घोटाले का बचाव मत करिए। लालू यादव को लेकर कल आभासी दुनिया में बहुत कुछ पढ़ने को मिला। घोटाले और फिर सीबीआई की छापेमारी को राजनीतिक साज़िश से जोड़कर भी पेश कर रहे हैं लोगबाग। लेकिन लालू यादव की राजनीति से हम सब परिचित हैं।
इस दौर में जब विरोध को अपने अपने तरीक़े से दबाया जा रहा है, उस वक़्त हमें घोटाले को दबाकर उसका बचाव नहीं करना चाहिए। राजनीति में घोटाला और अपराधिकरण की फल-फूल रही संस्कृति का विरोध हमें करना ही होगा।
चोरी को जायज़ न ठहराया जाए। बाद बांकी जो है सो तो दिख ही रहा है। हम भीड़ बन ही रहे हैं। वैसे यह भी सच है कि भ्रष्टाचार के मूल में हम सब हैं क्योंकि विरोध हम करेंगे नहीं बस अपना काम निकल जाए, हम इसी फ़िराक़ में रहते हैं और इसी फ़िराक़ का परिणाम घोटाला होता है। राजनीति में नायक हम सब ही बनाते हैं इसलिए सावधान हो जाइए, विरोध करिए।
हम जेल जाने वाले को भी नायक करार देते हैं और जब वह बाहर निकलता है तो एक बार फिर उसके नाम का जयकारा लगा देते हैं। केवल लालू ही नहीं बल्कि देश में ऐसे कई उदाहरण हैं। अब हम किसी की जेपी या गांधी से तुलना कर ही नहीं सकते।
अन्ना आंदोलन का परिणाम हम सब भुगत रहे हैं। हमें राजनीति में घोटाले के गंध का विरोध करना होगा। जिसने अनियमितता की है, उसका खुलकर विरोध करना होगा, हर दल में ऐसे लोग होंगे और उन सबका विरोध आवश्यक है। विरोध नहीं करेंगे तो वही लोग पार्टी के सर्वेसर्वा बने रह जाएंगे और वैसे लोग टुकुर टुकुर देखते रह जाएंगे जो उम्मीद के संग राजनीति में आए थे।
आइए, राजनीति के इस गोबर -गोइठा काल में श्रीकांत वर्मा की इस पंक्ति का हम पाठ करते हैं-
"लोगों का क्या?
लोग तो यह भी कहते हैं
मगध अब कहने को मगध है,
रहने को नहीं
कोई टोकता तक नहीं
इस डर से
कि मगध में
टोकने का रिवाज न बन जाए
एक बार शुरू होने पर
कहीं नहीं रूकता हस्तक्षेप-
वैसे तो मगध निवासिओं
कितना भी कतराओ
तुम बच नहीं सकते हस्तक्षेप से.."
#LaluPrasadYadava
इस दौर में जब विरोध को अपने अपने तरीक़े से दबाया जा रहा है, उस वक़्त हमें घोटाले को दबाकर उसका बचाव नहीं करना चाहिए। राजनीति में घोटाला और अपराधिकरण की फल-फूल रही संस्कृति का विरोध हमें करना ही होगा।
चोरी को जायज़ न ठहराया जाए। बाद बांकी जो है सो तो दिख ही रहा है। हम भीड़ बन ही रहे हैं। वैसे यह भी सच है कि भ्रष्टाचार के मूल में हम सब हैं क्योंकि विरोध हम करेंगे नहीं बस अपना काम निकल जाए, हम इसी फ़िराक़ में रहते हैं और इसी फ़िराक़ का परिणाम घोटाला होता है। राजनीति में नायक हम सब ही बनाते हैं इसलिए सावधान हो जाइए, विरोध करिए।
हम जेल जाने वाले को भी नायक करार देते हैं और जब वह बाहर निकलता है तो एक बार फिर उसके नाम का जयकारा लगा देते हैं। केवल लालू ही नहीं बल्कि देश में ऐसे कई उदाहरण हैं। अब हम किसी की जेपी या गांधी से तुलना कर ही नहीं सकते।
अन्ना आंदोलन का परिणाम हम सब भुगत रहे हैं। हमें राजनीति में घोटाले के गंध का विरोध करना होगा। जिसने अनियमितता की है, उसका खुलकर विरोध करना होगा, हर दल में ऐसे लोग होंगे और उन सबका विरोध आवश्यक है। विरोध नहीं करेंगे तो वही लोग पार्टी के सर्वेसर्वा बने रह जाएंगे और वैसे लोग टुकुर टुकुर देखते रह जाएंगे जो उम्मीद के संग राजनीति में आए थे।
आइए, राजनीति के इस गोबर -गोइठा काल में श्रीकांत वर्मा की इस पंक्ति का हम पाठ करते हैं-
"लोगों का क्या?
लोग तो यह भी कहते हैं
मगध अब कहने को मगध है,
रहने को नहीं
कोई टोकता तक नहीं
इस डर से
कि मगध में
टोकने का रिवाज न बन जाए
एक बार शुरू होने पर
कहीं नहीं रूकता हस्तक्षेप-
वैसे तो मगध निवासिओं
कितना भी कतराओ
तुम बच नहीं सकते हस्तक्षेप से.."
#LaluPrasadYadava
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