Thursday, August 11, 2016

डिजीटल इंडिया' बनाम 'रूरल इंडिया'

आज बातों ही बातों में आपको एक साल पीछे ले जाना चाहता हूं। 2015 के जुलाई की पहली तारीख को केंद्र सरकार ने डिजिटल इंडिया सप्ताह की शुरुआत की थी। आज साल भर बाद ये पुरानी बातें इसलिए याद दिला रहा हूं क्योंकि मेरे गाँव में इनदिनों राशन कार्ड के ज़रिए मिलने वाली सुविधाओं को  लाभुकों के बैंक एकाउंट्स से जोड़ने की पहल हो रही है लेकिन अबतक डिजिटल इंडिया की मूलभूत सुविधाएँ गाँव तक पहुँची ही नहीं है और कागज पर सर्वे जारी है। तो ऐसे में क्या डिजिटल इंडिया से रुरल इंडिया दूर होता जा रहा है।

एक साल पुराने डिजीटल इंडिया का नारा अब किस हालत में है या फिर यह नारा क्या मायने रखता है, इसे समझना होगा। सरकार चाहती है कि डिजीटल इंडिया के मार्फ़त लोगों को रोजमर्रा की सभी सुविधाएं पहुचाई जाए, यह बढ़ियाँ बात है लेकिन मेरे गांव तक या फिर देश के कई ग्रामीण इलाके तक यह सुविधा अबतक क्यों नहीं पहुँची, यह एक बड़ा सवाल है। ऐसे में यह गांव वाला सरकार के डिजीटल इंडिया के नारे पर लंबी बात करना चाहता है।

याद करिए, सरकार ने डिजीटल इंडिया अभियान को नौ क्षेत्रों में बांटने की कोशिश की थी। एक ग्रामीण के तौर पर सरकार की जिस बात को लेकर मैं उस वक़्त और आज भी असमंजस में हूं वो है ब्रॉडबैंड हाइवे।

इसके तहत देश के आख़िरी घर तक ब्रॉडबैंड के ज़रिए इंटरनेट पहुंचाने की बात थी। ऐसे में सबसे पहला जो सवाल कौंध रहा है वो है गांव तक कैसे ब्रॉडबैंड पहुंचेगी। दरअसल ब्रॉडबैंड हाइवे की शुरुआत आप्टिक फाइबर नेटवर्क से होती है । ऐसे में गांव गांव तक फाइवर नेटवर्क का तार बिछाना सबसे बड़ी चुनौती है। उन गांवों तक सरकार को पहुंचना होगा जहां तक अभी भी न सड़क पहुंच पाई है और न ही बिजली।

डिजीटल इंडिया का नारा व्यक्तिगत तौर पर मुझे बहुत ही पसंद है लेकिन किया बिहार या देश के अन्य राज्यों के उन गांवों को अबतक इसमें शामिल किया जा चुका है जो अभी भी विकास की रौशनी से दूर है? यह एक बड़ा सवाल है।

डिजीटल इंडिया के तहत सरकार पब्लिक इंटरनेट एक्सेस प्रोग्राम की बात कहती रही है। लेकिन जरा सोचिए जिस गांव में बिजली और सड़क नदारद है वहां तक आप ऐसे ख्वाब कैसे पहुंचाएंगे। यदि पहुंचाते भी हैं तो कितना वक्त लगेगा आपका, यह समझना होगा। हर पंचायत तक इस योजना को पहुंचाना कठिन चुनौती है। सरकार ई-गवर्नेंस की भी बात कर ही है। इसका अर्थ ये है कि वो सरकारी दफ्तरों को डिजीटल बनाना चाहती है और सेवाओं को इंटरनेट से जोड़ने का ख्वाब रखती है। इन सभी को अमली जामा पहनाने के लिए काफी मशक्कत करनी होगी। सरकार को हर सरकारी कर्मचारी को डिजीटल कार्यक्रम से रूबरू कराना होगा, ट्रेनिंग देनी होगी।

डिजीटल इंडिया प्रोग्राम के तहत सरकार ई-क्रांति की बात कहती रही है। मैं इस क्रांति को अभी तक समझ नहीं पा रहा हूं। मैं खुद गांव में रहकर स्मार्ट फोन के जरिए इंटरनेट का इस्तेमाल करता हूं, इंटरनेट के माध्यम से देश-विदेश के लोगों से जुड़ता हूं लेकिन ऐसा हर कोई करेगा, इसकी क्या गारंटी है। हर किसी के पास फोन, हर किसी के पास मोबाइल या कंप्यूटर की सुगमता चुनौती है। जिस देश में अभी भी अन्न-जल भी चुनौती है। जहां हर दिन लाखों लोगों का चूल्हा आज भी बड़ी मुश्किल से जल रहा है वहां डिजीटल उपकरण की उपलब्धता की गारंटी देना एक सपना ही लगता है। लेकिन इन तमाम विरोधाभासों क बावजूद एक नए सुबह की तो हम आशा रख ही सकते हैं।

सरकार इस मुहिम को हर गाँव तक ले जाना चाहती है। इसके तहत शुरू में कुछ गाँवों में से एक में सरकारी कंप्यूटर हब होंगे, जहाँ जाकर ग्रामीण उस कंप्यूटर पर लॉगइन कर सकते हैं। गौरतलब है कि डिजिटल इंडिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनावी वादों में से एक है। ये उनके दो बड़े प्रोजेक्ट यानी मेक इन इंडिया और स्किल्ड इंडिया से जुड़ा है। ऐसे में लोगों की निगाहें उन पर टिकी है।

एक ग्रामीण के तौर पर, जिसे डिजीटल इंडिया के नारे से प्रेम है, जो इंटरनेट के जरिए अभी भी अपना काम गांव –देहात से कर रहा है, वह चाहता है कि सरकार इस ख्वाब को हकीकत में बदलने के लिए मिशन मोड में काम करे। गांव-गांव, कस्बे-कस्बे तक इंटरनेट पहुंचाने के लिए व्यापक स्तर पर काम करना होगा। आधारभूत ढांचे का निर्माण करना होगा। इसमें भारी खर्च होगी। डिजीटल फाइबर केबल पूरे देश में नहीं है, इसके लिए काम करना होगा। पूरे देश में केबल बिछाना होगा। पहाड़ों, नदियों, जंगलों से होकर हर गांवों तक केबल ले जाना कितना कठिन काम है इसका अनुमान हम लगा सकते हैं। लेकिन हम एक नागरिक के तौर पर तो साल भर बीत जाने के बाद भी सरकार पर विश्वास कर ही सकते हैं।

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