Monday, March 22, 2010

शहनाई खामोश नहीं हुई है दोस्त (सपने में बिस्मिल्ला खान से बातचीत)


सपने में बिस्मिल्ला खान से बातचीत

खां साब बेहद सुस्त नजर आ रहे थे। बनारस में अपने घर के बरामदे पर चुपचाप बैठे सामने की ओर देख रहे थे। उनके समीप बैठकर मैं भी चुपचाप उन्हें देखे जा रहा था। उनकी खामोशी टूटी, और कहा, जनाब, एक बात जानते हो, जिदंगी कुछ पलों के लिए ही अच्छी होती है, जब तक अच्छे, मतलब आगे रहो हर कोई याद करता है लेकिन चार कदम दूर हो जाने से सब भूल जाते हैं..। यही फलसफा है जिंदगी का..मुझको ही देखो जब तक रहा तो लोग कुछ न कुछ कहकर याद किया करते थे, लोग किताबें लिखा करते थे.....कुछ तो समारोह भी आयोजित कर देते थे..। जन्मदिन पर 21 मार्च (1916) पर लोग यहां आया करते थे...शुभकामनाएं देने...मैं भी शहनाई तान देता था....पर..अब..।


21 अगस्त 2006 को जब मैंने हमेशा के लिए आंखें मूंदी तो भी लोगों ने याद किया..सुबह के अखबारों में पहले पन्ने पर छपी थी -अब हमेशा के लिए शहनाई खामोश हो गई...

बरखुरदार, वक्त बितता चला गया....कह सकते हो वक्त का पहिया बड़ा ताकतवर होता है। 21 मार्च 2010 को किसी ने याद नही किया..मैं तुमसे शिकायत नहीं कर रहा हूं, क्योंकि कभी भी प्रचार का मुझे शौक नहीं रहा। यदि रहता तो मैं भी रजवाड़े की दुनिया के टूटने के बाद न्यूयार्क चला जाता और वहां शहनाई की धुन बिखेर कर डॉलरों कमाता..कभी भी यह सब अच्छा नहीं लगा..पर जीवित रहते जब तुम लोग मेरी बातों को लिखते थे, कोई किताब लिखता था तो काफी खुशी मिलती थी। यही वजह थी, कि मैं बनारस में अड्डा बनाए रखा..। क्या तुम्हें अब मेरी थोड़ी भी याद नहीं आती है...।

आंखे खुल गई, मैं बिस्तर पर चुपचाप बैठ गया..22 मार्च की सुबह....अन्य सुबह की तरह ही जिंदगी के लिए भागमभाग जारी..


(Ustad Bismillah Khan Sahib (Urdu: استاد بسم اللہ خان صاحب; March 21, 1916 – August 21, 2006)

(बज पर वीनित कुमार की टिप्पणी- हमें बिस्मिल्ला खां को इतनी जल्दी नहीं भूलना चाहिए था।..कहीं कोई मीडिया कवरेज नहीं। IPL तेजी से खबरों को ध्वस्त करता जा रहा है।..ऐसे होती है खबरों पर बादशाहत और ऐसे ही धीरे-धीरे होती है सरोकारी पत्रकारिता की हत्या।..)

7 comments:

कृष्ण मुरारी प्रसाद said...

अच्छी प्रस्तुति.......
.....
कृष्ण की बांसुरी, ..बिस्मिल्लाह खान की शहनाई..... और जीसस का क्रॉस
................
लड्डू बोलता है ....इंजीनियर के दिल से..
http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_1697.html

विनीत कुमार said...

अपनी ही पोस्ट का लिखा एक हिस्सा यहां उठाकर चेंप दे रहा हूं खां साहब की याद में-शहनाईवादक उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ां की जिंदगी पर "सुर की बारादरी"नाम से यतीन्द्र मिश्र ने किताब लिखी है। ये दरअसल उस्ताद से यतीन्द्र की हुई बातचीतों और मुलाकातों की किताबी शक्ल है जिसे आप संस्मरण और जीवनी लेखन के आसपास की विधा मान सकते हैं। किताबों पर विस्तार में बात न करते हुए यहां हम फिर उस्ताद बिस्मिल्ला खां के उस प्रसंग को उठा रहे हैं जो कि हमारे ख़्वाबों को पुनर्परिभाषित करने के काम आ सके। बकौल यतीन्द्र मिश्र-

तब उस्तादजी को 'भारत रत्न'भी मिल चुका था। पूरी तरह स्थापित और दुनिया में उनका नाम था। एक बार एक उनकी शिष्या ने कहा कि- उस्तादजी,अब आपको तो भारतरत्न भी मिल चुका है और दुनियाभर के लोग आते रहते हैं आपसे मिलने के लिए। फिर भी आप फटी तहमद पहना करते हैं,अच्छा नहीं लगता। उस्तादजी ने बड़े ही लाड़ से जबाब दिया- अरे,बेटी भारतरत्न इ लुंगिया को थोड़े ही न मिला है। लुंगिया का क्या है,आज फटी है,कल सिल जाएगा। दुआ करो कि ये सुर न फटी मिले।..

Amrendra Nath Tripathi said...

कितना त्रासद है भूलना / भुलाना !

Nabeel A. Khan said...

Thats so unfortunate that we have forgotten him so easily while wh have time to pay continous homage to MJ, every bollywood or any other musical show in India remebered MJ but all fervour but Bismillah Khan who represented India for many years is left behind as a forgotten history!! there many such greats of our country whose contribution is erased!!

kshama said...

Fehrist karne baithen,to na jane kitni lambi hogi...unki jinhen ham bhool gaye....jinhon ne hamari jholi bhari, lekin hamne palatke ehsaan bhi nahi jataya..

Sunil abhimanyu said...

गिरीन्द्र बाबू आपने एक दम सही नब्ज पर हाथ रखा है। इस देश की मानसिकता ही ऐसी रही है यहां सिर्फ उगते सूरज को नमस्कार किया जाता है। वो मुकेश का गाया गाना याद आ रहा है......जो चला गया उसे भूल जा....। इस देश की बदकिस्मती है कि यहां के नेता जीते जी अपनी मूर्ति लगाते हैं। और जो मिल का पत्थर स्थापित करता है वो सिर्फ राह में पड़े ऐसे पत्थर की तरह होता है। जो राह का पता तो सबको देता है, किंतु उसे कोई पुछने वाला नहीं होता है।

अनूप शुक्ल said...

अच्छी पोस्ट! उस्ताद की स्मृति को नमन!