Saturday, July 23, 2016

धनरोपनी महोत्सव का ख़्याल !

पिछले तीन सालों से सक्रिय रूप से किसानी कर रहा हूं। इस दौरान कई बार ख्याल आया कि क्यों न धनरोपनी महोत्सव मनाया जाए। ऐसे लोगों को खेत में उतारा जाए जो हैं तो माटी से दूर लेकिन जिनका मन माटी से जुड़ा है।

दरअसल खेत की तरह ही मुझे इंटरनेट कि दुनिया से लगाव है। ख़ासकर वेब की दुनिया के उन अड्डों को खंगालना मुझे अच्छा लगता है जिसे वे लोग चला रहे हैं जो अपनी तमाम व्यस्तताओं के बीच अपने शौक़ को बचाये रखने के लिए कुछ रचनात्मक काम कर रहे हैं। धनरोपनी महोत्सव में ऐसे ही लोगों को शामिल करने का मन है। खेती बाड़ी के संग क़लम-स्याही करते हुए ऐसे कई लोगों के सम्पर्क में आया जिन्हें गाम-घर की दुनिया से ख़ूब लगाव है। ऐसे लोग सही अर्थों में गाँव से जुड़े हैं, आप कह सकते हैं कि ऐसे लोगों के मन के तार हर वक़्त गाँव की आवो-हवा से जुड़ी रहती है।

पूर्णिया में पिछले तीन साल से खेती बाड़ी में सक्रिय रहने की वजह से अलग अलग क्षेत्र के कई लोगों से मुलाक़ात होती रही है। एक किसान के तौर पर मैं उन लोगों को खोजता हूं जिनका मन गाम-घर की दुनिया में रमता है। इसी कड़ी में मेरी मुलाक़ात एक युवा आईपीएस अधिकारी निशांत कुमार तिवारी से होती है।

निशांत कुमार तिवारी को फ़ोटोग्राफ़ी का शौक़ है, वे लेखक हैं, जिनकी किताबें ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से प्रकाशित हो चुकी है, वे ब्लॉग भी लिखते हैं लेकिन जिस चीज़ की वजह से मैं उनकी तरफ़ खींचा चला गया, वह है उनका 'गाँव कनेक्शन'। रविवार को छुट्टी के दिन उनका गाँव के समीप दौरा था। दोपहर में  काम के बाद उनका फ़ोन आता है कि वे गाँव घूमना चाहते हैं। एक आईपीएस अधिकारी अपने तमाम व्यस्त कार्यक्रम के बीच समय निकालकर गाँव पहुँचता है और घंटों प्रकृति के संग गुफ़्तगू करता है अपने कैमरे की सहायता से। एक किसान के तौर मैं उन्हें देखता हूं और उनके प्रकृति प्रेम में डूब जाता हूं।

मुझे अपने प्रिय फणीश्वर नाथ रेणु याद आने लगते हैं। उनके पात्र सुरपति राय और भवेशनाथ याद आने लगते हैं। परती परिकथा में रेणु लिखते हैं कि भवेशनाथ परती के विभिन्न रूपों का अध्ययन करने आए हैं। कैमरे का व्यू फ़ाइंडर उनकी अपनी आँख है। भवेश मन ही मन सोचते हैं, तीस साल ! बस , तीस साल और ! इसके बाद तो सारी धरती इंद्रधनुषी हो जाएगी। तब तक रंगीन फ़ोटोग्राफ़ी का भी विकास हो जाएगा। झक-झका-झक-झका!

निशांत तिवारी जब अपने कैमरे से खेत-खलिहान, प्रवासी पक्षियों के झुंड और पुराने पेड़ में पक्षियों के घोंसलों को क़ैद कर रहे थे, उस वक़्त मेरे मन में रेणु की लिखी बातें चल रही थी, जैसे ही वर्तमान में दाख़िल होता हूं तो लगता है - हाँ, रेणु ने ठीक ही कहा था, गाँव से जुड़े लोग समय निकालकर ज़रूर आएँगे।

इस तरह के लोगों से लम्बी बातें करते हुए हम अंचल के और क़रीब आ जाते हैं। बाबूजी के फ़ोटो एलबम पलटते वक़्त एक तस्वीर हाथ आई थी, वह तस्वीर एक खेत की है जिसमें बाबा नागार्जुन हैं, फणीश्वर नाथ रेणु हैं और फ़ारबिसगंज के बिरजू बाबू हैं। सबसे मज़ेदार बात ये है कि सभी धनरोपनी कर रहे हैं। सभी के पैर कीचड़ से सने हैं। यह तस्वीर देखकर इस किसान का मन एक बार फिर से खेत में एक उत्सव मनाने के लिए तड़प उठता है।

पिछले साल एक अमेरिकी दम्पति डेविड और लिंडसे फ़्रेनसेन गाँव आए थे। उस वक्त खेत में मक्का था। धनरोपनी के बारे में हमने जब उन्हें बताया तो वे भी इसे लेकर उत्सुक दिखे। ग्राम्य जीवन ऐसी ही छोटी छोटी चीज़ों में सुख तलाशता आया है। निशांत तिवारी जैसे लोगों से मिलकर और गाँव के प्रति लगाव को देखकर एक उम्मीद बँधतीहै कि ग्राम्य जीवन को एक नया रूप ज़रूर मिलेगा, ऐसे में एक अलग अन्दाज़ में धनरोपनी महोत्सव तो बनता ही है। इस आद्रा नक्षत्र के बाद खेत के कादो में हम ज़रूर करेंगे धनरोपनी महोत्सव , आप आ रहे हैं न ! 

2 comments:

Manish Thakur said...

Man to mera bhi gramyanchal me hi basta hai. Pata nahi kab aapke in anubhavo se sakshatkar ho paye. Bharat sarkar se seva nivritti to mil hi jaegi. kuchh saal aur. Lekin pata nahi aap jaisi himmat juta paunga ki nahi. Ho paya to ek baar jarur aaunga.

HARSHVARDHAN said...

आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति आचार्य परशुराम चतुर्वेदी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।