इस आग को संभाल ले
तेरे हाथ की खेर मांगती हूँ
अब और सिगरेट जला ले !! "
आप पढ़े पूरी कविता।
अमृता प्रीतम
यह आग की बात है
तूने यह बात सुनाई
यह ज़िंदगी की वो ही सिगरेट है
जो तूने कभी सुलगाई थी
चिंगारी तूने दे थी
यह दिल सदा जलता रहा
वक़्त कलम पकड़ कर
कोई हिसाब लिखता रहा
चौदह मिनिट हुए हैं
इसका ख़ाता देखो
चौदह साल ही हैं
इस कलम से पूछो
मेरे इस जिस्म में
तेरा साँस चलता रहा
धरती गवाही देगी
धुआं निकलता रहा
उमर की सिगरेट जल गयी
मेरे इश्के की महक
कुछ तेरी सान्सों में
कुछ हवा में मिल गयी,
देखो यह आखरी टुकड़ा है
ऊँगलीयों में से छोड़ दो
कही मेरे इश्कुए की आँच
तुम्हारी ऊँगली ना छू ले
ज़िंदगी का अब गम नही
इस आग को संभाल ले
तेरे हाथ की खेर मांगती हूँ
अब और सिगरेट जला ले !!
6 comments:
मुझे जहां तक याद है, सिगरेट पर काशीनाथ सिंह का दिलचस्प संस्करण है औऱ नामवर सिंह की टिप्पणी कि तुमने बीड़ी क्यों लिखा वो तो बुझ जाती है, देर तक फूंक न मारो तो, कश न लगाओ तो, सिगरेट जलती रहती है।
बाकी कैंपस में सिकरेट बैन हो गया है, अच्छा किए कविता के जरिए लोगों का एहसास बना रहेगा
अमृता प्रीतम की कविताओं का क्या कहना. बहुत आभार पेश करने के लिए.
तो अब शुरू कर रहे हैं सिगरेट पीना।
अमृता जी की रचनाओं की तो बात ही कुछ और है। एक बेहतरीन रचना पढवाने के लिए शुक्रिया।
सिगरेट पीने वालों के साथ पूरे एका के बावजूद...
यह कविता सिगरेट के बारे में नहीं. धीरे-धीरे जलती (या कहें बुझती) ज़िन्दगी के बारे में है जिसमें सिगरेट सिर्फ़ एक प्रतीक भर है. मुझे याद आता है कि ओरहान पामुक का एक संस्मरण पढ़ा था सिगरेट पर कुछ समय पहले...
ठीक इसी तरह ’नो स्मोकिंग’ को भी सिगरेट पीने की आदत से जुड़ी फ़िल्म समझ लिया गया. एक बेहतरीन फ़िल्म अनपहचानी ही निकल गई. वे लोग जिन्हें अब ’देव डी’ के बाद अनुराग पर अथाह लाड़ आ रहा है वे फिर पीछे लौटकर ’नो स्मोकिंग’ देख लें तो कुछ बात बने.
पहले भी पढ़ी है ओर मेरी पसंदीदा नज़मो में से एक है
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