Friday, October 27, 2017

छठ से अनुराग- 2017

छठ उत्सव से अनुराग बढ़ता ही जा रहा है। यह उत्सव मुझे खेत-खलिहान और नदी से इश्क करना सीखाता है। आज से पांच वर्ष पहले तक छठ को लेकर इतना अनुराग नहीं था लेकिन अपने गाम-घर लौटने के बाद इस उत्सव ने मुझे अपने मोह-पाश में ले लिया है। 

छठ घाट का सूप-डाला और केले का पत्ता मुझे अपनी ओर खींच लेता है। नारियल फल के ऊपर सिंदुर और पिठार के लेप को मैं घंटो निहारता हूं।

गागर, निम्बू, सूथनी, डाब निम्बू और हल्दी -अदरक का पौधा जब छठ घाट पर देखता हूं तो लगता है यही असली पूजा है, जहां हम प्रकृति के सबसे करीब होते हैं। पूर्णिया के पुलिस अधीक्षक निशांत कुमार तिवारी, जिन्हें फोटोग्राफी से खास लगाव है, वे छठ उत्सव को कैमरे में कैद करते हैं। मैं उनके साथ छठ को और करीब से महसूस करता हूं। इस उत्सव से अनुराग बढ़ाने में उनका बड़ा योगदान है। वे मुझे प्रकृति के और भी करीब ले जाते हैं। 



छठ के दौरान तालाब के आसपास का माहौल पवित्रता का बोध कराता है। पहले मेरे लिए छठ का अर्थ आहिस्ता-आहिस्ता सर्द होती रात औऱ ओस-ओस पिघलती सुबह होती थी लेकिन अब छठ मने सू्र्य और नई फसल की आराधना हो गया है। एक ऐसी पूजा पद्दति जिसमें किसी तरह का आडंबर नहीं होता है, जहां सफाई बाहर भी और मन के भीतर का भी महत्वपूर्ण माना जाता है। यदि ऐसी स्वच्छता हम साल भर रखें तो किसी सरकारी इवेंट की हमें जरुरत नहीं पड़ेगी।

उत्सव के इस महीने में सर्दी ने भी दस्तक दे रखी है। उधर, खेतों को आलू और मक्का के लिए तैयार किया जा रहा है। ऐसे में खेत भी उत्सव के मूड में आ चुका है। 
तस्वीर- निशांत कुमार तिवारी (पुलिस अधीक्षक, पूर्णिया)

धान की कटाई के बाद खेतों को अगली फ़सल के लिए सजाया जा रहा है, ठीक वैसे ही जैसे हमने दीपावली की शाम अपने आंगन-दुआर को दीप से सजाया था। यह उत्सव हमें समूहिकता का पाठ पढ़ाती है। हम सब यहाँ मिलकर उत्सव मनाते हैं। कोई एक अकेला आदमी कुछ नहीं करता, सब मिलकर करते हैं। इस बार छठ ने मुझे और भी कई लोगों के करीब ला दिया है। सामूहिकता यही है।

 गांव जो अक्सर खाली रहता है, छठ के कारण भर जाता है। गांव के युवा काम काज के चक्कर में बाहर में रहते हैं। वे वहां प्रवासी कहलाते हैंं और यहां परदेसी !

 सुबह छठ पूजा की समाप्ति के बाद एक बार फिर गांव खाली हो जाएगा, कोई दिल्ली निकल जाएगा तो कोई पंजाब। लेकिन छठ की सामूहिकता सबके भीतर रहेगी।

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