Friday, February 27, 2009

जय हो के साथ ससुराल गेंदा फूल का जलवा .........

दो दिनों से मन और तन दोनों ही धोखे में था, दरअसल बुखार और आलस्य का जाल मुझ पर हावी था। अभी-अभी खुद को सहज महसूस कर रहा हूं। कुछ देर पहले कमरे से बाहर निकला था। आज खूब शादियां हो रही है। घरके बगल में भी एक शादी हो रही है और खूब पटाखे फूट रहे हैं। रात के ११.१५ बजे जब मैं यह पोस्ट तैयार कर रहा हूं तो कान मे दो गीत में सुनाई पर रहे हैं- गुलजार का जय हो और प्रसून जोशी का ससुराल गेंदा फूल (लोकसंगीत को लेकर छत्तीसगढ़ी विवाद में शामिल)।

थोड़ा कमरे से बाहर निकला और बालकनी में आया। कुछ लड़के और लड़कियां मस्त अंदाज में नाच रहे हैं और बाय-ग्राउंड में बज रहा है-

'' ओय होय ओय होय-४
सैंया छेड़ देवें, ननद चुटकी लेवे
ससुराल गेंदा फूल
सास गारी देवे, देवर समझा लेवे
ससुराल गेंदा फूल
छोड़ा बाबुल का अंगना,
भावे डेरा पिया का हो
सास गारी देवे, देवर समझा लेवे
ससुराल गेंदा फूल
सैंया है व्यापारी, चले हैं परदेश
सुरतिया निहारूँ जियरा भारी होवे
ससुराल गेंदा फूल ''


(दो-तीन लाइन छूट रही है॥यदि पता हो तो बताइएगा)

डीजे स्टाइल में इस लोकगीत को सुनकर अजीब अनुभूति हो रही है, मानो मन कह रहा है - मेट्रो कहने वाले इस शहर में ऐसे गीत लोग के जुबान में चढ़ चुके हैं। भले ही विवाद हो फिल्म में इस गीत को लेकर लेकिन सच्चाई यही है कि दिल्ली-६ से यह गीत अन्य पिनकोड में भी पहुंच चुका है।

थोड़े ही देर में गीत के बोल बदल जाते हैं और कुछ जवान तेज गीत के साथ चिल्ला पड़ते हैं-
जय हो॥
ऑस्कर तक के सफर में इस गीत ने धमाल मचाया तो भला दिल्ली के बारात में यह गीत क्यों न हो--
आप भी इसकी पंक्तियों में डुबकी लगाइए-

"आजा-आजा जिंद शामियाने के तले
आजा जरीवाले नीले आसमान के तले
रत्ती-रत्ती साची मैंने जान गंवाई है
नाच-नाच कोयलों पे रात बिताई है
अखियों की नींद मैंने फूंकों से उड़ा दी
नीले-तारे से मैंने उंगली जलाई है
आजाआजा जिंद शामियाने के तले
आजा जरीवाले नीले आसमान के तले
जय हो जय हो.........................
चख ले हो चख ले ये रात शहद है चख ले
रख ले हां दिल है आखिर हद है रख ले
काला-काला काजल तेरा कोई काला जादू है न
आजा -आजा जिंद शामियाने तले
आजा जरीवाले नीले आसमान के तले
जय हो जय हो
जय हो जय हो........................."

इन दोनों गीतों को एक अलग अंदाज में सुनने के बाद मन तृप्त हो गया है, एक कप कॉफी पीने के बाद मन कर रहा है कहीं दूर निकला जाए, शांत जगह में , जहां मैं चिल्लाकर कह सकूं, जय हो...जय हो....................
लेकिन अभी भी समझ में नहीं आ रहा है-आखिर क्या है ससुराल गेंदा फूल.........।

4 comments:

सुशील छौक्कर said...

वाह दोस्त अकेले ही काफी पी रहे हो फिर कहते हो कि ये दिल्ली वाले तो .....। कभी याद करोगे तब ही ना। वैसे बुखार कैसा है। हमें ही पहले बता देते तो बुखार भी उतार देते बस 10 मिनट में। एक नुस्खा है हमारे पास पूछो तो बताऊँ? पर भईया आप क्यूँ याद करेगे दिल्ली वालो को।
ये लो जी गाना
सास गारी देवे, देवर जी समझा लेवे
ससुराल गेंदा फूल
सैंया छेड़ देवें, ननद चुटकी लेवे
ससुराल गेंदा फूल


छोड़ा बाबुल का अंगना, भावे डेरा पिया का हो
सास गारी देवे, देवर समझा लेवे
ससुराल गेंदा फूल

सैंया है व्यापारी, चले हैं परदेश
सुरतिया निहारूं, जियरा भारी होवे
ससुराल गेंदा फूल


बुशर्ट पहनके, खाइके बीडा पान
पूरे रायपुर से अलग है, सैंया जी की शान
ससुराल गेंदा फूल

अब ये लो ससुराल गेंदा फूल...
गेंदा फूल छत्तीसगढ़ के मैदानी इलाके में बहुतायत में मिलता है. हर किसी के बाड़ी में यह खिला हुआ देख सकते हैं. नवविवाहिता इस गीत में गेंदा फूल की बाड़ी की तरह ससुराल को गुलजार मान रही है और देवर से कुछ खट्टी मीठी शिकायतें कर रही है.

मजा आया कि नहीं।

Girindra Nath Jha/ गिरीन्द्र नाथ झा said...

शुक्रिय सुशील जी।
आपने ससुराल गेंदा फूल का भाव बता दिया और दो पंक्तियां जो छूट गई थी -

बुशर्ट पहनके, खाइके बीडा पान
पूरे रायपुर से अलग है, सैंया जी की शान
ससुराल गेंदा फूल

उसे भी टिपिया दिया। थैंक्स सरजी।

और हां, दिल्ली से मुझे कोई शिकायत नहीं है जी, अरे जहां आप जैसे लोग हो, कि पोस्ट पढ़कर फोन भी कर देते हैं और हालचाल ऐसे पूछते हों, जैसे घर से कोई पूछ रहा हो तो कमबख्त ऐसे प्यारे शहर से कौन शिकायत करेगा।

अच्छा लगा आपकी प्रतिक्रिया को पढ़कर और महसूस कर।

आशीष कुमार 'अंशु' said...

गिरीन्द्र भाई,
आपका गेंदा फूल तो चल निकला ...
हा हा हा

siddheshwar singh said...

दूर हुए मन में उगे बेर और बबूल .
ब्लाग पर रख दिया जी गेंदे का फूल.

कुछ नहीं था खास
मन था उदास
यहाँ आया दीख गया तॄषा -तॄप्ति का कूल.
ब्लाग पर रख दिया जी गेंदे का फूल.