चनका रेसीडेंसी और इयान वुलफ़ोर्ड
देखते-देखते चनका रेसीडेंसी के पहले गेस्ट राईटर इयान वुलफ़ोर्ड का एक हफ़्ते का चनका प्रवास ख़त्म हो गया। उनके संग हम सात दिन रहे। वे चनका में ग्रामीण संस्कृति, ग्राम्य गीत और खेत-पथार को समझ-बूझ रहे थे और मैं इस रेणु साहित्य प्रेमी को समझने-बूझने में लगा था। रेणु मेरे प्रिय लेखक हैं, वे मेरे अंचल से हैं। मुझे वे पसंद हैं 'परती परिकथा' के लिए और लोकगीतों के लिए। इयान वुलफ़ोर्ड भी रेणु साहित्य में डूबकर कुछ न कुछ खोज निकालने वालों में एक हैं।
रेसीडेंसी में इयान हर दिन रेणु साहित्य में शामिल लोकगीतों पर बात करते थे। उन्होंने रेणु के गाँव औराही हिंगना में लंबा वक़्त गुज़ारा है। उनके पास उन लोक कलाकारों की बातें हैं, जिनका रेणु ने ज़िक्र किया है। ठिठर मंडल, राम प्रसाद या फिर जय नारायण, चमेनी देवी, रेणु की पत्नी पद्मा देवी आदि इन सभी की कहानी इयान के पास है। मैं घंटों उनसे इन लोक कलाकारों के बारे बातें करता रहा। विदापत नाच की बातें हो या फिर रसप्रिया का मोहना, इन सब में इयान डूब जाने वाले शख़्स हैं। उनके पास विदापत नाच के मूलग़ैन रामप्रसाद का लंबा विडियो इंटरव्यू है। इयान उन्हें 'बिहारी सुपरस्टार' कहते हैं। अफ़सोस अब न रामप्रसाद हैं और न ही ठिठर मंडल।
इयान को कबिराहा मठों से बहुत लगाव है। उन्हें निर्गुण सुनना पसंद है। हम उन्हें चनका स्थित सोनापुर कबीर मठ ले गए। वहाँ के कबीरपंथी चिदानंद स्वरूप से इयान ने लंबी बातें की, निर्गुण से लेकर सगुण तक की बातें की। मैं इन दोनोंकी बातें सुनता रहा। मन के भीतर रेणु की लिखी यह बातें बजने लगी -
" कई बार चाहा कि, त्रिलोचन से पूछूँ- आप कभी पूर्णिया जिला की ओर किसी भी हैसियत से, किसी कबिराहा-मठ पर गये हैं? किन्तु पूछकर इस भरम को दूर नहीं करना चाहता हूं। इसलिए, जब त्रिलोचन से मिलता हूं, हाथ जोड़कर, मन ही मन कहता हूं- "सा-हे-ब ! बं-द-गी !!"
रेसीडेंसी के ज़रिए मैं ख़ुद से भी बातें करना चाहता हूं। इयान ने मुझे इसका मौक़ा दिया। इन छह दिनों में हमने एक बार फिर से मैला आंचल, परती परिकथा, रसप्रिया तीसरी कसम, पंचलाइट जैसी रचनाओं को इयान के ज़रिए समझने की कोशिश की। व्यक्तिगत तौर पर कहूं तो रेणू की लिखी बातें कब हमारे अंदर बैठ गई, हमें ख़ुद पता नहीं है,ठीक गुलजार की रूमानियत की तरह, कोल्ड कॉफी के फेन की तरह। रेणु की दुनिया हमें प्रशांत (मैला आंचल का पात्र) की गहरी मानवीय बेचैनी से जोड़ती है, हीरामन (तीसरी कसम का पात्र) की सहज, आत्मीय आकुलता से जोड़ती है। वह हमें ऐसे रागों, रंगों, जीवन की सच्चाई से जोड़ते हैं जिसके बिना हमारे लिए यह दुनिया ही अधूरी है। अधूरे हम रह जाते हैं, अधूरे हमारे ख्वाब रह जाते हैं। इयान जैसे रेणु प्रेमी से मिलकर मन के भीतर ऐसे ही बातें बजती रही।
इयान के साथ हम रेणु ग्राम भी गए। दिन भर रेणु के घर- आँगन करते रहे हम सब। वहाँ भी इयान ने लोक-कलाकार जयनारायण, सुमिता देवी और चमेनी देवी से बातें की। मैं यह बात इसलिए साझा कर रहा हूं क्योंकि इयान से मुझे फ़ील्ड नोट्स पर काम करते रहने की सीख मिली। यही सीख मुझे सदन झा सर से भी मिलती रही है।
इयान लोगबाग से ख़ूब बातें करते हैं और उसका नोट तैयार करते हैं। ऐसे में कबीर की उस वाणी से अपनापा बढ़ जाता है, जिसमें वे कहते हैं - " अनुभव गावै सो गीता। " रेणु रोज की आपाधापी के छोटे-छोटे ब्योरों से वातावरण गढ़ने की कला जानते थे। अपने ब्योरो, या कहें फिल्ड नोट्स को वे नाटकीय तफसील देते थे, ठीक उसी समय वे हमें सहज और आत्मीय लगने लगते हैं।
