Sunday, August 28, 2011

हमारा हुक्मरान बड़ा कमबख्त है, जागते रहो ..

बाबा नागार्जुन की कविताओं  में एक अलग ही तरह राग होता है, मानो दूध केतली में उबल रही हो। जब दिल्ली के रामलीला मैदान में अन्ना अनशन पर थे, तब मैं अपनी नौकरी के लिए "रामलीला और देश की पाजी राजनीति" की लीलाओं का "तथाकथित" लाइव-अपडेट करता था। इसी बीच समय निकालकर फेसबुक के आंगन में अक्सर बाबा की पंक्तियों का इस्तेमाल करता रहा। उन्हीं सब पंक्तियों को यहां फिर से चस्पा कर रहा हूं। वैसे वक्त अभी भी नहीं बदला है।

दरअसल राजनीति का व्याकरण बड़ा जटिल होता है। गुलजार का लिखा है- "हमारा हुक्मरान बड़ा कमबख्त है, जागते रहो.." ऐसे समय पर कवि की रचनाओं, लेखकों के लेख, फोटोग्राफरों के तस्वीरों पर हमारा ध्यान सबसे अधिक जाता है। यही आम आदमी की मौलिक अभिव्यक्ति होती है। प्रियदर्शन कविता के बारे में अपनी ही  एक कविता में कहते हैं-  "कविता लिखना दुनिया को नए सिरे से देखना है/अपनी मनुष्यता को नए सिरे से पहचानना/इस पहचान में यह सवाल भी शामिल है/कि जब तुम कविता नहीं लिख रहे होते/तब भी दुनिया को इतनी मुलायम निगाहों से क्यों नहीं देख रहे होते?"

बाबा को लेकर लिखे अपने एक लेख मे मृत्युंजय कहते हैं- " 'जन-आन्दोलनों का इतिहास' नाम की किताब अगर आप लिखने की सोचें तो एकबार नागार्जुन के काव्य-संसार की ओर पलट कर देख लें. तेभागा-तेलंगाना से लेकर जे.पी. की सम्पूर्ण क्रान्ति तक और भगतसिंह से लेकर भोजपुर तक आप यहां दर्ज पायेंगें, और पायेंगे कितने ही स्थानीय प्रतिरोध, जिनको इतिहास की मुख्यधारा हमेशा ही भुला देती है. पर यह कोई अंध आन्दोलन भक्ति का सबब नहीं. आन्दोलनों का टूटना-बिखरना, उनकी कमी-कमजोरी, सब अपनी सम्पूर्णता में यहां मौजूद है. जे.पी. आन्दोलन पर क्रमशः लिखी कवितायेँ इसकी गवाही हैं- 'क्रान्ति सुगबुगाई है' से 'खिचड़ी विप्लव देखा हमने' तक. "

दरअसल बाबा ने इस सख्त समाज को मुलायम निगाहों से' तल्खी से पढ़ा है, आप भी पढिए-

१. "निभृत निर्जन में, लूटिए चिन्तन-सुख निभृत निर्जन में/आने न दीजिए वृथा विकल्प मन में/अति अधिक अभिरुचि रखिए न धन में/कभी कुफल भी चखिए जीवन में लूटिए चिन्तन सुख निभृत निर्जन में।"

२. "ऊपर-ऊपर मूक क्रांति, विचार क्रांति, संपूर्ण क्रांति, कंचन क्रांति, मंचन क्रांति, वंचन क्रांति, किंचन क्रांति, फल्गु सी प्रवाहित होगी, भीतर भीतर तरल भ्रान्ति"

३. "यह क्या हो रहा है जी, आप मुंह न खोलिएगा, कुच्छो न बोलिएगा, कैसे रहा जाएगा आपसे ? आप तो कभी डरे नहीं अपने बाप से, तो बतलाइए, यह क्या हो रहा है?

४. "डेमोक्रेसी की डमी.. वो देखो वो देखो, गुफा से निकली संजय की ममी...."

५. " आयं-बायं बकते फिरते हैं, परेशान हैं कांग्रेसी, पग-पग पे यूं घिरते हैं, परेशान हैं कांग्रेसी, कम्युनिस्ट तक दगा दे गए, परेशान हैं कांग्रेसी, अपने काडर भगा ले गए परेशान हैं कांग्रेसी, जेपी अब संपूर्ण संत हैं, परेशान हैं कांग्रेसी.. कदम कदम पे अटक रहे हैं, परेशान हैं कांग्रेसी, बिगड़ चुके हैं नाती-पोते, परेशान हैं कांग्रेसी "

६.'कांग्रेस के लीडर देखो/ उड़ते रंग के गीदड़ देखो/ बेदखली पर नजर न पड़ती/ सर्वोदय के प्लीडर देखो/ जयप्रकाश का अनशन देखो/ सोशलिज़्म का प्रहसन देखो/ दोमुंहिया ढुलमुल नेता के/ पहनावे का पटसन देखो'.-

७." कबिरा खड़ा बाज़ार में, लिया लुकाठी हाथ, बन्दा क्या घबरायेगा, जनता देगी साथ"

८. "ॐ ह‌म च‌बायेंगे तिल‌क और गाँधी की टाँग/ॐ बूढे की आँख, छोक‌री का काज‌ल/ॐ तुल‌सीद‌ल, बिल्व‌प‌त्र, च‌न्द‌न, रोली, अक्ष‌त, गंगाज‌ल/ॐ शेर के दांत, भालू के नाखून‌, म‌र्क‌ट का फोता/ॐ ह‌मेशा ह‌मेशा राज क‌रेगा मेरा पोता "

९. "चलो अब चलकर धरना देंगे दिल्ली के दरबार मे , भूख हरण टिकिया मिलती है जहां सुपर बाज़ार मे"

1 comment:

SANDEEP PANWAR said...

जरुर