Friday, May 22, 2009

सुनो साथियों....

कृपया इसे ध्यान से पढ़िएगा। पढ़ते वक्त खुद को अंधेरे में मत रखिएगा। यही गुजारिश है। इसे लिखा है संदीप कुमार पांडेय ने। मेरा दोस्त है और संयोग से सहकर्मी भी। उसने १० जनवरी २००९ को यह कविता लिखी और अपने ब्लॉग दिल-ए-नादाँ पर प्रकाशित भी किया लेकिन आज पांच महीने बाद अनायस ही मेरी नजर इस रचना पर गई और मैं इसमें डूब गया। और कुछ नहीं कहूंगा, बस पढ़िए। शुक्रिया

गिरीन्द्र


ये जो आदमी नाम का जीव है न मेरे भाई
सचमुच बड़ा अनोखा है
और चूंकि उसे पहचानना मेरा पेशा है
तो मैंने कोशिश की है और नतीजे आप को सुनाता हूँ..............
तो मुलाहिजा हो साहिबान
यहाँ कुछ लोग दुष्यंत कुमार के चेले हैं,
पूरी जवानी अपनी गुंडई और हरामीपने को
दुष्यंत की कविताओं की आड़ देने वाले ये लोग
साए में धूप को छाती से चिपकाये हुए
सुविधाओं से लैस जीवन के बीच कभी -कभी दौरा पड़ने पे
व्यवस्था के ख़िलाफ़ वमन करते हैं और सो जाते हैं
कुछ extreemist मार्क्स के चेले हैं
उन्होंने खोल रखे हैं एनजीओ
सरकारी दफ्तर में ग्रांट के लिए बाबू को तेल लगाने के बाद जो
उर्जा बच जाती है उसका उपयोग वे रात में बिस्तर पर
स्वयंसेविकाओं के साथ क्रांति करने में करते हैं
ये क्रांतिकारी लिखते हैं प्रेम की कवितायें
जिनमें होता है अफ़सोस अतृप्त कामनाओं पर
उनमें के एक दारु पीकर बड़ी मासूम सी कसम खाता है
कि उसने अपनी प्रेमिका के साथ
(जो अब किसी और की ब्याहता है) कभी सम्भोग नही किया
बगल में रहता है एक समाजवादी
जो साम्यवाद और समाजवाद पर रिसर्च कर रहा है
वो बहुत तार्किक है और चीजों के प्रति निरपेक्ष नजरिया रखता है
उसकी प्रेमिका ने दहेज़ के चलते उसके सबसे करीबी दोस्त के विवाह कर लिया है
इसे वह चयन की स्वतंत्रता का मामला बताता है
और भविष्य को लेकर बहुत आशान्वित है
एक धड़ा कट्टरपंथियों का है जिनको गान्ही (गांधी) से समस्या है
गान्ही बाबा ने उनको पचास साल पीछे धकेल दिया
ऐसा उनका आरोप है
बहरहाल शहर में बाकी सब ठीकठाक है .........

No comments: