Monday, October 05, 2015

एक किसान की चुनावी डायरी- 8

राजनीति में मोड़ बहुत आते हैं और खिलाड़ी लोग मोड़ पर ही रास्ते बदल लेते हैं। कई लोगों को तो इसमें महारत हासिल होती है। मौसम और चुनावी राजनीति को समझना बड़ा कठिन काम है। गाँव का अपना जीवछ कबिराहा बोली में कहता है "सब दल एक समाना"
जीवछ की बात तीन अक्टूबर को उस वक्त सही लगने लगी जब पूर्णिया के मौजूदा सांसद संतोष कुशवाहा ने अपना असंतोष सार्वजनिक कर दिया। मौका देखिये भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह पूर्णिया आये थे। हालांकि उन्होंने एक बार भी यह नहीं कहा कि वे पार्टी से नाखुश हैं।

गौरतलब है कि पूर्णिया से जेडीयू सांसद संतोष कुशवाहा ने पार्टी नेताओं को लगभग धमकी देने के अंदाज में कहा है कि सदर विधानसभा सीट से कांग्रेस की इन्दू सिन्हा और कटिहार के कोढ़ा विधानसभा से पूनम पासवान दमदार उम्मीदवार नहीं है लिहाजा इन दोनों सीटों के उम्मीदवार को बदला जाए। उन्होंने कहा कि अगर उम्मीदवार नहीं बदले जाते हैं तो निर्दलीय उम्मीदवार को समर्थन करेंगे।

वहीं दूसरी ओर शनिवार को पूर्णिया वायुसेना के एयरबेस पर जहां एक ओर कांग्रेस  अध्यक्ष सोनिया गांधी से इंन्दू सिन्हा की मुलाकात हो रही थी वहीं अपने आवास पर संतोष कुशवाहा पूनम पासवान और इन्दू सिन्हा का टिकट रद्द करने की मांग कर रहे थे। कुशवाहा का कहना है कि ये दोनों उम्मीदवार दमदार नही हैं और इनके सहारे महागठबंधन दोनों सीटें नही जीत सकता। कहा यह भी जा रहा है कि कोढ़ा पर कुशवाहा की ख़ास नजर थी। राजनीति यही है।

उधर इन्दू सिन्हा का कहना है कि सांसद भाजपा छोड़कर जदयू में गये हैं और वो अंदर से भाजपाई हैं। उन्हें महिला और किसी पार्टी के जिलाध्यक्षों को टिकट दिया जाना अगर गलत लग रहा है तो यह उनकी राजनीतिक समझदारी से जुड़ा मामला है।  उन्होंने कहा कि सोनिया गांधी ने उन्हे सीमांचल की मजबूत कांग्रेस नेता कहते हुए इलाके का चुनावी कमान संभालने को कहा है।

यह हुई पार्टी की बातें अब चलिए चौक-चौराहों पर। सुशील मोदी की बातों पर लोगबाग खूब बतकही कर रहे हैं। आरएन साव चौक पर सुबह सुबह चाय की चुस्की लेते हुए बुजुर्ग रमेश रंजन कहते हैं " स्कूटी के साथ छोटे मोदी पेट्रोल भी भरा कर देंगे। बड़ा अजीब लगता है। हमें लगता है कि जब पॉलिटिकल लोग कुछ कहते हैं तो कभी सोचते भी होंगे कि क्या वे वादा पूरा कर पाएंगे ?"

चुनाव के वक्त बगावत भी एक मुद्दा बन जाता है। पूर्णिया से आगे बढ़कर लखीसराय की बात करते हैं। वहां हमारे एक मित्र आनंद शेखर हैं। उन्होंने कहा कि गिरिराज सिंह की प्रतिष्ठा लखीसराय में दांव पर हैं। भाजपा के विजय सिन्हा को चुनौती अपने ही दल के बागी सुजीत कुमार से मिल रही है।

इन सबके बीच विकास मॉडल पर चर्चा कहीं होती है तो कहीं नहीं भी हो रही है। किशनगंज के असफाक आलम कहते हैं कि यह चुनाव मोदी बनाम नितीश-लालू है। उन्होंने बताया कि वोटर कहीं इस बात को लेकर कन्फ्यूज है कि लालू यादव अपने किस रूप में अब सामने आएंगे। लालू एक फेक्टर की तरह चौक चैराहों पर चर्चा में शामिल हैं।

पुर्णिया के लाइन बाजार में इलाज के लिए फारबिसगंज से आये अलाउद्दीन कहते हैं "पहले चरण के बाद हम कुछ कह पाएंगे। हम सब इन्तजार में हैं । वैसे सीमांचल में अच्छा अस्पताल होना चाहिए। बहुत सारी जरूरतें हैं। स्कूटी से कुछ नहीं होने वाला है। हम नितीश कुमार से भी चाहेंगे कि वे यदि फिर कुर्सी सँभालते हैं तो कुछ ख़ास करें इलाके के लिए। सुशील मोदी से भी यही चाहेंगे हम।"

ओवैसी के बारे में जब हमने अलाउद्दीन से पूछना चाहा तो उन्होंने चुप्पी साध ली। लोगों से बातचीत कर ऐसा लगता है कि जमीनी तौर पर भी लोगों ने अपना पालिटिकल सेन्स डेवलप कर लिया है, जो बढियां बात है।

गाँव पहुंचकर जब जोगो काका को यह सब सुनाता हूँ तो वह कहते हैं " हम खेत में मगन हैं। हमारी अपनी दुनिया है। कोई आये जाये क्या फर्क पड़ता है। " सबकी बातें सुनकर लगता है चुनाव हमें कितना कुछ सीखा रहा है। बाद बांकी जो है सो तो हइये है।

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