Friday, March 22, 2019

'किसानों को आत्मनिर्भर बनने दीजिये'

चुनाव के वक्त अचानक किसान-किसानी की बात जोर पकड़ने लगती है। हर दल के लोग किसान की बात करने लगते हैं। राष्ट्रीय से लेकर क्षेत्रीय दल के नेता के जुबान पर 'किसान कल्याण' की बात चढ़ जाती है। अब जब चुनावी घोषणा पत्र की बाढ़ आएगी तब हम देखेंगे कि बोल्ड अक्षरों में 'किसान कल्याण' की बात हर कोई करेगा। अंग्रेजी में किसानों की बात और आंकड़ों का हिन्दी में अनुवाद होगा।

लेकिन क्या आपने चुनाव के वक्त बड़ी बड़ी रैलियों में कभी यह सुना है कि किसानों के लिए यह कहा गया हो कि “आप शानदार फ़सल उपजाएँ, सरकार हाथों-हाथ ख़रीद लेगी? “

नहीं सुना होगा आपने। आपने सुना होगा- “ बोरिंग के लिए अनुदान मिलेगा, डीज़ल अनुदान, किसान क्रेडिट कार्ड, मनरेगा के तहत मिट्टी ढोते रहिए, रोज़गार मिलता रहेगा... आदि-आदि। “

जबकि सच यह है कि ऐसे वादे सुनकर हम किसानी कर रहे लोग और आलसी होते जा रहे हैं।

ज़रा सोचिए, बीड़ी-तम्बाकू आदि के लिए तो हमारे पास पैसा है लेकिन पाँच से दस रूपए के कदंब के पौधे के लिए हम सरकार पर निर्भर हैं! आख़िर क्यों? बाग़वानी के लिए भी हमको ऋण चाहिए, हम इतना ऋणी क्यों होना चाहते हैं? यही वजह है कि व्यक्तिगत तौर पर मुझे 'जय किसान के नारे से चिढ़ है।

मुझे तो महात्मा गांधी रोज़गार गारंटी योजना से भी चिढ़ है। खेत के बदले हम सड़क पर मिट्टी बिछाने लगे हैं। जिसके पास किसानी की समझ है वह भी मज़दूर बनता जा रहा है। ऐसे ढेर सारे किसान हैं जो मजदूर बन गए हैं जबकि यदि उन्हें फसल की कीमत समय पर मिल जाये तो वे ट्रेक्टर खरीद सकते हैं।

यदि हम किसानी कर रहे लोग एकजुट होकर चुनाव के वक्त और चुनाव के बाद सांसद- विधायक और सरकार से ऊंची आवाज में कहें कि हमें ऋण में डूबने के बजाए हम किसानों को आत्मनिर्भर बनने दीजिए तो बाजी पलट सकती है। किसान की बात करते हुए हम भावुक हो जाते हैं जबकि खेत में किसान पसीना बहाता है अच्छी फसल और फसल के उचित मूल्य के लिए। ऐसे में सरकार बहादुर बस हमारी फसल उचित मूल्य पर खरीद ले तो हम कुछ भी कर सकते हैं।

हम किसानों को मेहनत करने दीजिए। किसानी में हो रहे नए शोध कार्य से परिचित करवाइए। डीडी किसान जैसे चैनल पर जितना खर्च होता है उससे किसी गाँव की तकदीर बदल सकती है।

यदि हम नया कर रहे हैं तो हमारी तारीफ़ करिए, ग़लती करें तो आलोचना करिए लेकिन ऋण में डूबने की सलाह मत दीजिए। नहीं तो वह भी वक़्त आएगा जब आप गाँव में सरकारी ख़र्च से शौचालय तो बनवा देंगे लेकिन उसके उपयोग के लिए आपको हमें अनुदान देना होगा।

चुनावी बतकही-3
#Election2019

3 comments:

Pradip said...
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Pradip said...

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