अमृता प्रीतम की यह कविता आपने पढ़ी है, यदि नहीं तो आज पढ़िए-
सुना है राजनीति एक क्लासिक फिल्म है
हीरो: बहुमुखी प्रतिभा का मालिक
रोज अपना नाम बदलता है
हीरोइन: हकूमत की कुर्सी वही रहती है
ऐक्स्ट्रा: लोकसभा और राजसभा के मैम्बर
फाइनेंसर: दिहाड़ी के मज़दूर,
कामगर और खेतिहर
(फाइनांस करते नहीं,करवाये जाते हैं)
संसद: इनडोर शूटिंग का स्थान
अख़बार: आउटडोर शूटिंग के साधान
यह फिल्म मैंने देखी नहीं
सिर्फ़ सुनी ही है
क्योंकि सैन्सर का कहना है —
'नॉट फॉर अडल्स।'
1 comment:
हम तो अमृता जी के दीवाने है पर याद नही ये कविता कभी पढी है। पढी भी होगी तो अब फिलहाल याद नहीं। वैसे पढी तो आनंद आ गया। शुक्रिया जी। वैसे लगता है बुखार अब पूरी तरह से ठीक हो गया। वैसे आपने हमारा बुखार उतारने का नुस्खा नही पूछा।
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