Friday, August 21, 2015

बारिश, धान और सरोद

सरोद वादन
पूर्णिया में आज सुबह से बारिश हो रही है। उधर, अखबारों के पन्नों में चुनाव और दलीय राजनीति की खबरें फैली हुई है। बिहार को विशेष पैकेज का गणित अखबारों के खबरों को अपने जाल में फंसाए हुए है। हर कोई इसी की बात कर रहा है।

वैसे मेरे लिए अभी खबर बारिश ही है। धान को बारिश की जरुरत थी। ऐसे में मूसलाधार बारिश ने धान के खेतों में कुछ असर दिखाया है हालांकि अब काफी देर हो चुकी है।


हम जैसे कई किसान हार मान चुके थे थे और खेत को छोड़ चुके थे। ऐसे में देर ही सही लेकिन बारिश की बूंदों ने कुछ काम किया है। वैसे हम जान रहे हैं कि फसल इस बार मन को हरा नहीं करेगा। ऐसे में मन का एक कोना निराशा के फेर में फंसा हुआ है।
ऐसे में मन को संगीत की तलब लगी है। संगीत वो भी केवल इन्सट्रूमेंटल। वाद्य यंत्र के माध्यम से निकलने वाली आवाज मन को हमेशा से राहत पहुंचाती आई है। ऐसे माहौल में पूर्णिया शहर में स्पिक मैके के एक कार्यक्रम में जाना हुआ। वो भी सरोद सुनने।

पंडित राजीब चक्रवर्ती के सरोद वादन से पहला परिचय हुआ। वैसे सच कहूं तो सरोद के प्रति अपना अनुराग आठ साल पुराना है। पहली बार दिल्ली के पुराने किले में इस वाद्य यंत्र से इश्क हुआ था। वो दिल्ली की सर्द शाम थी। हम कालेज के दोस्तों के संग वहां पहुंचे थे। शाम कब देर रात में बदल गयी पता भी नहीं चला।

तकरीबन 300 साल पुराना यह वाद्य यंत्र मुझे अपने करीब तब तक ला चुका था। हम अपने दोस्तों के संग उस सर्द रात पैदल ही आईटीओ पहुंच गए थे। सरोद मन में बज रहा था। बाद में आईटीओ पर देर रात एक ओटो मिला और हम कुहासे की उस रात गुनगुनाते अपने कमरे पहुंचे थे।

मुझे आज भी याद है, उस शाम उस्ताद अमजाद अली खां ने गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के लोकप्रिय गीत ‘एकला चलो रे’ की रसपूर्ण प्रस्तुति के बाद राग दरबारी सुनया था। पत्रकारिता करते हुए बाद में  जाना कि यह खां साब का सबसे प्रिय राग है। राग से अनुराग की एबीसीडी वहीं से शुरु हुई थी शायद।

आज जाने कितने दिनों बाद पूर्णिया के विद्या विहार इंस्टिट्युट ऑफ़ टेक्नोलॉजी में स्पिक मैके के कार्यक्रम में वो सबकुछ गुजरे दिनों की बातें याद आ रही है। पंडित राजीब चक्रवर्ती ने अपने सरोद वादन से मन मोह लिया। भैरव राग में उन्होंने हम सबको बांध लिया। तबले पर पिंटू दास ने भी हमें आकर्षित किया। लेकिन हमें तो सरोद अपनी ओर खींच रहा था।

संगीत कार्यक्रम के बाद पंडित राजीब चक्रवर्ती ने सवाल जवाब का कार्यक्रम रखा था, जो स्पिक मैके के कार्यक्रमों का नियम है। इंजीनियरिंग कॉलेज के बच्चों के साथ उनके सवाल जवाबों में भी हमें संगीत का संगत देखने को मिला।

बाहर खूब बारिश हो रही थी। मौसम में सर्द का थोड़ा अंश मुझे अनुभव हो रहा था। शायद दिल्ली के पुराने किले की याद का असर है यह। हम फिर बारिश में भिंगते घर लौट आए लेकिन मन में सरोद पर सुना राग मल्हार बजर रहा था...संगीत की ताकत यही है शायद।

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