Sunday, May 12, 2019

छोटे शहर का सिनेमाघर

बरसों बाद पूर्णिया शहर के रुपवाणी सिनेमा हॉल में फ़िल्म देखने का मौका मिला। 12 वीं की पढ़ाई के दौरान यहां एक फ़िल्म देखी थी, उसके बाद कभी नहीं गया था। दरअसल छोटे शहरों के सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों की अब बस यादें ही बची हैं।

हम सबकी स्मृति में कोई न कोई सिनेमाघर जरूर ही होगा। मल्टीप्लेक्स के दौर में भी हमारी स्मृति में सिंगल स्क्रीन सिनेमा जिंदा है लेकिन यह भी सच है कि ग्राउंड में सिंगल स्क्रीन सिनेमा मर रहा है। अब जब कई सिंगल स्क्रीन सिनेमा घर बंद हो चुके हैं, ऐसे में आज जब रुपवाणी सिनेमा हॉल को नए रूप में देखा तो लगा कि सिंगल स्क्रीन वाले सिनेमाघरों की भी तस्वीर बदली जा सकती है, बस इच्छा शक्ति की जरूरत है।

पूर्णिया के इस सिनेमाघर में आज जब गया तो अहसास हुआ कि समय के साथ इस सिनेमा हॉल ने भी लम्बी दूरी तय कर ली है। अब यह हॉल पूर्णिया की नई तस्वीर पेश कर रहा है।

सबकुछ नया, बढियां सीट, आरामदायक। एयर कंडीशनिंग भी बढियां है क्योंकि बाहर प्रचंड गर्मी थी। साउंड क्वालिटी भी बढियां है।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हॉल में साफ-सफाई का पूरा ख्याल रखा जा रहा है। ऐसे में हम दर्शकों का भी यह दायित्व बनता है कि सिनेमा घर की सफाई का ख्याल रखें।

एक दर्शक के तौर पर सिनेमा हॉल की सुविधाएं आकर्षित कर रही है। बाजार हमें सीखता है कि बदलाव ही सत्य है और इस बात को रुपवाणी सिनेमा ने स्वीकार कर लिया है। मेरे जैसा दर्शक जिसे रंग से खास लगाव है उसे हॉल का फ्लोर और आरामदायक सीट का रंग अपनी ओर खींचने में कामयाब रहा है। सिनेमा घर में प्रवेश करते ही इसका इंटीरियर मन को मोह लेता है।

खैर, पूर्णिया बदल रहा है। सोचता हूँ कि बदलते समय में जिस अनुशासन में रुपवाणी सिनेमा वक्त की रफ्तार में कदम बढ़ा रहा है, यही रफ्तार यदि शहर पकड़ ले तो पूर्णिया सचमुच बदल जायेगा।

सिनेमा घर से लौटते वक्त मन के भीतर कई तरह की बातें चल रही थी। तीन लोग एक साथ मन में आ गए थे- अविनाश दास, पंकज त्रिपाठी और राजशेखर। ये तीनों हमारी माटी -पानी के लोग हैं जो सिनेमा की दुनिया में रच बस गए हैं। अपने शहर के सिनेमा घर से लौटते वक्त सोचने लगा, काश ये तीनों कभी अपने अंचल आते और इन सिनेमाघरों को बदले हुए अंदाज में देखते। मन करता है कि इन तीनों की फिल्में छोटे शहर के दर्शक उनके संग देखते। दरसअल एक सिनेमा परदे पर चलता है तो एक दूसरा मन के भीतर में भी चलता रहता है।

शुक्रिया रुपवाणी सिनेमा। नए दौर में शहर को इतना सुंदर सिनेमा हॉल देने के लिए। अब सिनेमा देखने सिलीगुड़ी जाना नहीं होगा, आपने अब पूर्णिया में ही शानदार सुविधा दे दी है।

2 comments:

Gopi Raman said...

Roopvani se apni bhi Kai yaadein Judi hui hain. Naye roop rung wali Roopvani ki jankari dene ke liye shukriya.

Ashish Kumar said...

विशेक चौहान जी को विशेष तौर पर धन्यवाद जो रूपवानी को नए तरह से चला रहे हैं।