हफ्ते भर पहले घर जाना हुआ। नौकरी करते मौका कम ही मिलता है लेकिन मौका निकालना पड़ता है। दरअसल यादों के सहारे लिखते रहने से ठहराव आ जाता है, प्रवाह बना रहे इसके लिए वहां जाना होता है जिसपर हम लिखना चाहते हैं। यह सब गढ़ने की तरह है।
हमारे यहां (कोसी) बखारी और कोठी का प्रचलन है। बखारी घर के बाहर बांस और झोपड़ी का बना भंडार होता है, जिसमें धान आदि रखे जाते हैं, वहीं कोठी मिट्टी से बना बॉक्सनुमा भंडार गृह होता है, जिसमें चावल, गेंहू, दाल आदि रखे जाते हैं। यहां कोठी-बखारी की बात करने के पीछे गढ़ना शब्द का ऊपर में किया गया प्रयोग है। गढ़ने के लिए उस जगह जाने की जरुऱत होती है, जिसे आप अपनी व्याख्या में शामिल करते हैं।
इस बार जब घर गया तो बदलाव की एक सुनहरी दुनिया देखने को मिली। कई गांव को डिजीटल होते देखा। डिजीटल की श्रेणी में मैं मोबाइल, मोबाइल टॉवर, रिचार्ज स्टोर आदि को रखने जा रहा हूं। नौगछिया के एक गांव में मैंने एयरटेल का एक बड़ा सा होर्डिंग वाला विज्ञापन सड़क किनारे देखा, जिसमें फेसबुक से दोस्तों को जोड़ते दिखाया गया था। तभी बस में बगल के सीट पर बैठे एक लड़के को मोबाइल से ऑरकुट ब्राउज करते देखा। मुझे खुशी हुई। इसे देखकर लिखना मुझे आज रास आ रहा है। अच्छा लग रहा है कि मैं देखकर गढ़ रहा हूं।
हमारे यहां (कोसी) बखारी और कोठी का प्रचलन है। बखारी घर के बाहर बांस और झोपड़ी का बना भंडार होता है, जिसमें धान आदि रखे जाते हैं, वहीं कोठी मिट्टी से बना बॉक्सनुमा भंडार गृह होता है, जिसमें चावल, गेंहू, दाल आदि रखे जाते हैं। यहां कोठी-बखारी की बात करने के पीछे गढ़ना शब्द का ऊपर में किया गया प्रयोग है। गढ़ने के लिए उस जगह जाने की जरुऱत होती है, जिसे आप अपनी व्याख्या में शामिल करते हैं।
इस बार जब घर गया तो बदलाव की एक सुनहरी दुनिया देखने को मिली। कई गांव को डिजीटल होते देखा। डिजीटल की श्रेणी में मैं मोबाइल, मोबाइल टॉवर, रिचार्ज स्टोर आदि को रखने जा रहा हूं। नौगछिया के एक गांव में मैंने एयरटेल का एक बड़ा सा होर्डिंग वाला विज्ञापन सड़क किनारे देखा, जिसमें फेसबुक से दोस्तों को जोड़ते दिखाया गया था। तभी बस में बगल के सीट पर बैठे एक लड़के को मोबाइल से ऑरकुट ब्राउज करते देखा। मुझे खुशी हुई। इसे देखकर लिखना मुझे आज रास आ रहा है। अच्छा लग रहा है कि मैं देखकर गढ़ रहा हूं।
भागलपुर से पूर्णिया और पूर्णिया से आगे कई ग्रामीण इलाकों में कमोवेश ऐसी ही दुनिया देखी। टेलीफोन बूथों पर शोध के सिलसिले में २००६ में इन इलाकों का छान मारा था, तब मोबाइल की दुनिया ऐसी रंगीन नहीं थी। तब डब्ल्यूएलएल (वाइरलैस इन लोकल लूप) की चलती थी लेकिन आज मोबाइल की दस्तक एक नए विषय पर सोचने पर मजबूर कर रहा था।
१० में से कम से कम दो पक्के घर के दीवारों पर मुझे दूरसंचार कंपनियों के बड़े-बड़े विज्ञापन देखने को मिले। ये बदलती दुनिया है, जिसनें मोबाइल बिन सब सुन जैसी बातें कहने का जी करता है।
१० में से कम से कम दो पक्के घर के दीवारों पर मुझे दूरसंचार कंपनियों के बड़े-बड़े विज्ञापन देखने को मिले। ये बदलती दुनिया है, जिसनें मोबाइल बिन सब सुन जैसी बातें कहने का जी करता है।
श्रीनगर से आगे खुट्टी धुनैली गांव में मोबाइल टॉवर देखने गया,जिनके घर गया और जो बातचीत हुई,वो मुझे मजेदार लगी। बातों में कथा जैसा रस मिला। इस्माइल चचा (जिनके घर के बाहर टॉवर है) ने कहा- “बौआ, इ टॉवर बेटा से बढ़कर है।“ मैंने पूछा कैसे, तो उन्होंने कहा- “बेटा क्या हुआ जो कमाए नहीं और कमाई घर न भेजे। इ टॉवर कमाई पुत है, हर महीने टाइम पर पैसा भेजता है और घर भी रौशन (जेनरेटर) करता है।“
मैं उनकी बातों में और उनकी कहने की कला में उलझता जा रहा था, लग रहा था मानो कोई कथा सुना रहा हो। अंचल की कथा। उनके घर से बाहर आकर नहर की पगडंडियों पर चल पड़ा, एक और कथा बुनने।
मैं उनकी बातों में और उनकी कहने की कला में उलझता जा रहा था, लग रहा था मानो कोई कथा सुना रहा हो। अंचल की कथा। उनके घर से बाहर आकर नहर की पगडंडियों पर चल पड़ा, एक और कथा बुनने।
2 comments:
Girindar ji --maja aagya har shabd mein kahani chupi hai
ऐसी बिखरी और अनगढ़ सी कथाओं को सुनने के लिए सधे कान की जरूरत होती है.
Post a Comment