बीच दुपहरिया में फेसबुक मैसेज बॉक्स में एक संदेश गिरता है, मैं राजू, पहचाना क्या? मैंने बिना लाग-लपेट के ‘नहीं’ लिख दिया लेकिन तुरंत ही राजू नामक मेहमान के फेसबुक एकांउट में दाखिल हुआ। फिर पता चलता है कि यह तो राजेश मेहता है अपने गांव का। मैं अचरज में हूं इस वेब संसार को लेकर। दूरियों को पाटना कोई इससे सीखे।
बुखार में फंसने की बात पल में 1200 किलोमीटर दूर तक पहुंच गई। वैसे इंटरनेट की बहुयामी दुनिया का सबसे रोचक अध्याय मोबाइल है। अब बड़ी संख्या में लोग मोबाइल के जरिए इंटरनेट ब्राउज कर रहे हैं। मैं इस ब्राउज अध्याय से ब्लैकबेरी को दूर रख रहा हूं क्योंकि कम मूल्य के मोबाइल से भी अब उसी तेजी में ब्राउज किया जा रहा है, जिसपर साल भर पहले तक महंगे स्मार्टफोन व ब्लैकबैरी का आधिपत्य था। दरअसल राजू का अध्याय नोकिया या सैमसंग के 2-3 हजार रुपये के मोबाइल से ही शुरु होता है।
हाल ही में कोसी और गंगा के कछारों से होकर गुजरा था। कई गांव को मोबाइलमय होते देखा लेकिन इन सबके साथ इंटरनेट के जाल को भी समझने की जरुरत है। मेरे राजू की कहानी ‘मोबाइल-इंटरनेट संगम’ से ही शुरु होती है। वह मोबाइल पर प्रयोग किए जाने वाले ब्राउजरों से वाकिफ है। उसे पता है कि ओपेरा मिनी के अपग्रेडेड वर्जन से मोबाइल पर काफी तेजी से ब्राउज किया जा सकता है। इसी अंदाज में वह धान के उन्नत बीजों के बारे में भी आपको बता सकता है। आठवीं पास इस युवक को ‘मोबाइल-इंटरनेट संगम’ ने दौड़ती-भागती आगे बढ़ती दुनिया से दो हाथ करना सीखाया है।
पिछले महीने पूर्णिया से 30 किलोमीटर दूर एक गांव जाना हुआ, भगैत सुनने। भगैत के मूलगैन (मूलगायक) अवधबिहारी जी की आवाज के जादू ने मन को मोह लिया, अफसोस मैं रिकार्ड नहीं कर सका। जाते वक्त मैंने अवधबिहारी जी से कहा कि क्या आपकी कोई तस्वीर मिल सकती है? उनका जवाब मुझे काफी रोचक लगा।
अवधबिहारी जी की उम्र 60 के आसपास होगी। गठीला बदन, स्वस्थ और तेजर्रार (उन्हें देखकर मुझे अपने बढ़े वजन और निकले पेट पर शर्म आ रही थी)। उन्होंने कहा- अहां क मोबाइल अछि कि, ब्लूटूथवा ऑन करू न। हमर मोबाइल से अहां क मोबाइल में फोटू पहुंच जाएत यौ। हमर पोता क अबै छै इ सब...