चनका रेसीडेंसी की शुरुआत इयान से हुई है, जिसमें रेणु बसते हैं, इसलिए लगता है आगे भी सब सुंदर ही होगा। इसी बीच इयान के रहते हुए पूर्णिया पुलिस की ' मेरी पाठशाला' भी चनका में लग गई। 'मेरी पाठशाला ' की शुरुआत पूर्णिया के पुलिस अधीक्षक निशांत कुमार तिवारी ने किया है। वे लेखक भी हैं। ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से उनकी दो किताबें आ चुकी हैं। रेसीडेंसी के लिए यह भी अच्छा रहा कि आस्ट्रेलिया के ला ट्रोब यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर इयान वुलफ़ोर्ड का एक ऐसे पुलिस अधीक्षक से मुलाक़ात हो गई जो कुछ अलग कर रहे हैं। दोनों के बीच साहित्य पर लंबी बातें हुई।
रेसीडेंसी प्रोग्राम आरंभ करना असंभव रहता यदि फ़ोटोग्राफ़ी में दिलचस्पी रखने वाले चिन्मया नंद सिंह का सहयोग नहीं मिलता। उन्होंने रेसीडेंसी के विचार से लेकर इसके पहले प्रोग्राम तक में अपना पूरा समय दिया।
किसानी करते हुए चनका को लेकर जो ख़्वाब पाले हैं, उसे पूरा करना है। और चलते-चलते रेणु की इन बातों में डुबकी लगाइए, जिसमें उन्होंने एक कीड़े की बात की है -
"एक कीड़ा होता है- अंखफोड़वा, जो केवल उड़ते वक्त बोलता है-भन-भन-भन। क्या कारण है कि वह बैठकर नहीं बोल पाता? सूक्ष्म पर्यवेक्षण से ज्ञात होगा कि यह आवाज उड़ने में चलते हुए उसके पंखों की है। सूक्ष्मता से देखना और पहचानना साहित्यकार का कर्तव्य है। परिवेश से ऐसे ही सूक्ष्म लगाव का संबंध साहित्य से अपेक्षित है।”
देखते-देखते चनका रेसीडेंसी के पहले गेस्ट राईटर इयान वुलफ़ोर्ड का एक हफ़्ते का चनका प्रवास ख़त्म हो गया। उनके संग हम सात दिन रहे। वे चनका में ग्रामीण संस्कृति, ग्राम्य गीत और खेत-पथार को समझ-बूझ रहे थे और मैं इस रेणु साहित्य प्रेमी को समझने-बूझने में लगा था। रेणु मेरे प्रिय लेखक हैं, वे मेरे अंचल से हैं। मुझे वे पसंद हैं 'परती परिकथा' के लिए और लोकगीतों के लिए। इयान वुलफ़ोर्ड भी रेणु साहित्य में डूबकर कुछ न कुछ खोज निकालने वालों में एक हैं।
रेसीडेंसी में इयान हर दिन रेणु साहित्य में शामिल लोकगीतों पर बात करते थे। उन्होंने रेणु के गाँव औराही हिंगना में लंबा वक़्त गुज़ारा है। उनके पास उन लोक कलाकारों की बातें हैं, जिनका रेणु ने ज़िक्र किया है। ठिठर मंडल, राम प्रसाद या फिर जय नारायण, चमेनी देवी, रेणु की पत्नी पद्मा देवी आदि इन सभी की कहानी इयान के पास है। मैं घंटों उनसे इन लोक कलाकारों के बारे बातें करता रहा। विदापत नाच की बातें हो या फिर रसप्रिया का मोहना, इन सब में इयान डूब जाने वाले शख़्स हैं। उनके पास विदापत नाच के मूलग़ैन रामप्रसाद का लंबा विडियो इंटरव्यू है। इयान उन्हें 'बिहारी सुपरस्टार' कहते हैं। अफ़सोस अब न रामप्रसाद हैं और न ही ठिठर मंडल।
इयान को कबिराहा मठों से बहुत लगाव है। उन्हें निर्गुण सुनना पसंद है। हम उन्हें चनका स्थित सोनापुर कबीर मठ ले गए। वहाँ के कबीरपंथी चिदानंद स्वरूप से इयान ने लंबी बातें की, निर्गुण से लेकर सगुण तक की बातें की। मैं इन दोनोंकी बातें सुनता रहा। मन के भीतर रेणु की लिखी यह बातें बजने लगी -
" कई बार चाहा कि, त्रिलोचन से पूछूँ- आप कभी पूर्णिया जिला की ओर किसी भी हैसियत से, किसी कबिराहा-मठ पर गये हैं? किन्तु पूछकर इस भरम को दूर नहीं करना चाहता हूं। इसलिए, जब त्रिलोचन से मिलता हूं, हाथ जोड़कर, मन ही मन कहता हूं- "सा-हे-ब ! बं-द-गी !!"
