एक साल गुज़र गया। वक़्त किसके लिए और कब ठहरा है ? किसी के लिए तो नहीं। पिछले साल 18 जुलाई को ही बाबूजी अनंत यात्रा पर चले गए। आज सुबह से मन टूटा हुआ है, यह तारीख़ न आए...स्मृति में बाबूजी के चले जाने की तारीख़ न आए, ऐसा मैं साल भर सोचता रहा लेकिन ऐसा किसके लिए हुआ है ? लेकिन मैं यह भरम पाले बैठा था, ख़ुद को भरम में रखने के लिए...
जबसे होश संभाला, बस यही जाना कि बाबूजी चनका से पूर्णिया गए हैं या फिर दरभंगा-मधुबनी या फिर कोर्ट -कचहरी के चक्कर में पटना आदि जगह ...लेकिन वे सबकुछ छोड़कर अनंत यात्रा पर चले गए, यह आज भी मैं यक़ीन नहीं कर पा रहा हूं। वे हैं, यहीं आसपास। मैं हमेशा उस पलंग को देखता हूं, जहाँ वे लेटे रहते थे...
उनकी बीमारी ने मुझे उनके और क़रीब ला दिया था। याद करता हूं तो रोयें खड़े हो जाते हैं। हमेशा लड़ने वाला, जीवन में संघर्ष कर सबकुछ हासिल करने वाला इतनी जल्दी हार जाएगा, किसी ने सोचा नहीं था। उनके मित्र कहते हैं कि वे हारने वालों में नहीं थे, वे लड़ने वाले थे लेकिन बीमारी ने उनके मन को तोड़ दिया।
लगातार दो साल वे बिछावन पर लेटे रहे। छह महीने उन्होंने 'बेड सोर' से लड़ाई की। पूरे शरीर में घाव।लेकिन इस दौरान भी उनके चेहरे का भाव किसी संत का आभास कराता था। वो भी तब जब घाव पर बेटाडिन दवा लगाई जाती थी। मैं सिहर जाता था, यह जानते हुए कि ये दवा घाव के फंगस को हटाने का काम करती है लेकिन दर्द भी तेज करती है कुछ देर के लिए ...लेकिन वे इस दौरान भी कभी विचलित नहीं हुए।
आज यह सब लिखते हुए मैं ख़ुद से लड़ रहा हूं। डर रहा हूं, एक भय भीतर में समा गया है। मैं उस भय को अब बहुरुपिया मानने लगा हूं। याद करता हूं उस दौरान भी उनकी दवाई के लिए जूझता रहता था। एक तरफ़ खेत तो दूसरी तरफ़ बिछावन पर बाबूजी।
बाबूजी, आज आप सामने नहीं हैं लेकिन चनका को लेकर जो कुछ आप सोचते थे, वह सब हो रहा, धीरे-धीरे। हालाँकि मुझे पता है आप ही सबकुछ मुझसे करवा रहे हैं।
खेती-बाड़ी-क़लम-स्याही करते वक़्त ईमानदार बने रहने की पूरी कोशिश करता हूं। अफ़सोस है कि आपको बहुत कुछ नहीं दिखा सका। आपका चनका जब भी ख़बरों में आता है तो लगता है यह सब आप ही कर रहे हैं।
आपसे ही विपरीत से विपरीत परिस्थिति में लड़ना सीखा है बाबूजी। याद करता हूं जब भी पैथोलॉजिकल जांच में आपका सोडियम गिरा हुआ और सूगर लेवल हाई देखता था तो मैं खुद चक्कर खा जाता था। इलोकट्रेट इम्बैलेंस आपके लिए नई बात नहीं थी लेकिन मैं डर जाता था क्योंकि हमेशा अपने कन्धे पर भार उठाने वाले शख्स को इस कदर लाचार मैंने नहीं देखा था लेकिन तभी आपकी एक चिट्ठी की याद आ जाती है जो आपने मुझे 2003 में भेजी थी दिल्ली के गांधी विहार पते पर। रजिस्ट्रड लिफाफे में महीने के खर्चे का ड्राफ्ट था और पीले रंग के पन्ने पर इंक कलम से लिखी आपकी पाती थी।
बाबूजी, आपने लिखा था कि “बिना लड़े जीवन जिया ही नहीं जा सकता। लड़ो ताकि जीवन के हर पड़ाव पर खुद से हार जाने की नौबत न आए।“ आपकी इन बातों को जब याद करता हूँ तो ताक़त मिलती है।
बाबूजी, आपके चनका में बाहर से लोगों की आवाजाही ख़ूब बढ़ गयी है। पढ़ने-लिखने में रमे रहने वाले लोग आते हैं तो लगता है मानो आप अपने बैठकखाने से सबकुछ देख-सुन रहे हैं। यक़ीन मानिए, आपने जो सोच रखा था, वो ज़रूर पूरा होगा। बस, बाबूजी ...आप मेरे कंधे पे यूँ ही हाथ रखते रहिए, आपके स्पर्श से शक्ति मिलती है।
जबसे होश संभाला, बस यही जाना कि बाबूजी चनका से पूर्णिया गए हैं या फिर दरभंगा-मधुबनी या फिर कोर्ट -कचहरी के चक्कर में पटना आदि जगह ...लेकिन वे सबकुछ छोड़कर अनंत यात्रा पर चले गए, यह आज भी मैं यक़ीन नहीं कर पा रहा हूं। वे हैं, यहीं आसपास। मैं हमेशा उस पलंग को देखता हूं, जहाँ वे लेटे रहते थे...
