबादी, कुल्हैया आदि। इन बातों को सुनकर लगा कि राजनीति किस तरह हमें तोड़ती जा रही है और हम आसानी से टूटते जा रहे हैं। पांचवे चरण में सीमांचल एक केक बन गया है, जिसे काटकर सरकार बनाने की जुगत में हर पार्टी है। केक कौन काटता है यह तो वक्त ही बताएगा , बाद बांकी जो है सो तो हइये है।

2 comments:

Unknown said...
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Unknown said...

I liked your views and ideas