Monday, July 25, 2011

मेरे जैसे बन जाओगे जब...

अरविंद आज कुछ अलग अंदाज में लग रहा था। यह अंदाज मन की छटपटाहट को बयां कर रही थी। उसकी दोस्त राइमा को भी इसका अहसास हो रहा था। दक्षिण दिल्ली के एक पीआर एजेंसी में दोनों साथ-साथ काम करते हैं।

अरविंद ने गूगल चैट पर राइमा को लिखा कि वह स्मोकिंग जोन में आए। राइमा पहुंचती है। अरविंद सिगरेट का कश लेते हुए कहता है, “ जानती हो राइमा, मैंने मन से बड़ा आवारा कहीं नहीं देखा है। छूटते ही निकल पड़ता है, तब किसी की नहीं सुनता है। आज इस दोपहर में जब अपने हिस्से के सारे कामों को निपटा चुका हूं तो मन आवारगी की सारी सीमाओं को तोड़ने को आतुर है।“

राइमा ने कहा, “तो जनाब क्या करने जा रहे हैं, इस दोपहरी में।“ अरविंद सिगरेट का लंबा कश लेता है और कहता है, “अभी इंटरनेट के विशाल साम्राज्य के एक छोटे से सूबे का छान मार चुका हूं। गूगल सर्च ईंजन के जरिए कई शब्दों से जुड़े तारों पर हाथ फेरा। रविवार डॉट कॉम पर भारत यायावर की राजेंद्र यादव की विरासत पढ़ी, एक नहीं दो बार। फिर बीबीसी हिंदी डॉट कॉम पर २००४ में प्रकाशित बदल गया नक्सलबाड़ी का चेहरा पढ़ा। ऐसे तमाम चीजों पर हाथ आजमाते हुए कहीं निकल जाने का जी चाह रहा है।“

राइमा ने भी एक सिगरेट सुलगाई और कहा, “तब तो यह दुपहरिया कयामत ढाने वाली होगी। मुझे लगता है तुम्हें खुद को वक्त देना चाहिए। मन के दर्शन को समझने के लिए। अरविंद जानते हो, इसके लिए वक्त चाहिए।“

राइमा की बात सुनकर अरविंद मुस्कुराता है और फिर दोनों हाथों की ऊंगलियों को दबाते हुए कहता है- “मैडम, यहां तो दर्शन से कोई वास्ता ही नहीं है और तुम वक्त देने की बात कर रही हो।“

राइमा सिगरेट का धुंआ उडा़ते हुए बात को बदलने की कोशिश करती है और हाल ही में आमिर खान की रिलीज हुई फिल्म की चर्चा करती है लेकिन इसका असर अरविंद पर नहीं पड़ता और सिगरेट की डिबिया से दूसरा सिगरेट निकाल लेता है।

अरविंद और राइमा ने हिंदू कॉलेज में साथ-साथ पढ़ाई की थी। अरविंद इतिहास का छात्र रहा है वहीं राइमा अर्थशास्त्र की मेधावी छात्रा। कॉलेज फेस्ट में दोनों एक दूसरे के नजदीक आए और फिर क्या दोनों की मन की डोरी बंधती चली गई। इस डोर में कई गांठ हैं, जिसे दोनों ने मिलकर लगाए हैं। कॉलेज से निकलने के बाद अरविंद ने एक एनजीओ में नौकरी शुरु की वहीं राइमा ने पढ़ाई जारी रखी।

राइमा ने अरविंद से कई दफे कहा कि वह पढ़ाई जारी रखे लेकिन उसके मन का जिद्दी कोना हमेशा खुद की सुनता रहा है। इस दौरान शोध के सिलसिले में राइमा कुछ दिनों के लिए ब्राजील गईं, फिर देश लौटकर एक पीआर एजेंसी की आर्थिक मामलों की सलाहकार बन गईं। लौटने के बाद उसने अरविंद को भी अपनी ही एजेंसी में लाने की कोशिश की। आखिर कई बार कहने पर वह राजी हुआ। राइमा ने अपने स्तर से अरविंद को वरिष्ठ अनुवादक की जगह दिलवाई, जिसका वह हकदार भी है। खासकर कम शब्दों में अपनी बात कहने की उसकी कला की सभी प्रशंसा करते हैं।

एक जगह नौकरी करते हुए दोनों ने ग्रीन पार्क में दो कमरे का एक फ्लैट किराए पर लिया, साथ-साथ रहने के लिए। इस दो कमरे के घर को उन्होंने संसार का रुप दिया। पर्दे से लेकर कुर्सियों तक में दोनों ने जान फूंक दी। रंग को लेकर दोनों ने ढेर प्रयोग किए। दोनों अक्सर कहते थे कि रंग ही जीवन है, जिंदगी को रंग डालो। हर सुबह अमीर खुसरो को उस्ताद सुजात हुसैन की आवाज में सुनना दोनों की आदत थी। राइमा कहती है "कबीर और अमीर खुसरो अरविंद में हैं, मैं दोनों को समझने के लिए अरविंद को पढ़ती हूं।"

राइमा के अनुसार अरविंद किताब है तो अरविंद के अनुसार राइमा एक नज्म है। दोनों की विवाह जैसी किसी संस्था पर यकीन न रखने की वजह से उनकी जिंदगी एक पटरी पर दौड़ती रही। जिसे समाचार पत्रों, न्यूज चैनलों और फिल्मों में लिव-इन कहते हैं, ऐसा ही कुछ था दोनों के बीच। लेकिन इन सबसे आगे दोनों के बीच आपसी समझ रही है। वे एक दूसरे को समझते हैं, एक दूसरे पर यकीन रखते हैं। यही एक जोड़ है, जो उनके रिश्ते को मजबूती देती आ रही है।

आज दोपहर में जब राइमा के गूगल चैट पर हरी बत्ती जली और अरविंद का हिंदी में टाइप किया संदेश आया तो वह खुद में अरविंद को टटोलने लगी। कॉलेज के दिनों में नार्थ कैंपस के पटेल चेस्ट पर समोसे वाले के यहां दोनों घंटों बैठा करते थे। भविष्य को लेकर बातें करते थे। इस बीच अरविंद गजल भी उसे सुनाता था। अरविंद तब अक्सर जगजीत सिंह की गायी यह गजल गुनगुनाता था-  “मेरे जैसे बन जाओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जायेगा, दीवारों से टकराओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जायेगा...”

आज बरसों पुरानी ढेर सारी बातें राइमा मानो खुद को सुना रही थी। उधर, एक अजीब छटपटाहट के बीच अरविंद ऑफिस से जल्दी ही निकल गया। स्मोकिंग जोन में हुई बातचीत के बाद राइमा भी सोचने लगी। उसके मन में कई सवाल उठ रहे थे। उसने गूगल चैट बॉक्स देखा, अरविंद की हरी बत्ती जल रही थी, शायद ब्लैकबेरी से वह चैट के लिए तैयार था। राइमा ने रोमन में लिख भेजा- “तेरे आने की जब खबर महके, तेरी खुश्बू से सारा घर महके….।”    उधर से अरविंद का जवाब आया, "आज तुम भी जल्दी आ जाओ, कोई फिल्म देखेंगे।" 

3 comments:

Rahul Singh said...

जैसा नजाकत भरा रिश्‍ता वैसी ही बयानी.

Pratibha Katiyar said...

तेरी खुश्बू से सारा घर महके...

वाणी गीत said...

कहानी बड़ी जानी -पहचानी लगी !