‘शब्द और तस्वीर’ की दुनिया में गोता लगाना मुझे सबसे अधिक पसंद है। इन दिनों बाबूजी की डायरी पढ़ रहा हूं। वे एक शानदार किसान थे। उनकी डायरी दरअसल एक किसान की डायरी है, जिसमें ढेर सारे फ़ील्ड नोट्स हैं। वे सर्वोदय डायरी का इस्तेमाल करते थे। उनकी सर्वोदय डायरी के पन्नों में 1960 से 90 के दशक के किसान लेखा-जोखा मिल जाता है।
डायरी से ही पता चला कि 1969 में उस किसान को फ़ोटोग्राफ़ी का शौक़ जगा। किसान ने ‘याशिका ए कैमरा’ ख़रीदा और जमके फ़ोटोग्राफ़ी की। दैनिक डायरी की शब्द यात्रा के संग उन्होंने तस्वीरों के संग भी ‘श्वेत-श्याम ‘यात्रा शुरू की।
ब्लैक एंड व्हाइट में गाम-घर-खेत-पथार सब कुछ कितना रंगीन दिखता है, उन तस्वीरों को देखकर -छूकर महसूस करता हूं।
उनकी फ़ोटोग्राफ़ी को देखकर लगता है कि वे फ़सल और गाम घर की तस्वीरें इकट्ठा करने में जुट गए थे। आज जब 1970 की डायरी पलट रहा था तो ये दो तस्वीरें एक पन्ने में रखी मिली। चनका की तब की तस्वीरें देखकर हम तो खो गए।
तस्वीर में कौन हैं ये तो पता नहीं लेकिन एक तस्वीर में फ़सल और दूसरी में दुआर देखकर मन ख़ुश हो गया। बैलगाड़ी का पहिया और क़दम बढ़ाते व्यक्ति की तस्वीर से एक ख़ुश्बू आती है। वहीं खेत में फ़सल को निहारते दो युवक की तस्वीर में सुख का अहसास है।
उस वक़्त में जब साल 2018 जाने की ज़िद कर रहा है ऐसे में हम 48 साल पुरानी इन दो तस्वीरों में खो गए हैं। अपने गाम की इन पुरानी तस्वीरों में लैंस के पीछे क्लिक करते बाबूजी दिखने लगे हैं।
2018 की किसानी और सत्तर के दशक की किसानी में अंतर खोजने लगा हूं। धान और पटसन तब सबकुछ था। हर साल धान के समय बाबूजी अपनी डायरी में रेणु की यह पंक्ति अंकित करते थे- “आवरन देवे पटुआ, पेट भरन देवे धान, पूर्णिया के बसैय्या रहे चदरवा तान.. “
उनकी क्लिक की गई तस्वीरें और डायरी के पन्नों में तब का किसान समाज दिखने लगता है। साल दर साल उनके शब्द और तस्वीरों में कई तरह के बदलाव दिखते हैं, कबीर की इस पंक्ति की तरह- “ अनुभव गावै सो गीता” की तरह वे आँखों देखी सब कुछ लिखते गए अपनी मैथिली भाषा में। तब किसान को खाद के लिए परमीट की ज़रूरत होती थी, वक़्त तो बदला है और अब यह साल भी गुज़रने को है। फ़िलहाल इन तस्वीरों के ज़रिए गुज़रे वक़्त को देख रहा हूं, जिसे असल में देखा तो नहीं लेकिन बाबूजी की लिखावट और खिंची तस्वीर से महसूस कर रहा हूं।
#ChankaResidency
No comments:
Post a Comment