Saturday, June 02, 2007

आपको जीना है, तो खेल के नियम बदलने होंगे.........



"सत्ता शिखर पर बैठे सिरफिरे लोगों की उटपटांग हरकतों ने जनता का जीना दुभर कर दिया है । कितना भी सिर धुन लीजिए आप स्थापित नियमों के सहारे इनसे पार नहीं पा सकते। हमें और आपको जीना है, तो खेल के नियम बदलने होंगे।"

मंडी हाउस में चाय की चुस्की के संग संजय भाई ने ये बातें कही। लगे हाथ संजय भाई का परिचय दे दूं , जनाब "सेंटर फार सिविल सोसाइटी" से जुड़े हैं।
यह सोसाइटी सीमित सरकार, कानून का शासन और प्रतिस्पर्धी बाजार के संदर्भ में सार्वजनिक नीतियों पर चिंतन करने वाला एक वैचारिक संगठन है।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने ट्रैफिक व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त करने के लिए कुछ कड़े आदेश जारी किए हैं ( ये आदेश 9 अप्रैल 2007 से लागू हैं)।
संजय भाई इसी आदेश को लेकर बहस के मूड में हैं. ये अपनी बात यहां किश्तों में रखने जा रहे हैं, प्रस्तुत है पहली किश्त........

फर्ज कीजिए कि राष्ट्रपति महोदय ने एक सपना देखा कि सन् 2020 तक देश में सौ फीसदी संपूर्ण साक्षरता आ जाए ....तो क्या इस स्वप्न को साकार करने का सही तरीका यही होगा कि न्यायालय एक आदेश जारी करे दे कि 2020 तक हर कोई पढ़ ले, वरना उसे देश से बाहर खदेड़ दिया जाएगा...।
बस चालकों के लिए न्यूनतम 12वीं तक की शैक्षणिक योग्यता तय करना क्या ऐसा हीं कदम नहीं है ? अगर देश की शिक्षा व्यवस्था सबको शिक्षा दे पाने का लक्ष्य हासिल करने में नाकाम रही है, तो इसके लिए सजा किसे दी जाए? शिक्षा अधिकारियों को या उन्हें, जो अशिक्षित रह गये?
मौटे तौर पर न्यायालय के आदेश में दो तरह की व्यवस्था की गयी है।
1. बस चालकों के लिए शैक्षणिक योग्यता बढ़ा दी गयी है। उनके लिए नियमित ट्रैनिंग एवं रिफ्रेशर कोर्स अनिवार्य कर दिया गया है।
2. नियमों , पाबंदियों एवं चालान के सहारे ट्रैफिक कर्मियों का रौब-दाब बढ़ा
दिया गया है।

आखिर बस चालकों के लिए शिक्षा जैसी शर्त जोडने के पीछे न्यायालय की सोच क्या है? दिल्ली देश की राजधानी है और एक अंतर्राष्ट्रीय शहर है। यहां 2010 में अंतर्राष्ट्रीय खेल का आयोजन होगा शायद इसी कारण न्यायालय ने सोचा होगा.....
मैं सोचता हूं ...क्या पढ़े-लिखे बस चालक तमीज एवं तहजीब से बात करेगें ?
आप भी अपनी राय दें, शायद बात आगे बढ़े.....

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