शहनाईनवाज़ उस्ताद बिसमिल्लाह खा़न साहब न केवल महान संगीतकार थे बल्कि एक सूफ़ियाना तबियत के इंसान भी थे। उनका फ़क्कड़्पन और सादगी उनके संगीत से कहीं ऊंची थी। आज उनकी पुण्यतिथि है। बनारस में दरगाह फातमान में उस्ताद के साहबजादे जामिन हुसैन बिस्मिल्लाह अपने साथियों के साथ आज शहनाई पर मातमी धुन पेश करेंगे। हम भी उन्हें याद कर रहे हैं। मैं उन्हें
नरेश शांडिल्य की इस कृति के जरिए याद कर रहा हूं-
बिस्मिल्ला की शहनाई है
या वसंत की अंगड़ाई है
इक कमसिन के ठुमके जैसी
रुन-झुन हिलते झुमके जैसी
इक पतंग के तुनके जैसीनखरीली-सी उनके जैसी
कभी बहकती कभी संभलती
छजती चढती गली उतरती
रस-रस भीगे मस्त फाग-सी
धीरे-धीरे पींग बढ़ाती
झुकी हुई इक अमराई हैबिस्मिल्ला की शहनाई है
मधुबन में कान्हा की आहटभीड़ बीच इक तनहाई है
बिस्मिल्ला की शहनाई है।
तस्वीर साभार शिवनाथ झा(फेसबुक से)
4 comments:
उस्ताद बिसमिल्लाह खा़न साहब को सादर श्रद्धांजलि........ नरेश शांडिल्य की इस कृति में बिसमिल्लाह जी की शहनाई के सुरों का बडा ही जीवन्त वर्णन है। आप और नरेश जी दोनों ही धन्यवाद के पात्र है।
Great sir.
wow.bahut hi acha
just superb
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मानव मस्तिष्क पढ़ना संभव
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