Thursday, December 13, 2018

राजकमल चौधरी की बातें

आज राजकमल चौधरी का जन्मदिन है, ऐसे में वियोगी जी की किताब 'जीवन क्या जिया! एक रूढ़िभंजक रचनाकार के उत्तर - प्रसंग' को पढ़ना चाहिए। इस किताब में राजकमल का जीवन है, साहित्य है और सबसे सुंदर बात उनसे जुड़े कई सवालों के तार्किक जवाब हैं। 

तारानंद वियोगी जी की भाषा में लोक है, इसलिए इस किताब को पढ़ते हुए हम राजकमल चौधरी के और करीब पहुँच जाते हैं। किताब में राजकमल चौधरी के जीवन से संबंधित ढेर सारे प्रसंग हैं।

बाबा नागार्जुन और राजकमल चौधरी, दोनों ही तारानंद वियोगी के प्रिय और आत्मीय रहे हैं। दोनों के ही संबंध उस महिषी से रहे हैं, जो तारानंद वियोगी जी का भी जन्मस्थान है। दोनों के ही बारे में वियोगी जी ने शानदार लेखन किया है।

'जीवन क्या जिया! एक रूढ़िभंजक रचनाकार के उत्तर - प्रसंग'  पुस्तक में राजकमल को महसूस किया जा सकता है। राजकमल की लेखन शैली और जीवन शैली, दोनों को समझने के लिए भी तारानंद वियोगी जी की इस किताब को पढ़ना चाहिए।

किताब में एक जगह लेखक कहते हैं- " डर भय नामक चीज राजकमल के प्राणों में बास ही नहीं करती थी, इसलिए वह किसी से भी भिड़ जा सकते थे। भिड़ जाते भी थे। बार-बार भिड़े भी..." 

किताब में 1967 के आम चुनाव का जिक्र है।चुनाव से पहले और उसके बाद जनता की जो मनोदशा थी, उसे  राजकमल चौधरी  ने कलमबद्ध किया था- " पूंजीपतियों, नेताओं, आत्मसुखलीन बुद्धिजीवियों, सरकारी अफसरों और गैर सरकारी ठेकेदारों द्वारा क़ानून, टैक्स , पुलिस और सेना की सहायता से 'असभ्य' और 'अपाहिज' जनता पर लादी गई अंकुशहीन शासन व्यवस्था से जनता ऊब गई है। लेकिन इस 'महान' ऊब का सारा लाभ देश की प्रतिक्रियावादी संस्थाओं, और दक्षिणपंथी पार्टियों को भी मिल जा सकता है। जनता परिवर्तन चाहती है , जबकि परिवर्तन के स्वरूप की उसे कल्पना नहीं है। "

इस किताब के जरिये पता चला कि किस तरह राजकमल चौधरी ने उस वक्त के कद्दावर नेता ललित नारायण  मिश्र के बहिष्कार का नारा दिया था। उस वक्त राजकमल  ने कहा था- " ललित बाबू अतिथि और सम्बंधी के नाते महिषी आएं तो मैं उनका स्वागत करूंगा , उन्हें छप्पन प्रकार के व्यंजन खिला सकता हूं लेकिन वे अगर राजनीतिक सभा करने की कोशिश करेंगे या रामशला पर चढ़कर वोट मांगेंगे तो किसी भी हाल में इसे सफल होने नहीं दूंगा। "

सरल, सहज और प्रभावपूर्ण भाषा इस किताब की ताकत है। राजकमल के जीवन से जुड़े मार्मिक प्रसंग और संवेदशील घटनाएं पाठक को बेचैन भी करती है।

(पुस्तक का नाम- "जीवन क्या जिया! एक रूढिभंजक रचनाकार के उत्तर प्रसंग"
प्रकाशक- सस्ता साहित्य मण्डल प्रकाशन
मूल्य- ₹160)

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