रेसीडेंसी के ज़रिए मैं ख़ुद से भी बातें करना चाहता हूं। इयान ने मुझे इसका मौक़ा दिया। इन छह दिनों में हमने एक बार फिर से मैला आंचल, परती परिकथा, रसप्रिया तीसरी कसम, पंचलाइट जैसी रचनाओं को इयान के ज़रिए समझने की कोशिश की। व्यक्तिगत तौर पर कहूं तो रेणू की लिखी बातें कब हमारे अंदर बैठ गई, हमें ख़ुद पता नहीं है,ठीक गुलजार की रूमानियत की तरह, कोल्ड कॉफी के फेन की तरह। रेणु की दुनिया हमें प्रशांत (मैला आंचल का पात्र) की गहरी मानवीय बेचैनी से जोड़ती है, हीरामन (तीसरी कसम का पात्र) की सहज, आत्मीय आकुलता से जोड़ती है। वह हमें ऐसे रागों, रंगों, जीवन की सच्चाई से जोड़ते हैं जिसके बिना हमारे लिए यह दुनिया ही अधूरी है। अधूरे हम रह जाते हैं, अधूरे हमारे ख्वाब रह जाते हैं। इयान जैसे रेणु प्रेमी से मिलकर मन के भीतर ऐसे ही बातें बजती रही।
इयान के साथ हम रेणु ग्राम भी गए। दिन भर रेणु के घर- आँगन करते रहे हम सब। वहाँ भी इयान ने लोक-कलाकार जयनारायण, सुमिता देवी और चमेनी देवी से बातें की। मैं यह बात इसलिए साझा कर रहा हूं क्योंकि इयान से मुझे फ़ील्ड नोट्स पर काम करते रहने की सीख मिली। यही सीख मुझे सदन झा सर से भी मिलती रही है।
इयान लोगबाग से ख़ूब बातें करते हैं और उसका नोट तैयार करते हैं। ऐसे में कबीर की उस वाणी से अपनापा बढ़ जाता है, जिसमें वे कहते हैं - " अनुभव गावै सो गीता। " रेणु रोज की आपाधापी के छोटे-छोटे ब्योरों से वातावरण गढ़ने की कला जानते थे। अपने ब्योरो, या कहें फिल्ड नोट्स को वे नाटकीय तफसील देते थे, ठीक उसी समय वे हमें सहज और आत्मीय लगने लगते हैं।
चनका रेसीडेंसी की शुरुआत इयान से हुई है, जिसमें रेणु बसते हैं, इसलिए लगता है आगे भी सब सुंदर ही होगा। इसी बीच इयान के रहते हुए पूर्णिया पुलिस की ' मेरी पाठशाला' भी चनका में लग गई। 'मेरी पाठशाला ' की शुरुआत पूर्णिया के पुलिस अधीक्षक निशांत कुमार तिवारी ने किया है। वे लेखक भी हैं। ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से उनकी दो किताबें आ चुकी हैं। रेसीडेंसी के लिए यह भी अच्छा रहा कि आस्ट्रेलिया के ला ट्रोब यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर इयान वुलफ़ोर्ड का एक ऐसे पुलिस अधीक्षक से मुलाक़ात हो गई जो कुछ अलग कर रहे हैं। दोनों के बीच साहित्य पर लंबी बातें हुई।
रेसीडेंसी प्रोग्राम आरंभ करना असंभव रहता यदि फ़ोटोग्राफ़ी में दिलचस्पी रखने वाले चिन्मया नंद सिंह का सहयोग नहीं मिलता। उन्होंने रेसीडेंसी के विचार से लेकर इसके पहले प्रोग्राम तक में अपना पूरा समय दिया।
किसानी करते हुए चनका को लेकर जो ख़्वाब पाले हैं, उसे पूरा करना है। और चलते-चलते रेणु की इन बातों में डुबकी लगाइए, जिसमें उन्होंने एक कीड़े की बात की है -
"एक कीड़ा होता है- अंखफोड़वा, जो केवल उड़ते वक्त बोलता है-भन-भन-भन। क्या कारण है कि वह बैठकर नहीं बोल पाता? सूक्ष्म पर्यवेक्षण से ज्ञात होगा कि यह आवाज उड़ने में चलते हुए उसके पंखों की है। सूक्ष्मता से देखना और पहचानना साहित्यकार का कर्तव्य है। परिवेश से ऐसे ही सूक्ष्म लगाव का संबंध साहित्य से अपेक्षित है।”
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