Monday, November 12, 2018

छठ से अनुराग

छठ उत्सव से अनुराग बढ़ता ही जा रहा है। यह उत्सव मुझे खेत-खलिहान और नदी से इश्क करना सीखाता है।

छठ घाट का सूप-डाला और केले का पत्ता मुझे अपनी ओर खींच लेता है। नारियल फल के ऊपर सिंदुर और पिठार के लेप को मैं घंटो निहारता हूं। गागर, निम्बू, सूथनी, डाब निम्बू और हल्दी -अदरक का पौधा जब छठ घाट पर देखता हूं तो लगता है यही असली पूजा है, जहां हम प्रकृति के सबसे करीब होते हैं।

तालाब के आसपास का माहौल पवित्रता का बोध कराता है। हमारे लिए छठ का अर्थ आहिस्ता-आहिस्ता सर्द होती रात औऱ ओस-ओस पिघलती सुबह रही है लेकिन अब छठ मने सू्र्य और नई फसल की आराधना हो गया है। एक ऐसी पूजा पद्दति जिसमें किसी तरह का आडंबर नहीं होता है, जहां सफाई बाहर भी और मन के भीतर का भी महत्वपूर्ण माना जाता है।

उत्सव के इस महीने में सर्दी ने भी दस्तक दे दी है। खेतों को आलू और मक्का के लिए तैयार किया जा रहा है। ऐसे में खेत भी उत्सव के मूड में आ चुका है।

धान की कटाई के बाद खेतों को अगली फ़सल के लिए सजाया जा रहा है, ठीक वैसे ही जैसे हमने दीपावली की शाम अपने आंगन-दुआर को दीप से सजाया था। यह उत्सव हमें समूहिकता का पाठ पढ़ाती है। हम सब यहाँ मिलकर उत्सव मनाते हैं। कोई एक अकेला आदमी कुछ नहीं करता, सब मिलकर करते हैं।

1 comment:

Gopi Raman said...

Sach Kaha ki yahi pooja hai jahan hum prakriti ke sabse qareeb hotey hain.Haalaanki, hum jaise, jo kisi kaaranvas Chhath jaise avsar per gaaon-ghar nahin jaa paate, ek tees si lekar reh jaate hain.
Baharhaal, Chhath ki dheron shubhkaamnayein.