मुझे अभी भी अवधबिहार जी का कहने का अंदाज हूबहू याद है। वायरल के चक्कर में जब कल राजू का फेसबुकिया संदेश आया तो ऐसी कई यादें मन की किताब से बाहर आने लगी और मैं सादे कागज को रंगीन करने लगा। राजू और अवधबिहारी जी जैसे लोगों की बातों को सुनकर मन साधो-साधो कहने लगता है।
बुखार में फंसने की बात पल में 1200 किलोमीटर दूर तक पहुंच गई। वैसे इंटरनेट की बहुयामी दुनिया का सबसे रोचक अध्याय मोबाइल है। अब बड़ी संख्या में लोग मोबाइल के जरिए इंटरनेट ब्राउज कर रहे हैं। मैं इस ब्राउज अध्याय से ब्लैकबेरी को दूर रख रहा हूं क्योंकि कम मूल्य के मोबाइल से भी अब उसी तेजी में ब्राउज किया जा रहा है, जिसपर साल भर पहले तक महंगे स्मार्टफोन व ब्लैकबैरी का आधिपत्य था। दरअसल राजू का अध्याय नोकिया या सैमसंग के 2-3 हजार रुपये के मोबाइल से ही शुरु होता है।
हाल ही में कोसी और गंगा के कछारों से होकर गुजरा था। कई गांव को मोबाइलमय होते देखा लेकिन इन सबके साथ इंटरनेट के जाल को भी समझने की जरुरत है। मेरे राजू की कहानी ‘मोबाइल-इंटरनेट संगम’ से ही शुरु होती है। वह मोबाइल पर प्रयोग किए जाने वाले ब्राउजरों से वाकिफ है। उसे पता है कि ओपेरा मिनी के अपग्रेडेड वर्जन से मोबाइल पर काफी तेजी से ब्राउज किया जा सकता है। इसी अंदाज में वह धान के उन्नत बीजों के बारे में भी आपको बता सकता है। आठवीं पास इस युवक को ‘मोबाइल-इंटरनेट संगम’ ने दौड़ती-भागती आगे बढ़ती दुनिया से दो हाथ करना सीखाया है।
पिछले महीने पूर्णिया से 30 किलोमीटर दूर एक गांव जाना हुआ, भगैत सुनने। भगैत के मूलगैन (मूलगायक) अवधबिहारी जी की आवाज के जादू ने मन को मोह लिया, अफसोस मैं रिकार्ड नहीं कर सका। जाते वक्त मैंने अवधबिहारी जी से कहा कि क्या आपकी कोई तस्वीर मिल सकती है? उनका जवाब मुझे काफी रोचक लगा।
अवधबिहारी जी की उम्र 60 के आसपास होगी। गठीला बदन, स्वस्थ और तेजर्रार (उन्हें देखकर मुझे अपने बढ़े वजन और निकले पेट पर शर्म आ रही थी)। उन्होंने कहा- अहां क मोबाइल अछि कि, ब्लूटूथवा ऑन करू न। हमर मोबाइल से अहां क मोबाइल में फोटू पहुंच जाएत यौ। हमर पोता क अबै छै इ सब...
मुझे अभी भी अवधबिहार जी का कहने का अंदाज हूबहू याद है। वायरल के चक्कर में जब कल राजू का फेसबुकिया संदेश आया तो ऐसी कई यादें मन की किताब से बाहर आने लगी और मैं सादे कागज को रंगीन करने लगा। राजू और अवधबिहारी जी जैसे लोगों की बातों को सुनकर मन साधो-साधो कहने लगता है।
5 comments:
bahut badhiyaan. bracket main avadhbihariji ke lines ko hindi main samjhaane ki koi jarurat nahi. just a suggestion.
सरश और रोचक!
कोसी और गंगा कछारों में रोचक ‘मोबाइल-इंटरनेट संगम’
मैला आंचल में रेडियो का प्रसंग उस मेरीगंज की कहानी है जहां विज्ञान,संचार और तकनीक में भी किंवदंतियां और लोककथाएं जगह पा लेती है। विज्ञान आधारित वस्तुएं यहीं आकर अभिशाप के बजाय समाज का एक जीता-जागता चरित्र बनने लग जाता है और हमारा उससे खास किस्म का लगाव भी। मोबाईल को लेकर बिहार की जीप और ट्रेकरों में एक के बाद एक गाने बजते हैं जिसका सार सिर्फ इतना भर है कि कि लड़की और मोबाईल एक-दूसरे के पर्याय हैं लेकिन इसके भीतर एक जीवन,एक अनुभव और पेंदी में जहां-तहां मिट्टी भी है,ये तुम्हें पढ़कर महसूस होता है।..कोई उपन्यास लिखे,कोई क्या तुम ही- मोबाइल युग का मैला आंचल.
@ Vineet Kumar- शुक्रिया भैया। अंचल में एक साथ कई कथाएं चल रही है, जिसके कोण एक दूसरे मिले हुए हैं। मोबाइल और साथ में वृहत इंटरनेट साम्राज्य इससे अछूता नहीं है। दिल जुड़ रहे हैं, मन गढ़े जा रहे हैं....
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