उनकी बीमारी ने मुझे उनके और क़रीब ला दिया था। याद करता हूं तो रोयें खड़े हो जाते हैं। हमेशा लड़ने वाला, जीवन में संघर्ष कर सबकुछ हासिल करने वाला इतनी जल्दी हार जाएगा, किसी ने सोचा नहीं था। उनके मित्र कहते हैं कि वे हारने वालों में नहीं थे, वे लड़ने वाले थे लेकिन बीमारी ने उनके मन को तोड़ दिया।
लगातार दो साल वे बिछावन पर लेटे रहे। छह महीने उन्होंने 'बेड सोर' से लड़ाई की। पूरे शरीर में घाव।लेकिन इस दौरान भी उनके चेहरे का भाव किसी संत का आभास कराता था। वो भी तब जब घाव पर बेटाडिन दवा लगाई जाती थी। मैं सिहर जाता था, यह जानते हुए कि ये दवा घाव के फंगस को हटाने का काम करती है लेकिन दर्द भी तेज करती है कुछ देर के लिए ...लेकिन वे इस दौरान भी कभी विचलित नहीं हुए।
आज यह सब लिखते हुए मैं ख़ुद से लड़ रहा हूं। डर रहा हूं, एक भय भीतर में समा गया है। मैं उस भय को अब बहुरुपिया मानने लगा हूं। याद करता हूं उस दौरान भी उनकी दवाई के लिए जूझता रहता था। एक तरफ़ खेत तो दूसरी तरफ़ बिछावन पर बाबूजी।
बाबूजी, आज आप सामने नहीं हैं लेकिन चनका को लेकर जो कुछ आप सोचते थे, वह सब हो रहा, धीरे-धीरे। हालाँकि मुझे पता है आप ही सबकुछ मुझसे करवा रहे हैं।
खेती-बाड़ी-क़लम-स्याही करते वक़्त ईमानदार बने रहने की पूरी कोशिश करता हूं। अफ़सोस है कि आपको बहुत कुछ नहीं दिखा सका। आपका चनका जब भी ख़बरों में आता है तो लगता है यह सब आप ही कर रहे हैं।
आपसे ही विपरीत से विपरीत परिस्थिति में लड़ना सीखा है बाबूजी। याद करता हूं जब भी पैथोलॉजिकल जांच में आपका सोडियम गिरा हुआ और सूगर लेवल हाई देखता था तो मैं खुद चक्कर खा जाता था। इलोकट्रेट इम्बैलेंस आपके लिए नई बात नहीं थी लेकिन मैं डर जाता था क्योंकि हमेशा अपने कन्धे पर भार उठाने वाले शख्स को इस कदर लाचार मैंने नहीं देखा था लेकिन तभी आपकी एक चिट्ठी की याद आ जाती है जो आपने मुझे 2003 में भेजी थी दिल्ली के गांधी विहार पते पर। रजिस्ट्रड लिफाफे में महीने के खर्चे का ड्राफ्ट था और पीले रंग के पन्ने पर इंक कलम से लिखी आपकी पाती थी।
बाबूजी, आपने लिखा था कि “बिना लड़े जीवन जिया ही नहीं जा सकता। लड़ो ताकि जीवन के हर पड़ाव पर खुद से हार जाने की नौबत न आए।“ आपकी इन बातों को जब याद करता हूँ तो ताक़त मिलती है।
बाबूजी, आपके चनका में बाहर से लोगों की आवाजाही ख़ूब बढ़ गयी है। पढ़ने-लिखने में रमे रहने वाले लोग आते हैं तो लगता है मानो आप अपने बैठकखाने से सबकुछ देख-सुन रहे हैं। यक़ीन मानिए, आपने जो सोच रखा था, वो ज़रूर पूरा होगा। बस, बाबूजी ...आप मेरे कंधे पे यूँ ही हाथ रखते रहिए, आपके स्पर्श से शक्ति मिलती है।
7 comments:
ई घटक बाबा के फोटो छाइन की? ओना बहुत सुंदर आलेख ऐछ.
अत्यन्त उम्दा लेख । भावनाओ को बयां करने का एक मर्मस्पर्शी अंदाज। आपके बाबूजी को भावभीनी श्रद्धांजली। यदि आप अपने विचारों को नया आयाम देना चाहते है तो आप हिंदी के एक अन्य माध्यम http://shabd.in पर जा सकते है और अपने लेखो को एक मंच प्रदान कर सकते है ।
अत्यंत मर्मस्पर्शी संस्मरण। इससे अधिक भावपूर्ण श्रद्धांजलि और क्या होगी। ईश्वर आपको उनके स्वप्न को पूर्ण करने की शक्ति दे।
"लड़ो ताकि जीवन के हर पड़ाव पर खुद से हार जाने की नौबत न आए" जैसा संदेश कोई साधारण व्यक्ति नहीं दे सकता। कोटि कोटि नमन!
अत्यंत मर्मस्पर्शी संस्मरण। इससे अधिक भावपूर्ण श्रद्धांजलि और क्या होगी। ईश्वर आपको उनके स्वप्न को पूर्ण करने की शक्ति दे।
"लड़ो ताकि जीवन के हर पड़ाव पर खुद से हार जाने की नौबत न आए" जैसा संदेश कोई साधारण व्यक्ति नहीं दे सकता। कोटि कोटि नमन!
मर्मस्पर्शी यादें। .
जिंदगी जीना माँ बाप से ही सीखते हैं
एहेन प्रेरक शख्शियत के हाथ यदि केकरो ऊपर रहतै त ओ कठिन से कठिन काज सहज ए क सकैये
एहेन प्रेरक शख्शियत के हाथ यदि केकरो ऊपर रहतै त ओ कठिन से कठिन काज सहज ए क सकैये
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