Monday, April 24, 2017

'रवीश को गरियाओ राष्ट्रीय योजना आयोग'

यह मुल्क का 'गरियाओ काल' है। जो बिना मतलब के गरियाएगा वही सही कहलाएगा। स्कूल,सड़क, बिजली, अस्पताल आदि के हाल पर न बोलकर, उन मुद्दों की बात करने वाला ही महान कहलाता है जो सोशल मीडिया की अटरिया पे गरियाने में एक्सपर्ट है।

लोगों को गुट में बाँटकर वाट्सएप ग्रुप में तरह-तरह का ज्ञान ठेलने वालों के आकाओं ने एनडीटीवी पत्रकार रवीश कुमार के ख़िलाफ़ एक आयोग ही बना लिया है शायद। एक पत्रकार के ख़िलाफ़ किस तरह से राष्ट्रीय योजना काम कर रही है इस पर किसी शोधार्थी को शोध करना चाहिए।

रवीश की चुप्पी, रवीश की बोली, रवीश का लिखा, रवीश का कहीं जाना आदि मुद्दों पर सीधे गरिया देना ही इस राष्ट्रीय योजना का मुख्य उद्देश्य है।

हाल ही में रवीश पूर्णिया आए थे। पूर्णिया क्यों आए , इस पर भी गरियाने का काम हो गया। रवीश से जो मिला उसके लिए भी रवीश को गरिया दिया गया। फणीश्वर नाथ रेणु के परिवार ने उन्हें सम्मानित किया तो रवीश को गरियाओ राष्ट्रीय योजना आयोग को मसाला मिल गया। गरियाने वाला भूल गया कि फणीश्वर नाथ रेणु भी पत्रकारिता पेशे में थे। वे दिनमान पत्रिका में रिपोतार्ज लिखते थे। हालाँकि यह सच है कि गरियाने वाला तर्क पर विश्वास नहीं करता , वह केवल रायता फैलाने पर भरोसा करता है।

राजनीतिक दल के वाट्सएप ग्रुप पर रवीश की तस्वीर डालकर गाली-गलोच का राष्ट्रीय विमर्श किया जा रहा है। जो विमर्श में हिस्सा ले रहा है उसके मोहल्ले में कचड़े का ढ़ेर है लेकिन इस पर सब चुप्पी साधकर स्वच्छ भारत की परिकल्पना की जा रही है।

विपक्ष के अभाव में पक्ष ही अब हो-हल्ला कर पक्ष को सज़ा-सँवार रहा है। सोशल मीडिया सैलून बन गया है, जहाँ लोगबाग़ अब लठैत बनकर संवर रहे है।

रवीश को गरियाने वाला अब कोकाकोला बन गया है लेकिन अफ़सोस गरियाने वाला मुद्दे की बातों पर ज़बरदस्त चुप्पी साध लेता है। ऐसे में यदि किसी को पता हो कि 'रवीश को गरियाओ राष्ट्रीय योजना आयोग' का कार्यालय कहाँ है तो बताने का कष्ट करिएगा, भले ही मुझे भी गरिया दीजिएगा।

आपका
गिरीन्द्र

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