Monday, August 31, 2009

परिवार और गांव की सूरत बदल रही हैं महिलाएं...

'' बदलाव लाने के लिए हमें किसी की सहायता नहीं लेनी है, हम अपने हाथों से यह कर दिखाएंगे। कुछ इसी तरह के जज्बे को खुद में समेटे हुए है बिहार के पूर्णिया जिले की कुछ महिलाएं। श्रीनगर ब्लॉक की कुछ महिलाएं न केवल ब्लॉक बल्कि पूरे देश के लिए मिशाल बन गई हैं। ''
पढ़िए रपट-
शुक्रिया


कल तक जो बेकार थे, आज वे पूरे गांव के लिये मिसाल बन गये हैं। जब परिवार की स्थिति नहीं सुधरी तो पति के साथ-साथ घर की महिलाओं ने भी कुछ कर दिखाने का बीड़ा उठाया। आज महिलाओं की यह कोशिश श्रीनगर प्रखंड में रंग दिखा रही है। डेयरी के सहारे यहां की दो दर्जन महिलाओं ने न सिर्फ अपने परिवार की सूरत बदली है बल्कि पूरे गांव की सूरत बदल दी है।

आज श्रीनगर की ये महिलायें आसपास के कई गांव के लोगों के लिये एक मिसाल कायम कर रही है। श्रीनगर प्रखंड के श्रीनगर गांव के मंडल टोला की महिलाओं ने जब पहली बार कुछ गायों को पालने का काम शुरू किया तो कई प्रकार के सामाजिक ताने भी उन्हें सुनने पड़े। मगर अपनी घुन की पक्की इन महिलाओं ने हिम्मत नहीं हारा।

दो चार गाय से शुरू की गयी इन महिलाओं की डेयरी में किसी में एक दर्जन गाय है जो किसी में छह से आठ। गांव में डेयरी चलाने वाली मोनिया देवी कहती है । कल तक हमें घर चलाने के लिये काफी संर्घष करना पड़ता था। आज स्थिति यह नहीं है। इस डेयरी की कमाई से न सिर्फ हम खेती कर लेते हैं बल्कि आराम से हमारे परिवार का भी गुजारा होता है। इसमें हमें प्रतिदिन पांच सौ से लेकर दौ सौ रूपये तक की आय होती है।

यहां सिर्फ मोनिया ही नहीं बल्कि इसी गांव की मंजुला देवी, उमा देवी , खोरी देवी, मुनुर देवी, शांति देवी, भारती देवी, चिंता देवी, उर्मिला देवी, मंजू देवी व उषा देवी के अलावा संपत्ति देवी, इंदु दास , मोती देवी, फुदुर देवी, माला देवी, सुनीता देवी, पारुल देवी, करैला देवी, सोनी देवी, कमली देवी, बोनी देवी, मंजुला देवी व प्रतिमा देवी है जो डेयरी के बल पर परिवार की स्थिति सुधार चुकी है।

परिवार के साथ- साथ समाज की स्थिति भी सुधर गयी है। कल तो जो इनके काम पर अंगुली उठाते थे आज सराहना करते नहीं थकते। प्रतिमा देवी कहती है की एक गाय से शुरू की गयी उसकी डेयरी में आज आठ गाय है। जिससी कमाई से वह अपने बच्चे को पढ़ाने का काम कर रही है।

दरअसल इस टोले में बसे लोगों की छह माह पूर्व तक स्थिति काफी दयनीय थी। घर के पुरुषों की बेरोजगारी और रोजी-रोटी के सुलगते सवाल ने यहां की महिलाओं को रोज-ब-रोज सालती रहती थी। अंतत: टोले की मोनिया देवी व संपत्ति देवी ने घर की दशा को सुधारने का खुद ही बीड़ा उठा लिया। इसके बाद वे गौपालन कार्य के लिये गांव की महिलाओं को जागरुक करने लगी।

बाद में इन महिलाआं ने मिलकर कल्याणी स्वयं सहायता समूह और अम्बालिका स्वयं सहायता समूह का गठन कर लिया। महिलाएं घर से कुछ पैसे बचाकर बैंक में जमा भी करनी शुरु कर दी। अब भी किसी महीने में किस्त जमा करने से चूक न जाये, इसका वे सतत ख्याल रखा करती हैं।

महिलाओं की इस पहल और संगठन की दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही मजबूती को देख समाज भी इसे आगे बढ़ने में साथ निभाने लगे। इसके बाद बैंक से मिले ऋण से इनमें कुछ महिलाओं ने गाय खरीदी और इसे रोजगार का रुप दिया। इससे जहां उन महिलाओं के घरों की माली हालत में खासा सुधार हुआ, वहीं गांव की अन्य महिलाएं भी इस कार्य में जुटनी शुरु कर दी। फिलहाल इसमें पुरुष वर्ग भी हाथ बंटाने लगे हैं। आसपास के गांव में भी न केवल अब इन महिलाओं की तारीफ होने लगी है, अन्य गांवों में इस कार्य के प्रति महिलाओं का झुकाव दिखने लगा है।


रपट -साभार जागरण डॉट कॉम
चित्र साभार-: growthforall.org/2007/11/

4 comments:

shubhra said...

उम्दा जानकारी

Vinashaay sharma said...

सलाम हे इन महिलाओ के जज्बे को

sushant jha said...

good report..carry on.

Vinay said...

यह भी ख़ूब रही!