धनकटनी
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इस दोपहर में
जब धनकटनी हो चुकी है,
लोगबाग धान को खेत में गिराकर
लौट चुके हैं अपने घर
मैं निहार रहा हूं खेत को।
चार महीने तक खेत को
हरी चुनरी से
रंगीन करने वाली यह फ़सल
अब खेत में लेटी है
शांत-चित्त मुद्रा में।
धरती मैया की गोद में
गहरी नींद में सो चुकी
इस फ़सल को देखना
ख़ुद से गुफ़्तगू करने जैसा है।
किसानी करते हुए
धान
मुझे
बेटी का स्नेह देती है।
पहले खेत
फिर
खलिहान को
यह सुख देती है।
धान तो बस
मुस्कुराती हुई
अब एक पेंटिंग लगती है।
दूर-दूर तक खेत में
अब बस चुप्पी है।
न धान की बालियों पे
अब चिड़ियाँ फुदकती है
न पीले पके धान पर
चिड़ियाँ चोंच मारती है।
अब धान किसान का है
बेटी ने तो
अपना काम कर दिया
धरती मैया को ख़ुश कर
अब किसान के दुआर पे
पहुँचने की तैयारी में है धान।
अब
एक-एक बाली से
निकलेगा अन्न
एकदम दूध की तरह श्वेत!
पेट की आग
बुझ जाएगी इस धान से।
धनरोपनी के गीत के बोल
धनकटनी आते-आते
जाने कहाँ चली गई।
कादो-कीचड़ की यात्रा
इस शरद ऋतु में
अब खो गयी है।
धान
अपनी बेटी
विदा के वेला में भी
ख़ुशी दे रही है...
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इस दोपहर में
जब धनकटनी हो चुकी है,
लोगबाग धान को खेत में गिराकर
लौट चुके हैं अपने घर
मैं निहार रहा हूं खेत को।
चार महीने तक खेत को
हरी चुनरी से
रंगीन करने वाली यह फ़सल
अब खेत में लेटी है
शांत-चित्त मुद्रा में।
धरती मैया की गोद में
गहरी नींद में सो चुकी
इस फ़सल को देखना
ख़ुद से गुफ़्तगू करने जैसा है।
किसानी करते हुए
धान
मुझे
बेटी का स्नेह देती है।
पहले खेत
फिर
खलिहान को
यह सुख देती है।
धान तो बस
मुस्कुराती हुई
अब एक पेंटिंग लगती है।
दूर-दूर तक खेत में
अब बस चुप्पी है।
न धान की बालियों पे
अब चिड़ियाँ फुदकती है
न पीले पके धान पर
चिड़ियाँ चोंच मारती है।
अब धान किसान का है
बेटी ने तो
अपना काम कर दिया
धरती मैया को ख़ुश कर
अब किसान के दुआर पे
पहुँचने की तैयारी में है धान।
अब
एक-एक बाली से
निकलेगा अन्न
एकदम दूध की तरह श्वेत!
पेट की आग
बुझ जाएगी इस धान से।
धनरोपनी के गीत के बोल
धनकटनी आते-आते
जाने कहाँ चली गई।
कादो-कीचड़ की यात्रा
इस शरद ऋतु में
अब खो गयी है।
धान
अपनी बेटी
विदा के वेला में भी
ख़ुशी दे रही है...
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