सुबह आसमान साफ था। हम सोचे थे कि कुहासा अपना तांडव दिखाएगा लेकिन सबकुछ साफ था। ऐसे में नियत समय पर हमारी यात्रा आरम्भ होती है, हम निकल पड़ते हैं फणीश्वर नाथ रेणु के गाम-औराही हिंगना।
चनका से पूर्णिया और फिर पूर्णिया से एनएच-57 होते है रेणु गाम। वहीं दिल्ली और फिर फुलपरास पहुंचे राज झा की यात्रा सुबह साढ़े छह बजे शुरू होती है रेणु गाम के लिए औऱ सुबह साढ़े आठ बजे हम सब रेणु गांव के करीब एनएच 57 स्थित माणिकपुर में मिलते हैं। चिन्मय श्रीनगर से गीतवास होते हुए रेणु ग्राम की यात्रा कर रहे होते हैं।
माणिकपुर से गाम की सड़क शुरू हो जाती है, बैलगाड़ियों की आवाजाही दिखने लगती है। सड़क के दोनों तरफ खेत में आलू दिखता है, मन और आँख दोनों को सुकून मिलता है। प्रिया-पंखुड़ी-पंक्ति भी रेणु गाम जा रही हैं। पंखुड़ी के पास ढेर सारे सवाल हैं। वह बार-बार एक ही सवाल करती है- "रेणु इतने बड़े बाल क्यों रखते थे? " पंखुड़ी का सवाल हमें गुदगुदी लगा रहा था। रॉबिन शॉ पुष्प ने एक दफे रेणु के केश विन्यास को शूट किया था। रेणु बाल्टी में पानी लेकर आंगन में बाल धो रहे हैं, फिर उसके बाद घण्टे भर बाल को सजाना...। पंखुड़ी ध्यान से सुनने लगती है। अचानक रेणु की वाणी याद आ जाती है-" इस्स! कथा सुनने का बड़ा शौक है आपको? "
माणिकपुर से रेणु गांव का रास्ता बहुत ही घुमावदार है, ठीक 'तीसरी कसम' के नन्दनपुर जैसी। जहां भी लगे कि अब कहाँ मुड़ना है तो किसी से भी पूछ लीजिये कि रेणु के घर जाना है तो वह एक ही बात कहेगा : 'रेणु के घर नहीं, आपको रेणु गाम जाना है !' यही रेणु की ताकत है।
हम सब रेणु के दुआर पहुंचते हैं। वहां रेणु के छोटे बेटे दक्षिणेश्वर राय मिलते हैं। दुआर पर पुआल का ढेर रेणु के और करीब लेकर चला जाता है। घर-दुआर-आंगन सब अपना ही तो है।
उधर, राज झा एकटक रेणु अंचल को निहारते दिखते हैं, तभी रेणु के बड़े बेटे पद्म पराग राय वेणु आते हैं और फिर राज झा इन सभी लोगों से बातचीत करने बैठ जाते हैं। रेणु के घर- दुआर से निकलकर बातचीत साहित्य-सिनेमा-समाज-राजनीति सब पर होती है।
राज झा सर के साथ आई टीम इस यात्रा को शूट करने में लगी थी। लगा कोई सुरपति राय रेणु के गाम आया हो...वही सुरपति राय जिसे रेणु ने परती परिकथा में घाट-बाट की कथा इकट्ठा करने के लिए मंच पर बिठाया था। जितेंद्रनाथ ऊर्फ जित्तू के आउटहाउस में रहकर सुरपति रायलोककथाओं को इकट्ठा करते थे। कैमरे से माटी की तस्वीरें खींचते थे, एक शोधार्थी की तरह उन्हें स्थान से प्रेम था।
रेणु का गाम आज भी गाम है। शहर की महक अभी यहां नहीं पहुंची है। साइकिल पे डुगडुगी बजाकर सामान बेचने वाला दुआर पर आता है। विज्ञापन की दुनिया में रमे रहने वाले राज झा उससे बात करने लगते हैं। ग्रामीण क्षेत्र के लिए विज्ञापन बनाने में राज झा सर को महारत हासिल हैं। वे देश के 70 हजार से अधिक गाँव की यात्रा कर चुके हैं। ऐसे में डुगडुगी वाले से उनकी बातचीत स्वभाविक लगी। मैं दूर से यह सब देख रहा हूँ तो मन में रेणु की तीसरी कसम चलने लगती है। तीसरी कसम में हीराबाई एक जगह हीरामन को गुरुजी कहती है, यह सुनकर हीरामन लजा जाता है और कहता है- " आप "मुझे गुरुजी मत कहिये।'' इस पर हीराबाई कहती है- " तुम मेरे उस्ताद हो। हमारे शासतर में लिखा हुआ है , एक अच्छर सिखाने वाला भी गुरु और एक राग सिखाने वाला भी उस्ताद !"
हम रेणु के समाधि स्थल पर जाते हैं। वहां तक सरकार ने पक्की सड़क बना दी है। रेणु की बहन के दुआर पर समाधिस्थल है और उसके आसपास रेणु का प्रिय साग 'लाफ़' लगा है। लाल और हरी पत्ती वाला यह साग रेणु को बहुत प्रिय था।
यहां से हम रेणु की स्मृति में तैयार एक सरकारी भवन देखने जाते हैं, जहां काम अभी चल रहा है। हम सब वहां से रेणु आंगन आ जाते हैं और रेणु के पात्र और उन जगहों को लेकर बातचीत शुरू करते हैं, जिसे हमने रेणु के लेखन में पढ़ा है। रेणु के बड़े बेटे हमारे सभी सवालों का जवाब देते हैं। मुझे ' पल्टूबाबू रोड' के पात्र के बारे में जानना था। रेणु के बड़े बेटे वेणु जी कहते हैं कि पाठक भले ही जाने कि यह कहानी कटिहार जिले की है लेकिन रेणु जी ने तो अररिया कोर्ट के एक परिवार की कहानी लिखी थी। एक पाठक के तौर पर परती परिकथा और पल्टूबाबू रोड दोनों ही मुझे पसंद है।
आंगन में राज झा सर रेणु लेखन पर बड़े रोचक अंदाज में बात शुरू करते हैं। वे तीसरी कसम की स्क्रिप्ट पर बोलते हैं, वे रेणु उस शैली पर बात करते हैं, जहां रेणु बस एक लाइन में ही सबकुछ कह देते हैं। वे कहते हैं- "रेणु तो मेरे लिए फुल पैकेज हैं, जिसमें सबकुछ है..." उन्होंने कहा कि यह रेणु की ही ताकत थी कि उन्होने तीसरी कसम फ़िल्म में संवाद में एक जगह मैथिली को शामिल कर दिया।
हम सब रेणु में डूबते जा रहे थे कि तभी भोजन का समय हो गया। आंगन के चूल्हे पर पका स्वादिष्ट भोजन का आंनद कुछ और ही होता है। फिर हम गाँव के कुछ पुराने लोगों से बात करने निकल पड़े। अब शाम होने वाली थी, हम सभी को लौटना था, रेणु गांव से दूर अपने अपने घर जाना था, हम फिर निकल पड़े। जाते वक्त पूरा रेणु परिवार हमें छोड़ने बाहर आ गया, ऐसा पल हमें भावुक कर देता है....
(24 दिसम्बर, 2018)
2 comments:
Bada jiwant chitran.
Apke sath hum bhi Renu gaam pahunch Gaye.
Hindi Trendy
dream symbols
biography
wikipedia in hindi
healthy food essay
status in hindi
girls number
Post a Comment